जहरीला नाग है नशा
अंधेरी दुनिया को तजकर
जिंदगी रोशनी से चमकाओ
नशा अवगुण की है खान
गर्त में प्यारे मत जाओ
युवा खैनी का रसपान
रगड़ कर गुटखा खाते हैं
सड़क पर इतर कर बीड़ा
जर्दे का पान चबाते हैं
चंगे को मरियल कर देता
मन की सद्बुद्धि हर लेता
चढ़ता है जब सर पर नशा
विनाश खुद का कर लेता
जहरीला नाग ये नशा
आगोश में युवा पीढ़ी है
कारण टीबी कैंसर का
रोगों की पहली सीढ़ी है
बर्बाद जाने कितने रिश्ते
कितने घर फूंक डाले हैं
छीने अबोध बच्चों के
दूध मुख के निवाले है
नचाया जाने कितनों को
नशे में नाचती बोतल ने
छीनकर सुखचैन सारा
दामन भरा मुश्किलों से
ऐसे जहरीले प्राणी से
झट से रिश्ता लेना तोड़
हाथ जोड़कर विनती करूं
बंधुवर नशा करना दो छोड़
रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर कविता है
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