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सेवा और समर्पण का राष्ट्रधर्म

सेवा और समर्पण का राष्ट्रधर्म

(डॉ. दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर)
किसी देश के संविधान निर्माण, उसकी स्वीकृति व उसका लागू होना सभी का महत्व होता है। भारतीय संविधान लागू होने की तिथि गणतंत्र दिवस के रूप में राष्ट्रीय पर्व है। इसके साथ ही संविधान को स्वीकृति मिलने के दिन का भी स्मरण करना चाहिए। संविधान निर्माण के समय सभा में व्यापक विचार विमर्श, चर्चा, बहस होती थी। अनेक मसलों पर वैचारिक भिन्नता दिखाई देती थी। फिर भी राष्ट्रीय हित में व्यापक सहमति बनाई गई। 26 नवंबर 1949 को इस राष्ट्रीय सहमति की अभिव्यक्ति हुई थी। यह सहमति संविधान की भावना के अनुरूप थी। संविधान पर अमल के साथ ही राष्ट्रीय सहमति के मुद्दों का भी महत्व है। सरकार का विरोध करना विपक्ष का दायित्व व अधिकार है किंतु ऐसा करते समय भी राष्ट्र के व्यापक हित का ध्यान रखना चाहिए। राष्ट्र विरोधी तत्वों का मनोबल बढ़ाने वाली राजनीति से बचना चाहिए।
संविधान दिवस से इस तथ्य की प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रस्तावना के माध्यम से ही संविधान निर्माताओं ने इसके स्वरूप को रेखांकित कर दिया था। प्रस्तावना में कहा गया कि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख छबीस नवम्बर उन्नीस सौ उनचास मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
संविधान दिवस पर संसद के सेन्ट्रल हॉल में विशेष समारोह का आयोजन किया गया था। इसमें राष्ट्रपति के नेतृत्व में संविधान की प्रस्तावना का वाचन किया गया। इसमें उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व सांसद प्रत्यक्ष रूप में सहभागी हुए। जबकि वर्चुअल माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर लोग इससे जुड़े थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी संविधान की उद्देशिका का वाचन किया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव तथा चैरी चैरा की घटना का शताब्दी वर्ष भी है। संविधान के कारण प्रत्येक व्यक्ति को एक समान अधिकार प्राप्त हुए हैं। कुछ कर्तव्य भी निर्धारित किये गये हैं। उत्तर प्रदेश विधानमण्डल ने भी इस सम्बन्ध में चर्चा के लिए एक विशेष अधिवेशन आयोजित किया था। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान की मूल प्रति को देखकर पता चलता है कि संविधान निर्माता दूरदर्शी थे। जिन्होंने भारत की मूल भावनाओं को कहीं पर लिपि व चित्रों के माध्यम से उकेरने का कार्य किया।
मूल संविधान में बाइस चित्र थे जिन्हें प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस ने बनाया था। पहला चित्र मोहनजोदड़ो सभ्यता का था। इसके बाद वैदिक काल के गुरुकुल, महाकाव्य काल के रामायण में लंका पर प्रभु राम की विजय, गीता का उपदेश देते श्री कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार, मौर्य काल, गुप्त वंश की कला जिसमें हनुमानजी का दृश्य है, विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़िया मूर्तिकला, नटराज की प्रतिमा, भागीरथ की तपस्या से गंगा का अवतरण, मुगलकाल में अकबर का दरबार, शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह, टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मीबाई, गांधी जी का दांडी मार्च, नोआखली में दंगा पीड़ितों के बीच महात्मा गांधी,सुभाषचंद्र बोस, हिमालय का दृश्य, रेगिस्तान का दृश्य, महासागर का दृश्य शामिल है। भारत की संसद के द्वार पर लिखी पंक्ति भी भारतीय संस्कृति को अभिव्यक्त करती है-
लोक देवेंरपत्राणर्नु
पश्येम त्वं व्यं वेरा
अर्थात लोगों के कल्याण का मार्ग का खोल दो, उन्हें श्रेष्ठ संप्रभुता का मार्ग दिखाओ।
संसद के सेंट्रल हाल के द्वार पर लिखा है-
अयं निजःपरावेति गणना लघुचेतसाम।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।।
भारत सरकार का ध्येय वाक्य सत्यमेव जयते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवम्बर 2015 को मुम्बई में आंबेडकर स्मारक की आधारशिला रखी थी। इस अवसर पर उन्होंने 26 नवम्बर को भारत के संविधान दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में 26 नवम्बर, 2015 को संविधान दिवस का आयोजन किया गया। अब यह परम्परा के रूप में स्थापित हो गया है। संविधान दिवस के अवसर पर पूरा देश संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं एवं संकल्पों को जोड़ने का कार्य करता है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कुटिल अंग्रेजों ने भारत को अलग अलग राष्ट्रीयताओं के समूह के रूप में दिखाने का प्रयास किया था। वल्लभभाई पटेल ने देशी रियासतों को जोड़कर भारत का वर्तमान स्वरूप देने का कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य किया। भाषा, जाति आदि से ऊपर उठकर भारत को राष्ट्रीय भावनाओं को स्थापित करने का कार्य उस समय के महापुरुषों ने किया था। उन भावनाओं के प्रति आज भी देश के हर नागरिक में सम्मान का भाव दिखना चाहिए। इस दृष्टि से भारत का संविधान हम सभी को उन भावनाओं के साथ जोड़ता है। जिसमें देश के हर नागरिक की गरिमा, स्वतंत्रता, समानता तथा बन्धुत्व का भाव सम्मिलित है। (हिफी)

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