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आखिर कब लोगे अवतार

आखिर कब लोगे अवतार

      ~ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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सहमे सहमे से लोग  यहाँ, 
धरती कांप रही है थर्र थर्र । 
बच्चा बच्चा भयभीत जहाँ, 
आसमां रो रहा है झर्र झर्र ।

प्रभु!कृपा को तरसे संसार, 
आखिर कब लोगे अवतार? 

पर्वतें अविरल आँशु बहाते, 
प्रकृति भी गया है    ठहर। 
अनेकों  वन उजड़ गए  हैं, 
गंगाजल भी हो गया जहर।

भय से यहाँ थम गया वयार, 
आखिर कब लोगे अवतार? 

सेक्यूलरों की  खामोशी से, 
गला घूँट रहा अरमानों का। 
अपराधियों  की  क्रूरता से, 
हो रहा है कत्ल इंशानों का। 

लग रही लाशों की कतार। 
आखिर कब लोगे अवतार? 

धर्मयुग का ध्वज फहराने, 
त्रेता में आए बनकर  राम। 
भय मुक्त  किया जग  को, 
भक्तों के आए बहुत काम। 

श्रधालुओं का लगा कतार, 
आखिर कब लोगे अवतार?

द्वापर में बनकर आए कृष्ण, 
पांडवों को  विजय  दिलाए। 
निर्लजों  से  भरे  दरवार  में, 
एक  नारी की  लाज  बचाए। 

इंशानियत हो रही तार तार। 
आखिर कब लोगे अवतार?
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