सर्वशक्तियों का मूल है गायत्री मंत्र
असंभव को संभव किया जा सकता है , इस मंत्र के माध्यम से
देवताओं के मंत्रों में अपार शक्ति हैं । कई मंत्र ऐसे होते जिनके जपने से हमारे संकट दूर हो जाते हैं।
आइए जानें अलग अलग देवताओं के अलग अलग
मंत्रों के बारे में। धर्मग्रंथों के अनुसार ताकत, सफलता
व इच्छाएं पूरी करने के लिए इष्टसिद्धि बहुत आवश्यक है इष्टसिद्धि का मतलब है कि व्यक्ति जिस देव शक्ति के लिए श्रद्धा और आस्था मन में बना लेता है, उस देवता से जुड़ी सभी शक्तियां, प्रभाव और चीजें उसे मिलने लगती हैं।
इष्टसिद्धि मे मां गायत्री का ध्यान बहुत शुभ होता है। गायत्री उपासना के लिए गायत्री मंत्र बहुत ही चमत्कारी और शक्तिशाली माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक इस मंत्र के 24 अक्षर 24 महाशक्तियों के प्रतीक हैं। एक गायत्री के महामंत्र द्वारा इन देवशक्तियों का स्मरण हो जाता है। 24 देव शक्तियों के ऐसे 24 चमत्कारी गायत्री मंत्र मे से, जो देवी-देवता आपके इष्ट है, उनका विशेष देव गायत्री मंत्र बोलने से चमत्कारी फल प्राप्त होगा। शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व भौतिक शक्तियों की प्राप्ति के लिए गायत्री उपासना सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। गायत्री ही वह शक्ति है जो पूरी सृष्टि की रचना, स्थिति या पालन और संहार का कारण है। वेदों में गायत्री शक्ति ही प्राण, आयु, शक्ति, तेज, कीर्ति और धन देने वाली मानी गई है। गायत्री मंत्र को ' महामन्त्र ' पुकारा जाता है, जो शरीर की कई शक्तियों को जाग्रत करता है। ये देवशक्तियां जाग्रत, आत्मिक और भौतिक शक्तियों से संपन्न मानी गई है। इष्टसिद्धि के नजरिए से मात्र एक मंत्र से ही 24 देवताओं का इष्ट और उनसे जुड़ी शक्ति पाना साधक को सिद्ध बना देता है।
《《 रोचक प्रश्न 》》
प्रश्न - " गायत्री मंत्र का चलते फिरते या यात्रा करते समय जीभ चलाते हुए जाप करना व्यर्थ है या इसका कोई फल मिलेगा ?? "
उत्तर- आत्मीय भाई, मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो प्रकार हैं -
नाद (शब्द) एवं प्रकाश। आध्यात्मिक धरातल पर इनमें से कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र मात्र वह ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं, या मुँह से बोलते हैं। यह ध्वनियाँ तो मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं।
गायत्री मंत्र जप जब पूजन स्थल पर जपें तो उपांशु
(होठ हिले मग़र आवाज़ पास बैठे व्यक्ति को
सुनाई न दे) विधि से करें। जब यज्ञादि करें तो ज़ोर से गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए करें। मन्त्र का नाद अग्नि के प्रकाश में मिलकर अनन्य लाभ देता है।
यात्रा या चलते फ़िरते यदि जीभ हिलाते हुए जप करेंगे
तो नाद ध्वनि अन्य लोगो द्वारा बोली गयी ध्वनि में मिलकर अपना अस्तित्व खो देगी। जबकि मौनमानसिक में किसी अन्य की बोली ध्वनि हमारे भीतर चल रहे मौन मानसिक जप का अस्तित्व खण्डित नहीं कर पाती। यदि ट्रेन यात्रा की बोगी में या रोड पर गाड़ी में यात्रा के दौरान आप अकेले हो और आसपास कोई न हो तो होठ हिलाते हुए जप कर सकते हो। बस ध्यान रहे कि किसी अन्य मानव की ध्वनि आपके मन्त्र जप की ध्वनि में मिले न कम से कम इतनी दूरी हो।
अन्य समय चलते उठते बैठते या कोई भी कार्य करते हुए मौन मानसिक जप करना चाहिए। अर्थात जप में न जीभ हिलनी चाहिए और न ही आवाज बाहर आनी चाहिए। मन ही मन जप होना चाहिए।इस तरह के जप कभी भी कहीं भी किये जा सकते हैं। कोई नियम पालन की आवश्यकता नहीं होती।।अशौच और सूतक के वक्त भी मौन मानसिक जप कर सकते हैं।
मौन मानसिक जप में सूक्ष्म ध्वनियां निकलती हैं, जिन्हें हम अपने भीतर सुनते हैं। इस प्रक्रिया से ब्रेन के अनावश्यक विचारों की सफाई होती है, दिमाग का कुहरा छंटता है। मौनमानसिक जप से उत्पन्न शक्ति प्रवाह नाड़ी तन्तुओं की तीलियों के सहारे सूक्ष्म चक्रों और दिव्य ग्रन्थियों तक पहुंचता है और उन्हें झकझोर कर जगाने, खड़ा करने में संलग्न होता है। जो इन जागृत चक्रों द्वारा रहस्यमयी सिद्धियों के रूप में साधक को मिलती है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि यदि जपयोग को विधिवत् साधा गया होगा तो उसका सत्परिणाम उत्पन्न होगा ही। जप में शब्दों की पुनरावृत्ति होते रहने से उच्चारण का एक चक्र-व्यूह—सर्किल बनता है। जो दिव्य उर्जा उतपन्न करता है।
पातंजलि के ' सादृश्य व आन्तर्य ' का सिद्धांत : मौनमानसिक जप पर भी लागू होता है। मौनमानसिक जप से नकारात्मकता ऊर्जा दूर हटती है और ब्रह्मांड में व्याप्त सकारात्मक ऊर्जा जप कर रहे व्यक्ति की ओर आकृष्ट होती है। ऊर्जा चेतन है अतः मौन मानसिक जप में चेतन स्तर को झंकृत करना आसान होता है।
गायत्री मंत्र के मौन मानसिक जप से उतना ही पुण्य लाभ मिलता है जितना कि उपांशु जप से मिलता है। अतः जब जैसे वक्त मिले मौन मानसिक गायत्री जप करें, इस मौन मानसिक जप में अन्य कोई कर्मकाण्डीय मर्यादा जैसे षट कर्म, देव् आह्वाहन, भोग, पुष्प अर्पण, आसन पर बैठकर इत्यादि के पालन की जरूरत नहीं होती। इसे चलते फिरते उठते बैठते लेटते सोते सूतक इत्यादि में कभी भी कहीं भी जपकर पुण्यलाभ लिया जा सकता है।
《 गायत्री मंत्र के जाप --10 प्रकार के स्वास्थ्य-लाभ 》
क्या आपको पता है गायत्री मंत्र न सिर्फ आपके मन को शांति और पवित्रता प्रदान करता है बल्कि कई प्रकार के बीमारियों को दूर करके स्वस्थ रहने में मदद करता है।
गायत्री मंत्र चार वेदों से आया है और ये 24 शब्दांशों (syllables) से बना है।
गायत्री मंत्र-
ॐ भूर्भुव स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ है ,
जो सीधे आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसकी महत्ता ' ऊँ ' के बराबर मानी जाती है। गायत्री मंत्र के जाप से आपके स्वास्थ्य को कई प्रकार से लाभ पहुँचता है :
☆ मन को शांत करता है :
इस मंत्र का उच्चारण ऊँ से शुरू होता है। जिसके उच्चारण से होंठ, जीभ, तालू, गला और खोपड़ी के पिछले भाग में आवाज प्रतिध्वनित होती है जिससे मन शांत हो जाता है। इस मंत्र के शब्दांशों के उच्चालरण से मन एकाग्र हो जाता है जिससे काम करने की क्षमता बढ़ती है।
☆ प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है :
गायत्री मंत्र के उच्चारण से जीभ, होंठ, स्वरनली, तालु और मस्तिष्क के संबंधित क्षेत्रों पर दबाव पड़ता है जिसके कारण हाईपोतैलामस (hypothalamus) नाम का ग्रंथि सक्रिय हो जाता है जो प्रतिरक्षा क्षमता को उन्नत करने में मदद करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ग्रंथि मन को प्रसन्न करने वाले हार्मोन को निष्कासित करने में मदद करता है, जिससे मन और शरीर का संबंध जुड़ता है। इसके उच्चारण से शरीर का मूल चक्र सक्रिय हो जाता है जो शरीर में ऊर्जा का संचार करने में सहायता करता है।
☆ पढ़ने और एकाग्रता की शक्ति को उन्नत करता है :
द इंटरनैशनल जर्नल ऑफ योग के अध्ययन के अनुसार गायत्री मंत्र के गुंजन से याद रखने की शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है। गायत्री मंत्र से तीन चक्र प्रतिध्वनित होते हैं जिससे मस्तिष्क की एकाग्रता, आँख, साइनस, माथा और पिटूइटरी ग्लैंड और थाइरॉयड ग्लैंड प्रभावित होते हैं।
☆ श्वास लेने की पद्धति को उन्नत करती है :
मंत्र का उच्चारण करते समय गहरी साँस लेनी चाहिए जिससे फेफड़ों का कार्यकलाप उन्नत होता है। गहरी साँस लेने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन मिल पाता है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।
☆ हृदय को स्वस्थ रखने में मदद करता है :
ब्रिटिश मेडकल जर्नल के अनुसार गायत्री मंत्र के जाप से साँस लेने की गति कम हो जाती है जिससे दिल के धड़कन की गति नियंत्रित रहती है और दिल को स्वस्थ रहने में मदद मिलती है।
☆ तंत्रिकाओं (nerve) के कार्य करने की क्षमता उन्नत
होती है :
गायत्री मंत्र के उच्चारण से जीभ, होंठ, स्वर तंत्री और संबंधित क्षेत्र प्रभावित होते हैं जिससे तंत्रिकाओं के कार्य करने की क्षमता बढ़ती है।
☆ तनाव के कारण हुए क्षति को नष्ट करने में मदद
करता है :
इस मंत्र के जाप से तनाव से जो शरीर को क्षति पहुँचती है उस क्षति को पूर्ण करने में मदद करता है। यहाँ तक कि मन को शांत करके तनाव को दूर करने में भी मदद करता है।
☆ मन को शक्ति प्रदान करता है और अवसाद से
दूर रखता है :
इस मंत्र के उच्चारण से मन नियंत्रित, शांत और एकाग्र रहता है। इस मंत्र के उच्चारण से शरीर से एन्ड्रोफीन और आराम देना वाला हार्मोन निकलने लगता है जिससे अवसाद को जिंदगी से दूर रखने में मदद मिलती है।
☆ त्वचा को निखारने में मदद करता है :
गायत्री मंत्र के उच्चारण से चेहरे के मूल जगह प्रभावित होते हैं जिससे रक्त का संचार बढ़ता है और शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। जाप के दौरान गहरी साँस लेने से शरीर में ऑक्सिजन का संचार ज़्यादा होता है जिससे त्वचा ज़्यादा जवान और निखरा नजर आने लगता है।
☆ दमे के लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करता है :
मंत्र के जाप से गहरी साँस लेने पड़ती है और कुछ देर के लिए साँस को रोक कर रखना पड़ता है जिससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और दमे के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।
○●○ 《 गायत्री वन्दना 》 ○●○
ॐकाररूपा त्रिपदा त्रयी च त्रिदेववन्द्या त्रिदिवाधिदेवी । त्रिलोककर्त्री त्रितयस्य भर्त्री त्रैकालिकी सङ्कलनाविधात्री ॥ १॥
त्रैगुण्यभेदात् त्रिविधस्वरूपा त्रैविध्ययुक्तस्य फलस्य
दात्री ।
तथापवर्गस्य विधायिनी त्वं दयार्द्रदृक्कोणविलोकनेन
॥ २॥
त्वं वाङ्मयी विश्ववदान्यमूर्तिर्विश्वस्वरूपापि हि
विश्वगर्भा ।
तत्त्वात्मिका तत्त्वपरात्परा च दृक्तारिका
तारकशङ्करस्य ॥ ३॥
विश्वात्मिके विश्वविलासभूते विश्वाश्रये विश्वविकाशधामे । विभूत्यधिष्ठात्रि विभूतिदात्रि पदे त्वदीये प्रणतिर्मदीया
॥ ४॥
भोगस्य भोक्त्री करणस्य कर्त्री धात्वाव्ययप्रत्ययलिङ्गशून्या । ज्ञेया न वेदैर्न पुराणभेदैर्ध्येया धिया धारणयादिशक्तिः
॥ ५॥
नित्या सदा सर्वगताऽप्यलक्ष्या विष्णोर्विधेः शङ्करतोऽप्यभिन्ना ।
शक्तिस्वरूपा जगतोऽस्य शक्तिर्ज्ञातुं न शक्या करणादिभिस्त्वम् ॥ ६॥
त्यक्तस्त्वयात्यन्तनिरस्तबुद्धिर्नरो भवेद् वैभवभाग्यहीनः । हिमालयादप्यधिकोत्रतोऽपि जनैस्समस्तैरपि लङ्घनीयः
॥ ७॥
शिवे हरौ ब्रह्मणि भानुचन्द्रयोश्चराचरे गोचरकेऽप्यगोचरे । सूक्ष्मातिसूक्ष्मे महतो महत्तमे कला त्वदीया विमला विराजते ॥ ८॥
सुधामरन्दं तव पादपद्मं स्वे मानसे धारणया निधाय । बुद्धिर्मिलिन्दीभवतान्मदीया नातः परं देवि वरं समीहे
॥ ९॥
दीनेषु हीनेषु गतादरेषु स्वाभाविकी ते करुणा प्रसिद्धा । अतः शरण्ये शरणं प्रपन्नं गृहाण मातः प्रणयाञ्जलिं मे
॥ १०॥
○●○ ॥ इति गायत्रीवन्दना समाप्ता ॥ ○●○
☆☆ निवेदक ☆☆
||| शुभ प्रभात एवं शुभकामनाएं ||| ○●○ मानसपुत्र संजय कुमार झा ○●○
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