Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हे शिक्षक, हे राष्ट्रपति!

हे शिक्षक, हे राष्ट्रपति!

हे शिक्षक,हे राष्ट्रपति!
तिमिराच्छन्न जगत में फिर से
फैलाओ नवज्योति।
हे शिक्षक, हे राष्ट्रपति!
फैलाओ इस देश में फिर से
अपना ज्ञान प्रकाश।
माँग रही तुमसे यह धरती,
माँग रहा आकाश।
देश में अपने गुरुपद की
महिमा घटती जाती है।
अकुलाती धरती कोई
निस्तार नहीं पाती है।
ऐसे में इस देश की कैसे
होगी नवोन्नति-
हे शिक्षक, हे राष्ट्रपति!
संस्करण हैं अब भी माना,
देश में द्रोणाचार्य के।
अंगूठा ही नहीं, निगल लेते
सबकुछ आचार्य वे।
लेकिन हैं अब भी कुछ ऐसे,
टिकी है जिनपर आशा।
गढ़ते ही जाते हैं वे गुरुपद
की नव परिभाषा।
कुछ कर दो,जिससे वे पायें
फिर से बलान्विति-
हे शिक्षक, हे राष्ट्रपति!
हो अपमानित,गुरु ही जब
कर्त्तव्य-च्यूत हो जाएँगे।
बोलो,तब उद्धारक अपना
भला कहाँ से लाएँगे?
यही देश है, जहाँ कभी गुरु
की नित पूजा होती थी।
नियति देश की जिनके बल,
निश्चिंतमना हो सोती थी।
उसी देश के गुरु की देखो,
होती अधोगति-
हे शिक्षक, हे राष्ट्रपति!
-मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द'
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ