मेरे बचपन आजा
आजा रे, आजा रे मेरे बचपन आजा,
प्यार के गीत सुना जा रे।
मां की गोद भरी दुलारे, मीत मिलते प्यारे प्यारे।
पिता संग इठला इठलाकर, देखें नए नए नजारे।
बचपन की पाठशाला,गिनती पहाड़े सीखें सारे।
आजा रे, आजा रे मेरे बचपन आजा।
दादी नानी लाड प्यार से, वो बुलाती थी दुलार से।
खेल खिलौने थे सुहाने, मस्त रहे थे जीत हार से।
नटखट नखरे बालमन के, किलकारी सुना जा रे।
आजा रे, आजा रे मेरे बचपन आजा।
मंद मंद हंसी लबों की, तूतलाती तूतलाती बोली।
छोटी-छोटी अंगुलियों से, आशाएं हमने भी घोली।
आंखों की अश्रु धारा के,दृश्य मधुर दिखला जा रे।
आजा रे, आजा रे मेरे बचपन आजा।
जिद पे अड़ना वो भोलापन,वो बचपन अब कहां।
मन की मुरादे पूरी होती, एक बार जो हमने कहा।
राज दुलारा फिर से हमको, एक बार बना जा रे।
आजा रे, आजा रे मेरे बचपन आजा।
रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू राजस्थान
प्रस्तुत रचना स्वरचित व मौलिक है तथा अप्रकाशित है।
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