मधुमक्खी पालन : कम लागत और अधिक मुनाफा वाला व्यवसाय

मधुमक्खी पालन : कम लागत और अधिक मुनाफा वाला व्यवसाय 

मधुमक्खी पालन कृषि से ही जुड़ा एक व्यवसाय है । जिसमें कम लागत और अधिक मुनाफा है । कृषि से जुड़े लोग या फिर बेरोजगार युवक इस व्यवसाय को आसानी से अपना सकते है । कृषिभूमि आपको यह व्यवसाय करने की राह बताने जा रहा है ।मधुमक्खी पालन एक लघु व्यवसाय है, यह एक ऐसा व्यवसाय है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि शहद उत्पादन के मामले में भारत पांचवे स्थान पर है। मधुमक्खी पालन उद्योग करने वालों की खादी ग्रामोद्योग आयोग मदद करता है। इस व्यवसाय का सीधा संबंध खेती-बाड़ी, बागवानी, फलोत्पादन से है।
मधुमक्खी पालन उद्योग मुख्यतः देश के पर्वतीय क्षेत्रों में विकसित हुआ है। अब कुछ मैदानी प्रदेशों में भी इस उद्योग ने अपने पांव पसारे लिए हैं। उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दक्षिणी राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब तथा तमिलनाडु में इसको बड़े पैमाने पर संचालित किया जाता है। लोग लाखों रुपए प्रति वर्ष इस उद्योग से कमा रहे हैं ।

□ इतिहास
भारत में मधुमक्खी पालन का पुराना इतिहास रहा है। शायद पहाड़ की गुफाओं तथा वनों में निवास करने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा चखा गया प्रथम मीठा भोजन शहद ही था। उन्होंने इस दैवीय उपहार हेतु मधुमक्खियों के छत्ते की खोज की। भारत के प्रागैतिहासिक मानव द्वारा कंदराओं में चित्रकला के रूप में मधुमक्खी पालन का प्राचीनतम अभिलेख मिलता है।

□ परंपरागत मधुमक्खी पालन
भारत में सैकड़ों वर्ष पहले से मधुमक्खी पालन किया जाता रहा है। पुराने ढंग से मिट्टी के घड़ों में, लकड़ी के संदूकों में, पेड़ के तनों के खोखलों में या दीवार की दरारों में हम आज भी मधुमक्खियों को पालते हैं। मधु से भरे छत्तों से शहद प्राप्त करने के लिए छत्तों को काटकर या तो निचोड़ दिया जाता है या आग पर रखकर उबाल दिया जाता है। फिर इस शहद को कपड़े से छान लेते हैं। इस विधि से मैला एवं अशुद्ध शहद ही मिल सकता है, जो कम कीमत में बिकता है। इस प्रकार प्राचीन ढंग से मधुमक्खियों शहद निकालने में कई दोष हैं।

□ वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन
वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन का कार्य भारत में कई वर्ष पहले शुरू हो चुका है। संसार के कई देशों में मधुमक्खियों को आधुनिक ढंग से लकड़ी के बने हुए संदूकों में, जिसे आधुनिक मधुमक्षिकागृह कहते हैं, में पाला जाता है। इस प्रकार से मधुमक्खियों को पालने से अंडे एवं बच्चे वाले छत्तों को हानि नहीं पहुंचती। शहद अलग छत्तों में भरा जाता है और इस शहद को बिना छत्तों को काटे मशीन द्वारा निकाल लिया जाता है। इन खाली छत्तों को वापस मधुमक्षिकागृह में रख दिया जाता है,ताकि मधुमक्खियां इन पर बैठकर फिर से मधु इकट्ठा करना शुरू कर दें।
मधुमक्खी पालन उद्योग करनेवालों की खादी ग्राम उद्योग कई मात्रा में मदद करता है । मधुमक्खी पालन एक लघु व्यवसाय है, जिससे शहद एवं मोम प्राप्त होता है। यह एक ऐसा व्यवसाय है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है। गौर करनेवाली बात यह है कि शहद उत्पादन के मामले में भारत पांचवें स्थान पर है।

□ मधुमक्खी के प्रकार
इस व्यवसाय के लिए चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं। ये हैं- एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला और एपिस फ्लोरिया। इस व्यवसाय के लिए एपिस मेलीफेरा मक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती हैं। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है।
कार्य अनुसार मधुमक्खियों के प्रकार
* रानी मधुमक्खी
अंडे देने का काम रानी मधुमक्खी ही करती है। इन अंडों की रखवाली का काम अन्य मधुमक्खियां करती हैं।
* श्रमिक मधुमक्खियां
श्रमिक मधुमक्खियां छत्ते में सबसे अधिक संख्या में होती हैं। इनके पेट पर कई समांनातर धारियां होती हैं। डंक मारने वाली यही मधुमक्खी होती है। इन मधुमक्खियों की अधिकता पर ही शहद जमा करने की मात्रा भी निर्भर करती है।
* नर मधुमक्खी
नर मधुमक्खी का काम रानी का गर्भाधान करना होता है। इसे और कोई भी काम नहीं करना पड़ता। नर मधुमक्खी छत्तों में जमा किया मधु खाता रहता है। यह श्रमिक मधुमक्खी से कुछ बड़ा और रानी से छोटा होता है।

□ कैसे बनती है मोम
शहद के बाद दूसरा मूल्यवान तथा उपयोगी पदार्थ,जो मधुमक्खियों से मिलता है, वह मोम है। इसी से वे अपने छत्ते बनाती हैं। मोम बनाने के लिए मधुमक्खियां पहले शहद खाती हैं, फिर उससे गर्मी पैदा कर अपनी ग्रंथियों द्वारा छोटे- छोटे मोम के टुकड़े बाहर निकालती हैं।
मधुमक्खियों के शत्रु मोमी कीड़ा,ड्रैगन फ्लाई,मकड़ी,गिरगिट,बंदर, भालू आदि


□ सामग्री
मधुमक्खी पालन के लिए लकड़ी का बॉक्स, बॉक्सफ्रेम, मुंह पर ढकने के लिए जालीदार कवर, दस्तानें, चाकू, शहद, रिमूविंग मशीन, शहद इकट्ठा करने के लिए ड्रम


□ सावधानी
जहां मधुमक्खियां पाली जाएं, उसके आसपास की जमीन साफ-सुथरी होनी चाहिए। बड़े चींटे, मोमभझी कीड़े, छिपकली, चूहे, गिरगिट तथा भालू मधुमक्खियों के दुश्मन हैं, इनसे बचाव के पूरे इंतजाम होने चाहिए।


□ उपयुक्त वातावरण
फूलों की खेती के साथ यह उद्योग अधिक फायदेमंद होता है । जिससे 20 से 80 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो जाती है। सूरजमुखी, गाजर, मिर्च, सोयाबीन, पॉपीलेनटिल्स ग्रैम, फलदार पेडमें जैसे नींबू, कीनू, आंवला, पपीता, अमरूद, आम, संतरा, मौसमी, अंगूर, यूकेलिप्टस और गुलमोहर जैसे पेडवाले क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन आसानी से किया जा सकता है ।


□ उपयुक्त समय
मधुमक्खी पालन के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है, लेकिन नवंबर से फरवरी का समय तो इस व्यवसाय के लिए वरदान है।


□ लागत
पचास डिब्बे वाली इकाई पर करीब दो लाख रुपए तक का खर्च आता है ।
* Income from Honey Bee Farming :
मार्किट में पुरे हनी बी कम ही मिलता है और 1 कप आर्गेनिक हनी का दाम आसानी से रस 400 से 700 तक बिक सकता है l
- 10 Honey Bee Box
- 40 Kg per box x 10 Box = 400 Kg Honey
- Rs 350 Kg x 400 Kg = Rs 1,40,000 ( Income )
- Expenses (Rs 3,500 x 10 box) = Rs 35,000
- Net Profit = 1,05,000 per 10 Boxes
[ 100 Honey Bee Box ]
- 40 Kg per box x 100 Box = 4000 Kg Honey
- Rs 350 Kg x 4000 Kg = Rs 14,00,000 (14 Lakh Rupees)
- Expenses (Rs 3,500 x 100 box) = Rs 3,50,000
- Miscellaneous Expense = Rs 1,75,000 (including worker, traveling etc)
- Net Profit = 8,75,000


अगर बड़े level पर मधुमक्खी पालन की जाये तो आप कुछ ही सालों में लखपति बन सकते है| इसके लिए बस आपको प्रकृति(nature) से प्यार, काम के प्रति समर्पण और धैर्य रखना होगा l


□ ऋण-व्यवस्था
इस उद्योग के लिए सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से लोन सुविधा उपलब्ध करवाई है। इस व्यवसाय के लिए 2 से 5 लाख रुपए तक का लोन उपलब्ध है, चूंकि यह उद्योग लघु उद्योग श्रेणी के अंतर्गत आता है। इस उद्योग की जानकारी के लिए उद्यान विभाग से भी संपर्क कर सकते है l
□ शहद के लाभ
- शहद शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
- शहद धमनियों और खून की सफाई करता है ,गले के संक्रमण में भी लाभदायी है।
- शहद का एक चम्मच ताजे मक्खन के साथ खाने से बुखार नहीं होता।
- बच्चों को शहद देने से उनकी याददाश्त बढ़ती है।
- खांसी, जुकाम, पाचन क्रिया, नेत्र विकार,रक्तचाप और सौंदर्य प्रसाधनों में इसका प्रयोग होता है ।


□ अन्य तथ्य
- मधुमक्खियों को 1 किलो शहद इकट्ठा करने के लिए 1 लाख,95 हजार, 713 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है।
- 1 किलो शहद के लिए मधुमक्खियां 40 लाख,14 हजार फूलों का रस चूसती हैं।
- रोजाना एक मक्खी 25 किलोमीटर का सफर करती है।


□ मधुमक्खियों के उत्पाद
शहद, मोम, रॉयल जेली, पराग, प्रोपलेक्सीन
भारत में वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन :
आज संसार के कई देशों में मधुमक्खियों को आधुनिक ढंग से लकड़ी के बने हुए संदूकों में, जिसे आधुनिक मधुमक्षिकागृह कहते हैं, पाला जाता है। इस प्रकार से मधुमक्खियों को पालने से अंडें एवं बच्चेवाले छत्तों को हानि नहीं पहुँचती। शहद अलग छत्तों में भरा जाता है और इस शहद को बिना छत्तों को काटे मशीन द्वारा निकाल लिया जाता है। इन खाली छत्तों को वापस मधुमक्षिकागृह में रख दिया जाता है, ताकि मधुमक्खियाँ इनपर बैठकर फिर से मधु इकट्ठा करना शुरू कर दें।
वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन का प्रारंभ भारत में कई वर्ष पहले हो चुका है। आज दक्षिण भारत में यह धंधा काफी फैल चुका है। सैकड़ों मधुमक्षिकागृह वहाँ पर मधु उत्पादन के लिये बसाए जा चुके हैं। अब भारत के कई राज्यों की सरकारें मधुमक्खी पालन के धंधे की उपयोगिता को समझने लगी हैं और इसको फैलाने का प्रयत्न कर रही हैं। इस धंधे के लिये अभी सारा क्षेत्र भारत में खाली पड़ा है।


□ आधुनिक मधुमक्षिकागृह :
जैसा ऊपर लिखा जा चुका है, यह एक लकड़ी का बना संदूक होता है। इसके दो खंड होते हैं। नीचे के खंड को शिशु खंड कहते हैं। इसमें रखे छत्ते में अंडे, बच्चे तथा स्वयं मक्खियों के लिये शुद्ध शहद एवं पराग संचित रहता है। शिशु कक्ष के ऊपर मधु कक्ष होता है, जिसमें मधुमक्खियाँ केवल शहद ही जमा करती हैं। मधुकक्ष से शहद के भरे छत्तों को निकालकर यंत्र द्वारा शहद निकाल लिया जाता है।


□ मधुमक्खी पालन प्रारंभ करना :
मधुमक्खी पालन प्रारंभ करने से पहले यह अच्छा होगा कि इसके संबंध में उपलब्ध पुस्तकों या पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कर लिया जाए।


□ मधुमक्खियों की किस्में :
भारत में चार प्रकार की मधुमक्खियाँ पाई जाती हैं। इनमें से सबसे बड़ी को भँवर या डिंगारा कहते हैं। यह ऊँचे पेड़ों या इमारतों पर खुले में केवल एक ही छत्ता लगाती हैं। मधु जमा करने में दूसरी किस्में इसकी बराबरी नहीं कर सकतीं। अंग्रेजी में इसे एपिस डॉरसेटा एफo (Apis dorsata F.) कहते हैं। इसका डंक अधिक लंबा एवं अत्यंत विषैला होता है। यह प्राय: गरम स्थानों में रहती है। इसके पालने के प्रयत्न किए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल सकती है।


दूसरी प्रकार की मधुमक्खी को अंग्रेजी में एपिस फ्लोरिया एफo (Apis florea F.) कहते हैं। केवल इसी जाति को लोग पालते हैं। चीन और जापान की मधुमक्खियाँ भी इसी के अन्तर्गत आ जाती हैं। यह मधुमक्खी आम तौर पर बंद अँधेरी जगहों में ही कई समांतर छत्ते लगाती है, जैसे पेड़ के खोखलों में, दीवार और छत के अंदर तथा चट्टानों की दरारों में। यह प्राकृतिक हालत में पाई जाती है। पुराने ढंग से लोग इसे मिट्टी के घड़ों, लकड़ी के संदूकों, तनों के खोखलों एवं दीवार की दरारों में पालते हैं।


तीसरी प्रकार की मधुमक्खी को अंग्रेजी में एपिस फ्लोरिया एफo (Apis florea F.) कहते हैं। आम तौर पर इस मधुमक्खी को पोतींगा कहते हैं। इसका भी एक ही छोटा सा छत्ता होता है। यह झाड़ी या मकान की छतों पर रखी लकड़ियों आदि में अपना छत्ता लगाती है। इसके छत्ते से एक बार से अधिक से अधिक दो, तीन पाउंड तक शहद निकल आता है। इसका डंक छोटा एवं कम विषैला होता है।


चौथी प्रकार की मधुमक्खी को अंग्रेजी में मैलीपोना या डैमर (Mellipona or Dammer) कहते हैं। यह मधुमक्खी अमरीका में अधिक पाई जाती है। अँधेरी जगहों में, जैसे पेड़ के खोखलों और दीवार की दरारों आदि में, यह अपना छत्ता बनाती है। इसके छत्तों से मधु बहुत ही कम मात्रा में प्राप्त होता है। इसका मधु आँख में लगाने के लिये अच्छा माना जाता है।


□ मधुमक्षिकागृह के निवासी एवं उनके कार्य :
मधुमक्षिकागृह के भीतर रहनेवाली मधुमक्खियाँ कार्य तथा प्रकार के अनुसार तीन तरह की होती हैं :
(1) रानी,
(2) श्रमिक और
(3) नर मक्खी।
रानी ही एकमात्र सारे गृह में अंडे देनेवाली होती है। इसका काम दिन और रात अंडे देना ही होता है। श्रमिक और रानी का जन्म एक ही प्रकार के अंडे से होता है। जब भी श्रमिक मधुमक्खियाँ किसी लार्वें को रानी बनाना चाहती हैं, तो वे उसे एक विशेष प्रकार का भोजन खिलाना शुरू कर देती हैं। इस भोजन को अंग्रेजी में रॉयल जेली (royal jelly) कहते हैं। वह लार्वा, जिसे अपने पूरे जीवनकाल तक यह भोजन खिलाया जाता है, रानी बन जाता है। अन्य लार्वे, जिन्हें यह भोजन पूरा नहीं मिल पाता है, श्रमिक बन जाते हैं। श्रमिक बननेवाले लार्वों को केवल दो तीन दिन तक ही रॉयल जैली दिया जाता है, फिर इनका पोषण एक साधारण भोजन द्वारा ही किया जाता है। रानी जो अंडे देती है। वे दो प्रकार के होते हैं :
(क) श्रमिक और
(ख) नर।
वे अंडे, जिनसे नर निकलते हैं, रानी गर्भाधारन कराए बिना ही दे सकती है। लेकिन श्रमिक उत्पन्न करनेवाले अंडे वह केवल गर्भाधान होने के बाद दे सकती है। रानी को डंक तो होता है, लेकिन इसका उपयोग वह तभी करती है जब किसी दूसरी रानी से उसकी लड़ाई होती है।
श्रमिक मधुमक्खियाँ मधुमक्षिकागृह में सबसे अधिक संख्या में होती हैं। इनके पेट पर कई समांतर धारियाँ होती हैं। डंक मारनेवाली यही मधुमक्खी होती है। इन मधुमक्खियों की अधिकता पर ही शहद जमा करने की मात्रा भी निर्भर करती है। मधुमक्षिकगृह के अंदर और बाहर का भी सभी कार्य श्रमिक मधुमक्खियाँ ही करती हैं। श्रमिक मधुमक्खी का डंक आरीनुमा होता है। जब वह डंक मारती है, तो डंक मनुष्य के शरीर में गड़ा ही रह जाता है। कुछ समय बाद वह श्रमिक मधुमक्खी मर जाती है। मधुमक्खी के डंक लगने से शरीर में सूजन हो जाती है और दर्द भी होता है, पर इसका जहर हानिकारक नहीं होता। गठिया, जोड़ों के दर्द आदि के लिये इसे उपयोगी समझा जाता है। श्रमिक मधुमक्खी की आयु यों तो चार, पाँच मास तक की होती है, लेकिन जब उन्हें काम अधिक करना पड़ता है, तब वे कठिनाई से पाँच, छह सप्ताह तक जीवित रह पाती हैं।


नर मधुमक्खी का काम रानी का गर्भाधान करना होता है। इसे और कोई भी काम नहीं करना पड़ता। मधुमक्षिकागृह के अंदर ही वह छत्तों में जमा किया मधु खाता रहता है। दोपहर के समय यदि मौसम अच्छा हो, तो बाहर घूमने के लिये उड़कर चला जाता है। यह श्रमिक मधुमक्खी से कुछ बड़ा और रानी से छोटा होता है, इसके शरीर पर अधिक बाल होते हैं। सिर एवं सिर पेट काले, गोल एवं चपटे आकार के बने होते हैं। जब फूल काफी खिले होते हैं तब मधुमक्षिकागृह में नर की संख्या बढ़ जाती है। जब फूल कम होते हैं और मधु भी छत्तों में अधिक नहीं होता, उस समय नर मधुमक्षिकागृह में बहुत ही कम या बिलकुल ही नहीं दिखाई पड़ते हैं।की जिन कोठरियों में नर मधुमक्खियाँ पैदा होती हैं, वे श्रमिक मधुमक्खियों की कोठरियों से कुछ बड़ी होती हैं और उन्हें छत्ते के निचले भाग में ही बनाया जाता है। श्रमिक मधुमक्खियाँ रानी के गर्भाधान काल में नर मधुमक्खियों को पैदा होने देती हैं, उसके बाद वे स्वयं ही उन्हें मारकर समाप्त कर देती हैं।
□ मोम
शहद के बाद दूसरा मूल्यवान तथा उपयोगी पदार्थ, जो मधुमक्खियों से मिलता है, वह मोम है। इसी से वे अपने छत्ते बनाती हैं। मोम बनाने के लिये मधुमक्खियाँ पहले शहद खाती हैं। फिर उससे गरमी पैदा कर अपनी ग्रंथियों द्वारा छोटे छोटे मोम के टुकड़े बाहर निकालती हैं।


□ मधुमक्खियों के शत्रु :
प्रत्येक प्राणी की तरह मधुमक्खियों के भी अनेक शत्रु होते हैं। मधुमक्खियों के पालनेवाले को उनका ज्ञान होना अति आवश्यक है, ताकि वह उनसे मधुमक्खियों की रक्षा कर सकें। इनके मुख्य शत्रु निम्नलिखित हैं :
1. मोमी पतिंगा, या मोमी कीड़ा,श् 2. अंगलार, या बर्रे, 3. चींटी और चींटा, 4. चुथरौश् 5. भलू, 6. ड्रेगन फ्लाई, 7. मकड़ी, 8. बंदर तथा 9. गिरगिटान।


□ प्रमुख प्रजातिया :
भारतीय उपमहाद्वीप में मधुमक्खियों की प्रमुख चार प्रजातियां हैं। ये हैं- एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसटा और एपिस फ्लोरिया। इस व्यवसाय के लिए एपिस मेलीफेरा मक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती हैं। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है।

□ सावधानी :
जहां मधुमक्खियां पाली जाएं, उसके आसपास की जमीन साफ-सुथरी होनी चाहिए। बड़े चींटे, मोमभक्षी कीड़े, छिपकली, चूहे, गिरगिट तथा भालू मधुमक्खियों के दुश्मन हैं, इनसे बचाव के पूरे इंतजाम होने चाहिए। इसके अलावा मधुमक्खियों में मेख (गुजिया) का रोग लग जाता है, जिससे भ्रूण सडऩे लगता है और मधुमक्खियां अपंग पैदा होती हैं।

□ सरकार से ऋण :
पिछले कुछ वर्षों में मधुमक्खी पालन की ओर लोगों का रुझान बढ़ा है। इस उद्योग के लिए सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से लोन सुविधा उपलब्ध करवाई है। इस व्यवसाय के लिए दो से पांच लाख रुपए तक का लोन उपलब्ध है। यह उद्योग लघु उद्योग श्रेणी के अंतर्गत आता है।

□ जरूरी सामान :
मधुमक्खी पालन के लिए लकड़ी का बॉक्स, बॉक्सफ्रेम, मुंह पर ढकने के लिए जालीदार कवर, दस्तानें, चाकू, शहद, रिमूविंग मशीन, शहद इकट्ठा करने के ड्रम का इंतजाम जरूरी है।

□ कीटनाशक का प्रयोग खतरनाक :
मधुमक्खियां किसान की मित्र हैं, वे फसलों के परागण में सहायक होती हैं। लेकिन अधिकतर किसान अपनी फसल की सुरक्षा के लिए खेत में कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे मधुमक्खियों को परागण में दिक्कत होती है। कीटनाशकों में इमीडाक्लोप्राइड रसायन पाया जाता है, जिससे मधुमक्खियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है। ऐसा 2010 में अमेरिका में हुए एक प्रयोग में भी साफ हो चुका है।

□ गुणकारी शहद :
दूध के बाद शहद में वे सभी तत्व पाए जाते हैं जो संतुलित आहार में होने चाहिए। शहद आंखों की रोशनी बढ़ाता है, प्यास कम करता, कफ को घोलकर बाहर निकालता और शरीर में विषाक्तता को कम करता है। यह वात और कफ को नियंत्रित करता है तथा रक्त व पित्त को सामान्य रखता है। शहद के अलावा मधुमक्खी पालकों को आय के लिए मोम भी सह-उत्पाद के रूप में मिल जाता है, जिससे मधुमक्खियां अपने छत्ते बनाती हैं।
□ सावधानी :
जहां मधुमक्खियां पाली जाएं, उसके आसपास की जमीन साफ-सुथरी होनी चाहिए 1 बड़े चीटें , मोमभक्षी कीड़े, छिपकली, चूहे, गिरगिट तथा भालू मधुमक्खियों के दुश्मन है, इनसे बचाव के पूरे इंतजाम होने चाहिए।

□ प्रबंधन : एक वर्ष तक मधुमक्खी से मधु उत्पादन हेतु मकरंद एवं पराग उपलब्ध हो, इसके लिए, इस बात की जानकारी आवश्यक हो कि फसल एवं फलदार वृक्षों आदि में फूल कब से कब तक उपलब्ध रहता है। साथ ही साथ यह भी मालूम होना चाहिए कि वृक्ष पर लगने वाले फूलों की गुणवत्ता कैसी है। वैसे वृक्ष या पौधे जिनके फूलों में मकरंद की मात्रा अधिक होती है, अत्याधिक उपयोगी होते हैं तथा दोनों एक-दूसरे के लिए कैसे उपयोगी हैं, का विवरण इस प्रकार है-
उपयुक्त पौधे : सूरजमुखी, गाजर, मिर्च, सोयाबीन, नींबू, आंवला, पपीता, अमरूद, आम, संतरा, मौसंबी, अंगूर, यूकेलिप्टस और गुलमोहर जैसे पेड़ वाले क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन आसानी से किया जा सकता है।
□ उपयुक्त समय :
मधुमक्खी पालन के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है, लेकिन नवंबर से फरवरी का समय तो इस व्यवसाय के लिए वरदान है।
- शुरू में यह व्यवसाय कम लागत से छोटे पैमाने पर करना चाहिए।
- मधुमक्खी पालने की जगह समतल होनी चाहिए और भरपूर मात्रा में पानी, हवा, छाया व धूप होनी चाहिए।
- मधुमक्खी पालने की जगह के चारों ओर 1 से 2 किलोमीटर तक अमरूद, जामुन, केला, नारियल, नाशपाती व फूलों के पेड़ पौधे लगे होने चाहिए।
- मधुमक्खी पालन का सब से सही समय फरवरी से नवंबर तक का होता है इस दौरान मधुमक्खियों के लिए तापमान सबसे सही होता है और इसी मौसम में रानी मक्खी ज्यादा तादाद में अंडे देती है।

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