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राष्ट्र निर्माता की राष्ट्रीय मर्यादा

शिक्षक दिवस पर विशेष

राष्ट्र निर्माता की राष्ट्रीय मर्यादा

महर्षि सब कुछ छोड़ कर शिक्षक का पद स्वीकार करते थे और लगातार तपस्या के बहाने शोध किया करते थे ।
राष्ट्र में सबसे अधिक गौरवशाली कोई है तो वह है शिक्षक ।शिक्षक की गरिमा अपरंपार है ।हमारी भारतीय संस्कृति में शिक्षक यानी आचार्य को वह सम्मान प्राप्त था कि बड़े-बड़े सम्राट ,चक्रवर्ती ,बड़े-बड़े राजा शिक्षकों यानी आचार्यों के आगे नतमस्तक होते थे और आचार्य की बात,आचार्य का आदेश अकाट्य होता था । राजा आचार्य के सामने अपने राज्यासन पर नहीं बैठते थे । उनके सामने या तो खड़े रहते थे या उन्हें बैठा कर अपने दूसरे आसन पर बैठते थे ।यह शोध का विषय है कि आज भारत का वह विश्व गुरुत्व कहाँ चला गया ? यहाँ तो आचार्य यानी शिक्षक एक सरकारी कर्मचारी की तरह काम कर रहे हैं ।आदेश दाता आदेश का गुलाम बना हुआ है । हन्हें दो जून की रोटी के लिए सरकारी आदेश की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है ।
परन्तु अन्य देशों में ऐसी स्थिति नहीं है ।आज भी अमेरिका में दो ही व्यक्ति को अति विशिष्ट व्यक्ति माना जाता है जिनमें पहला वैज्ञानिक और दूसरा शिक्षक । फ्रांस में न्यायालय में भी सिर्फ शिक्षकों को कुर्सी पर बैठने की आजादी है यानी अधिकार है ।जापान में शिक्षक को किसी संगीन केस में भी गिरफ्तार करने के पूर्व सरकार से अनुमति लेनी होती है ।कोरिया में शिक्षकों को एक कैबिनेट मंत्री के बराबर अधिकार और सम्मान प्राप्त है ।लेकिन भारत जो प्राचीन काल में गुरुओं के बल पर, आचार्यों के बल पर ही विश्व गुरु था ,आज पदच्यूत एवँ आभाहीन दीखते हैं । शांति प्रिय राष्ट्र को गणेश की उपासना करनी चाहिए कार्तिकेय की नहीं । गणेश की उपासना शांति की उपासना है जो शिक्षक के अधीन है ।गणेश शुभंकर हैं और कार्तिकेय सेनापति हैं ।युद्ध के देवता, सेनापति की आवश्यकता सिर्फ युद्ध के समय ही होती है ।जिस देश के शिक्षक मर्यादित होंगे उस देश में शांति होगी ।अपने शिक्षण -बल से अपने आचार्य के गुरुत्व से कार्तिकेय की सेवा को दूर रख सकते हैं ,अनिवार्य युद्ध को भी टाल सकते हैं ।परंतु ऐसा हो नहीं रहा है ।इसका कारण सरकार ने अपने शिक्षक की मर्यादा को तार-तार कर दिया है ।शिक्षक सरकारी कर्मचारी कहलाने लगे। शिक्षक ने भी अपनी मर्यादा खो दी है ।वे भूल गए कि संपूर्ण शिक्षा जगत शिक्षा के लिए ही समर्पित है ।बच्चों को शिक्षा देकर बच्चों के माध्यम से राष्ट्र का निर्माण शिक्षक कर रहे हैं ।आज इतने पदाधिकारी हैं ,यहां तक कि मंत्री भी ,सरकार भी उनकी सेवा के लिए उनकी सुरक्षा के लिए उनके कष्ट निवारण के लिए उनकी सहायता के लिए है ।अगर वे इस गरिमा को भूल जाते हैं तो राष्ट्र के पतन को कोई रोक नहीं सकता ।इसमें शिक्षक को भी अपने कर्तब्य पथ को बुहारना होगा । इसलिए अग्रसोची भविष्य द्रष्टा संत विनोबा भावे ने कहा था -शिक्षकों को सहायता मिलनी चाहिए ,स्वायत्तता मिलनी चाहिए ।उनके जीवनयापन का भार सरकार के पास रहे लेकिन अधिकार सरकार के पास न हो, शिक्षकों पर नियंत्रण सरकार के पास नहीं हो ।जैसे न्यायालय में जीवन यापन का की ब्यवस्था सरकार करती है लेकिन न्यायालय स्वतंत्र होते हैं ।उसके न्यायाधीश अपने कर्तव्य में स्वतंत्र होते हैं ।शिक्षकों को उसी प्रकार स्वतंत्रता मिलनी चाहिए ।भारत में पहले से ही आचार्यों को सम्मान मिलता रहा है वही सम्मान आज भी मिलना चाहिए ।
भारत में शिक्षकों को सम्मानित करने का कार्य बहुत पहले से, बीसवीं शताब्दी के छठे दशक से ही चल रहा है । लेकिन चीन में 34 वां शिक्षक दिवस 10 सितंबर 2020 को मनाया जाना था ,जो नहीं मनाया जा सका । राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन पेइचिंग में 2018 में ही हुआ था ।इसमें चीन के राष्ट्रपति एवं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी चिनफिंग ने कहा था कि शिक्षक मानव आत्मा के अभियंता हैं और मानव सभ्यता के उत्तराधिकारी ।शिक्षकों को समाज में सम्मान मिले और सामाजिक स्थान पर उन्हें सर्वोच्च सम्मान दिया जाए ।कोरिया में यह शिक्षक दिवस15 मई को मनाया जाता है । 2006 से यह कार्यक्रम सम्मानित करने के साथ आरंभ किया गया है ।15 मई को वहां सार्वजनिक रूप से सभी को अपने शिक्षकों को सम्मानित हेतु छुट्टी रहती
है ।उल्लेखनीय योगदान देने वाले शिक्षकों को पुरस्कार एवं उपहार विद्यार्थी भी देते हैं और सरकार भी । बीमार और लाचार शिक्षकों के घर जाकर सम्मान पहुंचाया जाता है । कार्यक्रम बड़े ही उत्साह के साथ सम्पन्न होते हैं ।भारत की देखा- देखी में वहां एक नई परंपरा आरंभ की गई है कि छात्र शिक्षकों के पैर धोते हैं एवं पैरों में मालिश करते हैं ।दक्षिण अमेरिका में रंगारंग कार्यक्रम होता है ।अर्जेंटीना में 11 सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति प्रसिद्ध शिक्षक मोमिंगो पोस्टीनो सारकिएंटो की पुण्यतिथि पर मनाया जाता है ।1943 में पनामा में पैन अमेरिकन शिक्षा संगठन की स्थापना की गई थी । ब्राजील में 15 अक्टूबर को ,15 अक्टूबर 1527 को राजा पेट्रो ने प्रस्ताव लेकर पूरे देश की निरक्षरता को समाप्त करने का संकल्प लिया था ।इसके लिए स्कूलों की स्थापना की गई थी ।इसलिए 15 अक्टूबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है ।पेरु में 6 जुलाई को शिक्षक दिवस मनाया जाता है ।यूनेस्को में 5 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है । यूनेस्को में 5 अक्टूबर को इसलिए मनाया जाता है कि 5 अक्टूबर 1966 को इसी दिन एक शिक्षक के सुझाव पर अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ संगठन की स्थापना की गई थी ।
जहाँ तक शिक्षकों के आर्थिक सहयोग की बात है ,आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन( ओईसीडी) ने एक रिपोर्ट जारी की -एजुकेशन एट ए ग्लांस ।उसमें उसने कहा कि शिक्षकों को किसी तरह का आर्थिक सहयोग प्राप्त नहीं है ।उन्हें सिर्फ वेतन के रूप में जो राशि मिलती है वही उनकी आय है ।विभिन्न देशों में विभिन्न प्रकार वेतन निर्धारित हें-लक्जमबर्ग में एक शिक्षक को कम से कम 80000 डॉलर मिलता है वही सबसे अच्छे शिक्षक 137000 डॉलर (वार्षिक) पाते हैं ।जापान में एक शिक्षक जो तुरत नियुक्त होते हैं उन्हें $30000 मिलता है ।चेक रिपब्लिक ,हंगरी ,पोलैंड के सबसे अच्छे शिक्षक की सैलरी $26000 से भी ऊपर है। स्विट्जरलैंड में $103000 ,जर्मनी में $84000 ,बेल्जियम में $76000 ,कोरिया में $75 000 ,ऑस्ट्रिया में $75 000 ,यूनाइटेड नेशंस में $68000 , नीदरलैंड में $66000 ,कनाडा में $66000 और आयरलैंड में $65000 मिलते हैं ।इस तरह उस रिपोर्ट के अनुसार सबसे कम पेमेंट करने वाले शिक्षक चेक रिपब्लिक में $20000, पोलैण्ड में $26000, हंगरीमें $27000 ,टर्की में $32000 ,ग्रीस में $35000 ,चीली में $38000 ,इजराइल में $39000, स्कॉटलैंड में $45000 ,स्लोवेनियामें $45000 , स्वेडन में $46000 पाते हैं ।कहीं-कहीं पुरुष और महिला शिक्षकों में वेतन विसंगति है ।ऑस्ट्रिया में पुरुष अध्यापक को $66000 और महिला अध्यापक को $62000 मिलते हैं ।इसी प्रकार नीदरलैंड में पुरुष अध्यापक को $63000 और महिला अध्यापक को $60000 प्राप्त होते हैं ।भारत की स्थिति हम देखें तो एक शिक्षक को संप्रत्ति ₹600000 रु मिलते हैं ।तुलनात्मक रूप से विश्व बैंक के रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति उच्च आय वाले व्यक्तियों की आए $1500 है जबकि अमेरिका में औसत सैलरी 5738 डॉलर है जो लगभग 87 लाख 85 हजार रुपए के बराबर है ।वहां अधिक और कम वेतन के बीच काफी अंतर है ।स्विट्जरलैंड भी इस मामले में पीछे नहीं है ।इसकी तुलना में भारत में तो शिक्षक आर्थिक और सामाजिक किसी रूप से सम्मानित नहीं हैं ।नई शिक्षा नीति आशान्वित कर रही है ।इसमें कितनी सफलता मिलती है यह भी शिक्षक पर ही निर्भर है ।शिक्षक अध्ययन अध्यापन के अतिरिक्त अन्य कार्यों में संलग्न रहते हैं ,तरह-तरह के संगठन भी हैं ,उसके बाद भी उनकी स्थिति अच्छी नहीं हो पा रही है ।

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