ममता को अधीर रंजन का जवाब

ममता को अधीर रंजन का जवाब

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भाजपा और नरेन्द्र मोदी, जो अब लगभग एक ही माने जाने चाहिए, सिवाय उत्तर प्रदेश के जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आभा भारी पड़ती है, उनसे मुकाबला कौन कर सकता है? राहुल और प्रियंका की अगुवाई वाली कांग्रेस शायद सबसे पहले हाथ उठाएगी। कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है जिसकी उपस्थिति लगभग हर राज्य में है। तीन राज्यों मंे उसकी सरकार भी है और कर्नाटक व झारखण्ड मंे कांग्रेस सरकार की साहयोगी है। हालांकि दिल्ली मंे भाजपा को धूल चटाने वाली अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और पश्चिम बंगाल में भाजपा के दांत खट्टे करने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस अभिमन्यु विजय का सुख प्राप्त करती दिख रही है। ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया कि यूपीए है कहां? ध्यान रहे इसी यूपीए ने ममता बनर्जी को रेल मंत्री बनाया था। ममता अपने राजनीतिक अनुभव और चुनाव प्रबंधन के चलते इक्कीस दिखाई पड़ती हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में ही कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन दास ने उनको सही जवाब दिया है। ममता बनर्जी के फ्रंटफुट पर खेलने से भाजपा का ही फायदा होगा और नुकसान सिर्फ कांग्रेस का नहीं होगा बल्कि पश्चिम बंगाल मंे भाजपा के सांसद और बढ़ेंगे। कपिल सिब्बल ने भी यही समझाने का प्रयास किया है।
लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चैधरी ने कोई यूपीए नहीं है संबंधी बयान के लिए तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी पर निशाना साधा है। गौरतलब है कि आम चुनाव 2024 के मद्देनजर, बीजेपी के सामने चुनौती पेश करने के लिए ममता इस समय विपक्ष को लामबंद करने में जुटी हैं और इस सिलसिले में उन्होंने हाल ही में मुंबई की यात्रा के दौरान एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना नेता संजय राउत व आदित्य ठाकरे से मुलाकात की थी। पवार से मुलाकात के बाद ही ममता ने यह पूछे जाने पर कि क्या वह चाहती हैं कि पवार कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के अध्यक्ष बनें, कहा था अभी कोई यूपीए नहीं है। इस बयान पर तृणमूल प्रमुख को आड़े हाथ लेते हुए अधीर रंजन ने कहा, मोदीजी को खुश करने के लिए ममता यह सब काम कर रही हैं, चार फीसदी उनके पास वोट बैंक है उस पर क्या कर लेंगी। कांग्रेस के नेताओं के टीएमसी में शामिल होने पर टिप्पणी करते हुए अधीर रंजन ने कहा था टीएमसी लालच दे रही है कि आप आओ राज्यसभा सीट पक्की है। उन्होंने ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा है कि वह पीएम मोदी से मिलकर कांग्रेस को तोड़ने का काम कर रही हैं। मोदी भी चाहते हैं कांग्रेस मुक्त भारत और ममता बनर्जी भी यही सोच रखती हैं। मोदी और दीदी के तेवर में काफी समानता दिख रही है। उन्होंने कहा था, जिस दिन से अभिषेक को ईडी ने बुलाया उसके बाद से कांग्रेस को गाली देने लगीं। ममता बनर्जी सिर्फ कांग्रेस को तोड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में सारा विपक्ष चलेगा।
ध्यान रहे कि ममता ने साफ कहा है कि वे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में नए विपक्षी गठबंधन को देख रही हैं। वे इस समय राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित करने के लिए कांग्रेस पर निशाना साध रही हैं। उन्होंने कहा था कि यूपीए क्या है? कोई यूपीए नहीं है। इसी बयान को लेकर बंगाल के कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने दीदी पर निशाना साधा। वैसे अधीर रंजन इससे पहले भी ममता बनर्जी की आलोचना कर चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ओर से यूपीए पर दिए गए बयान पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल की भी प्रतिक्रिया आई है और उन्होंने कहा है कि कांग्रेस बिना यूपीए का कोई मतलब नहीं है। कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर लिखा कि कांग्रेस बिना यूपीए का मतलब ऐसा शरीर जिसमें आत्मा ही नहीं है। विपक्षी की एकता दिखाने का समय आ गया है। अपने इस ट्वीट के जरिए कपिल सिब्बल ने ममता बनर्जी को यूपीए में कांग्रेस की क्या अहमियत है ये बताने की कोशिश की है। ममता बनर्जी ने मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार से मुलाकात की थी। इस दौरान दोनों नेताओं ने मजबूत विपक्ष बनने पर चर्चा की थी। वहीं इस मुलाकात के बाद जब ममता बनर्जी से सवाल करते हुए पूछा गया कि क्या वो चाहती हैं कि शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बनाया जाए? इस सवाल के जवाब में ममता बनर्जी ने कहा था कि क्या यूपीए? अब कोई यूपीए नहीं है? यूपीए क्या है? हम एक मजबूत विकल्प चाहते हैं। अपने इस बयान के जरिए ममता ने कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा था। गौरतलब है कि एक समय में तृणमूल कांग्रेस कभी यूपीए का हिस्सा हुआ करती थी। लेकिन अब ममता ने कांग्रेस पार्टी से दूरी बना ली है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी ममता ने कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं किया था। कांग्रेस ने वाम दलों के साथ मिलकर तृणमूल और बीजेपी के खिलाफ ये चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में ममता की पार्टी को जीत मिली थी।
गोवा, दिल्ली और अब महाराष्ट्र में ममता बनर्जी के तेवरों ने साफ कर दिया है कि अगर ऐसा कांग्रेस को कमजोर करने की कीमत पर भी हो, तो उन्हें इससे गुरेज नहीं है। ममता बनर्जी ये संकेत दे रही हैं कि जिस तरह पश्चिम बंगाल में वाम दलों के 34 साल के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए उन्हें कांग्रेस से अलग होकर जमीनी स्तर पर लेफ्ट के काडर से सीधे मोर्चा संभालने वाली तृणमूल कांग्रेस को खड़ा किया था। उनके रणनीतिकारों का तर्क है कि ममता ने चुनाव दर चुनाव बंगाल में तीसरी बार सत्ता हासिल की है, जीत के दायरे के साथ उनका कद भी बड़ा होता चला गया है। मोदी की तरह ही मुख्यमंत्री के तौर पर लंबे कार्यकाल के बाद केंद्रीय राजनीति में उनकी भूमिका में कुछ भी गलत नही है।
ममता बनर्जी को विपक्ष का दमदार चेहरा बनाने के गेमप्लान में पर्दे के पीछे अहम भूमिका चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी रही है। इस संयुक्त विपक्षी मोर्चे में पहले कांग्रेस को लाने की कवायद भी थी। प्रशांत किशोर जब शरद पवार जैसे विपक्षी नेताओं से मिल रहे थे तो उन्होंने राहुल गांधी-प्रियंका गांधी से भी मुलाकात की थी। संसद के मानसून सत्र के दौरान जुलाई में ममता बनर्जी खुद सोनिया गांधी से मिली थीं और उस बैठक में राहुल भी थे। लेकिन बीजेपी से सीधे मुकाबले के बजाय गठबंधन या मोर्चे का प्रस्ताव कांग्रेस को शायद नहीं सुहाया। खासकर केंद्रीय राजनीति में कांग्रेस इसके लिए एकदम तैयार नहीं है। इसके बाद यह कवायद गैर कांग्रेस गैर बीजेपी मोर्चा को आकार देने में बदल गई है। यही वजह है कि इस बार कांग्रेस नेताओं और उनकी अगुवाई में बैठकों से टीएमसी ने दूरी बनाए रखी। (हिफी)हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

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