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इनसे सम्मानित हुआ पद्मश्री

इनसे सम्मानित हुआ पद्मश्री

(अचिता-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

अभी पिछले दिनों हमारे देश मंे महान विभूतियों को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इनमंे कई लोग ऐसे हैं जिनके बारे मंे कोई जानता भी नहीं था। कर्नाटक की तुलसी गौड़ा और मिथिला (बिहार) की दुलारी देवी को जब यह पुरस्कार मिला तो लगा कि पद्मश्री स्वयं ही इनके व्यक्तित्व से सम्मानित हो रहा है। जीवन में संघर्ष कर मकाम हासिल करने वाले कुछ गुमनाम नायकों को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म पुरस्कार प्राप्त करने का अवसर मिला। इस मौके पर सुर्खियां चार ऐसे नायक बंटोर कर ले गए जिन्होंने अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नंगे पांव इस पुरस्कार को स्वीकार किया। सोशल मीडिया इन नायकों की तारीफों भरे पोस्ट से भरा है। पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा, संतरा विक्रेता हरेकला हजाब्बा, कृषक राहीबाई सोमा पोपरे और कलाकार दलवयी चलपति राव की राष्ट्रपति कोविंद से नंगे पांव यह सम्मान हासिल करते हुए तस्वीरें वायरल हो रही थीं। इन सभी पद्म पुरस्कार विजेताओं ने अपनी उपलब्धियों के लिए पहचान हासिल की है। अब तक यह ज्यादातर लोगों से छिपी हुई थी। बिहार के मिथिला की दुलारी देवी की कला भी सम्मानित हुई है।

पद्मश्री पाने से पहले पीएम मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और अन्य का अभिवादन करते हुए तुलसी गौड़ा की तस्वीरें वायरल हो गई हैं। कर्नाटक की रहने वाली 72 वर्षीय गौड़ा आदिवासी हैं और वनों की विश्वकोष मदबलबसवचमकपं व िवितमेजे के नाम से जानी जाती हैं। वह कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन छोटी उम्र से ही सरकारी नर्सरियों में काम करते हुए उन्होंने सारा ज्ञान प्राप्त किया। वह उत्तरी कन्नड़ में हलाकी स्वदेशी जनजाति से संबंध रखती हैं। कर्नाटक की पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा को 30,000 से अधिक पौधे लगाने और पिछले छह दशकों से पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल रहने के लिये पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जब वह सम्मान लेने के लिए पहुंची तो उनके बदन पर पारंपरिक धोती थी और पैरों के नीचे चप्पल तक नहीं थी।

कर्नाटक में हलक्की जनजाति से नाता रखने वाली तुलसी गौड़ा का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। स्थिति इतनी चिंताजनक थी कि उन्होंने कभी औपचारिक शिक्षा तक ग्रहण नहीं की। प्रकृति के प्रति प्रेम के चलते वह अपना ज्यादातर समय जंगलों में बितातीं। धीरे-धीरे यह जंगल भी उन्हें पहचानने लगा। पौधों और जड़ी-बूटियों के ज्ञान के कारण आज दुनिया उन्हें ‘जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में जानती है। जीवन के सात से ज्यादा दशक देखने के बाद तुलसी गौड़ा पर्यावरण संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देने के लिए पौधों का पोषण करना और युवा पीढ़ी के साथ अपने ज्ञान को साझा करना जारी रखती हैं। तुलसी गौड़ा एक अस्थायी स्वयंसेवक के रूप में वन विभाग में भी शामिल हुईं, बाद में उन्हें विभाग में स्थायी नौकरी की पेशकश की गई। पद्मश्री तुलसी गौड़ा की सादगी भरी तस्वीर जब सोशल मीडिया पर सामने आई तो लोग मंत्र मुग्ध हो गए। उनकी मेहनत और समर्पण की चर्चाएं होने लगीं।

भारत नाम के यूजर लिखते हैं भारत की आत्मा पुरस्कार ले रही है, यह वो देश है जहां सोने की लंका वाले ब्राह्मणवंशी रावण को जलाया जाता है, और जंगली बनवासी धोती लपेटे राम को पूजा जाता है। भारत में चित्र को नही चरित्र को पूजा जाता है।

वहीं अजय दुबे ने लिखा कि ऐसे किरदारों को जब पदम् पुरस्कार मिलते है तो खुद पुरस्कार का सम्मान, उनकी क्रेडिबिलिटी बढ़ती है। सामान्य दृष्टि में पैर में चप्पल नहीं तन ढकने भर कपड़े नहीं पर उपलब्धि ऐसी देश के 2 सबसे ताकतवर आदमी सामने हाथ जोड़े बैठे है। पत्रकार अभिनव पांडे ने एक अन्य तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा हाड़ मांस का जर्जर सा शरीर, शरीर पर पारंपरिक धोती, हाथ में पद्म श्री और चेहरे पर गजब की खुद्दारी! कर्नाटक से 77 बरस की तुलसी गौड़ा हैं। 30 हजार से ज्यादा पेड़ लगा चुकी हैं। खेत की पगडंडी से चलकर राष्ट्रपति भवन की लाल कालीन पर इन नंगे कदमों का पहुंचना,वाकई सुखद है।

मिथिलांचल की शान मधुबनी की एक और बेटी ने अपनी पेंटिंग की बदौलत न सिर्फ मिथिला बल्कि पूरे बिहार का मान-सम्मान बढ़ाया है। हम बात कर रहे हैं मधुबनी पेंटिंग की मशहूर आर्टिस्ट दुलारी देवी की, जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। मधुबनी जिले के रांटी गांव निवासी दुलारी देवी इस साल पद्मश्री पुरस्कार से नवाजी गई हैं। 54 वर्षीया दुलारी देवी अलग-अलग विषयों पर अब तक तकरीबन 8 हजार पेंटिंग बना चुकी है। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने पर दुलारी देवी काफी खुश हैं, उनकी कामयाबी पर उनके रांटी गांव में खुशी का माहौल है।दुलारी देवी का कहना है कि उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने के लिए तमाम मुश्किलातों से गुजरना पड़ा लेकिन वो चाहती हैं कि उनके गांव की लड़कियों को इस तरह की परेशानियों का सामना न करना पड़े, लिहाजा वो अपने गांव की महिलाओं व लड़कियों को पेंटिंग की शिक्षा देना चाहती हैं। दुलारी देवी को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजे जाने पर उनके परिजन काफी खुश हैं। मधुबनी के रांटी गांव में खेती-बारी के काम से जुड़े दुलारी देवी के भाई परीक्षण मुखिया का कहना है कि उनकी बहन बचपन से ही बहुत मेहनती रही हैं और अपने जुनून और लगन की बदौलत ही उन्होंने इतनी बड़ी कामयाबी पाई हैं। दुलारी देवी का पद्मश्री पुरस्कार

तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है। मल्लाह जाति से आने वाली दुलारी देवी का पद्मश्री पुरस्कार तक का सफर ग्रामीण महिलाओं को प्रेरणा देने वाला है। दुलारी देवी ने कहा कि महज 12 साल में उनकी शादी हो गई थी लेकिन 2 साल बाद ही उनकी शादी टूट गई जिसके बाद वो अपने मायके वापस आ गईं। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने के चलते वो अपनी मां के साथ पड़ोस में रहने वाली मिथिला पेंटिंग की मशहूर आर्टिस्ट महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी के घर झाड़ू-पोंछा का काम करने लगी। इसी दौरान महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी को पेंटिंग करते हुए देखकर वो भी पेंटिंग करने लगीं। (हिफी)
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