योगी सरकार का सराहनीय फैसला
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
तब बांग्लादेश नहीं बना था, पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था। वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर तो अत्याचार हो ही रहे थे, मुसलमानों को भी प्रताड़ित किया जाता था। शेख मुजीब के नेतृत्व मंे विरोध शुरू हुआ और मुक्तिवाहिनी के दम पर पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया। इसी वर्ष (23 मार्च 2021) बांग्लादेश ने अपनी आजादी की स्वर्ण जयंती मनायी है। बांग्लादेश बनने से पहले वहां तीन करोड़ से ऊपर हिन्दू रह रहे थे जो 2016 तक 1.7 करोड़ ही बचे थे। जाहिर है लाखों हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया और लाखों पलायन करके भारत आ गये। उत्तर प्रदेश मंे भी बड़ी संख्या मंे बांग्लादेश से आए हिन्दू रहते हैं जो अब तक बसाए नहीं जा सके थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत 10 नवम्बर को कैबिनेट की बैठक मंे कई महत्वपूर्ण फैसले लिये हैं। इनमंे एक फैसला पूर्वी पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों को विधिवत बसाने का है। इनको मकान के साथ खेती के लिए जमीन भी दी जाएगी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में गत 10 नवम्बर को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गए। इसमें योगी सरकार ने वर्ष 1970 में पूर्वी पाकिस्तान से हिन्दू बंगाली परिवारों के पुनर्वासन योजना स्वीकृत करने का बड़ा फैसला लिया है। मंत्रिपरिषद ने वर्ष 1970 में पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित 63 हिन्दू बंगाली परिवारों के लिए ग्राम भैंसाया, तहसील रसूलाबाद, जनपद कानपुर देहात में पुनर्वास विभाग के नाम उपलब्ध 121.41 हेक्टेयर भूमि पर प्रस्तावित पुनर्वासन योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी। इस प्रकार पूर्वी पाकिस्तान से आए हिंदू परिवारों के पुनर्वास के लिए मंत्रिपरिषद ने जो अनुमोदन किए उसके अनुसार कृषि कार्य हेतु प्रति परिवार दो एकड़ भूमि का आवंटन किया जाएगा ताकि पुनर्वासित परिवार यहां खेती उपज से अपनी पारिवारिक आय का जरिया बना सके। इसके साथ ही परिवार को आवास के लिए 200 वर्गमीटर भूमि प्रति परिवार देेने का फैसला लिया गया है। इन परिवारों को आवास निर्माण के लिए प्रति परिवार 1.20 लाख रुपये दिए जाएंगे जो मुख्यमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत होंगे।
पूर्वी पाकिस्तान से आये हिन्दुओं को इससे बहुत राहत मिलेगी। इस साल बांग्लादेश अपनी आजादी की 50वीं सालगिराह भी मना रहा है। 26 मार्च का दिन बांग्लादेश के इतिहास के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन उसे पाकिस्तान से अलग एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया था। भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी, पठान, बलोच और मुहाजिर लोगों की बड़ी संख्या रहती थी। जबकि इसके पूर्वी क्षेत्र में बंगाली बोलने वाले लोग रहते थे, इसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था लेकिन इस हिस्से की हमेशा से ही उपेक्षा की जाती रही, जिसके चलते यहां रहने वाले लोगों में पाकिस्तान के प्रति गहरी नाराजगी थी। इसी नाराजगी का परिणाम था पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीबुर रहमान की आवामी लीग पार्टी का गठन। उन्होंने पाकिस्तान से अपने क्षेत्र के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए चुनाव में इस पार्टी ने जीत भी दर्ज की और संसद में पार्टी ने बहुमत हासिल किया लेकिन रहमान को फिर भी जेल में डाल दिया गया। यही वो घटना थी, जिसने पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी। इसके एक साल बाद 1971 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान ने इस हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने की जिम्मेदारी जनरल टिक्का खान को सौंपी। टिक्का खान ने इस मामले को सुलझाने के लिए दमन का सहारा लिया, जिससे स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई। 25 मार्च, 1971 को पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया। इस हिस्से में पुलिस और सेना ने खूब नरसंहार किया। ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तानी सेना ने 30 लाख लोगों को मार दिया था। इस नरसंहार के बाद बांग्लादेश को आजादी दिलाने के लिए मुक्ति वाहिनी का गठन किया गया, जिसमें सैनिक और आम नागरिक दोनों शामिल थे।
इस बीच पाकिस्तानी सेना और पुलिस से बचने के लिए लोगों का भारत की ओर पलायन शुरू हो गया, भारत ने कई बार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि यहां के हालातों में सुधार किया जाए। लेकिन कोई सुधार नहीं किया गया। इसके बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन दिया और बांग्लादेश को आजादी दिलाने के लिए मदद देने का फैसला लिया। जुलाई महीने में मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों की मदद के लिए उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया गया। भारतीय सेना किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयारी कर रही थी। अक्टूबर से नवंबर के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सलाहकारों ने अमेरिका और यूरोप का दौरा किया। उन्होंने दुनिया के सामने भारत का नजरिया रखने की कोशिश की लेकिन अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ बातचीत किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी। जहां भारत चाहता था कि मुजीब रहमान को रिहा किया जाए, तो वहीं निक्सन पश्चिमी पाकिस्तान की सेना को अधिक समय देने की वकालत कर रहे थे। हालांकि भारत ने साफ कर दिया था कि अगर पाकिस्तान की ओर से कोई भी उकसावे की कार्रवाई की गई तो भारत भी मुंहतोड़ जवाब देगा।
इसी बीच 23 नवंबर के दिन पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान ने युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा फिर 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत पर हमला कर दिया। यही वो दिन था जब भारत भी इस युद्ध में शामिल हुआ। पाकिस्तान ने भारत के कई शहरों को निशाना बनाया। अब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई थी। भारत के आगे पाकिस्तान ने 16 दिसंबर के दिन घुटने टेक दिए। पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण के साथ बांग्लादेश का जन्म हुआ और युद्ध समाप्त हो गया।
इतिहास के मुताबिक 1947 में जब प्रायद्वीप में बंटवारा हुआ था तब लाखों हिन्दू परिवार यहाँ से पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्वी भारत में गए थे।
ऐसे ही कई मुसलमान परिवार थे जो उन हिस्सों से आकर बांग्लादेश में भी बस गए थे। इसके बाद 1950 में तब के पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनके बाद अल्पसंखयक हिंदुओं की एक और खेप भारत की ओर रवाना हुई थी। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा का एक दौर 1971 में आया था जब बड़े हिन्दू नेताओं जैसे ज्योतिरमोय गुहा ठाकुरता, गोबिंद चन्द्र देब और धीरेन्द्र नाथ दत्त जैसों की हत्या फौज के साथ हुई मुठभेड़ में हुई थी। आंकड़ों पर गौर करें तो जहाँ बांग्लादेश में 1971 के दौरान लगभग 25 फीसद आबादी हिंदुओं की थी वहीं अब 10 फीसद के आस पास है। ऐसे मंे भारत का कर्तव्य बनता है कि वहां से भगाये गये हिन्दुओं को सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने की व्यवस्था करें।
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