मिटाकर लोक लाज
--: भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
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जो लोग
न कभी कुछ कहे
न कभी कुछ पुछे
और वे लोग आज
खूब कर रहे हैं खुशामद
मिटाकर लोक लाज
(२)
रहे हमसे दूर
सत्ता के मद में चूर
न लिए कभी हाल
कैसा गुजर रहा काल
रगडते हुए नाक
हो बेचैन बदहाल
(३)
नाक भौं सिकोडने वाले
हाथ जोड मुस्कुरा रहे है
पकड रहे हैं पांव
घुमते हुए घर,गली,गांव
अपनी गरज में
खोज रहे अपनत्व छांव
(४)
आप मेरे हैं
ऐसा कह घेरे हैं
सिर्फ पांच दिन
फिर तो वही तौहीन
हसेगें जोर से वे
कुटिल मुस्कान महीन
(५)
देखकर चुनाव
हर कोई खा रहा ताव
बनने को मुखिया
दे रहा है मनमुताबिक भाव
किसी तरह मत मिले
पलपल बदल रहा है स्वभाव
देने को घाव
(६)
अरे यार
बनों होशियार
वो तेरा नहीं करे शोषण
एसा कुछ विचार
तुम्हारा मत तय करेगा
समाज सजग है या बीमार
(७)
जिसके गले में दिया माला
वही छिनता रहा निवाला
एकबार फिर वह
तैयार है निकालने को दिवाला
पर रहना सतर्क
देखना समझना फर्क
करना चुनाव देना वोट
नहीं तो समय होगा नर्क
चयन तेरा कब्रिस्तान या शिवाला
(८)
बनते भारत भाग्य विधाता
कौन याद करे? नाता
वे पल-पल फलते-फुलते
और सुखते जाते हम मतदाता
वाह रे तंत्र
धन्य है मंत्र
करना मतदान
अधिकार दिया संविधान
मतदान!!महादान!!
तुम चाहे जो हो....रहो
दो मुझको राजकाज
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-वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२
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