सांस्कृतिक नवचेतना का स्तम्भ हिंदी
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारत में हिन्दी एवं देवनागरी को विविध सामाजिक क्षेत्रों में आगे लाने के लिये हिंदी आन्दोलन में साहित्यकारों, समाजसेवियों नवीन चन्द्र राय, श्रद्धाराम फिल्लौरी, स्वामी दयानन्द सरस्वती,पंडित सत्यनारायण शास्त्री, पंडित गौरीदत्त,भारतेंदु , निराला जी , मैथिलीशरण गुप्त , महावीर प्रसाद द्विवेदी , पत्रकारों एवं स्वतंत्रतता संग्राम-सेनानियों महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन आदि का विशेष योगदान था। युगान्तकारी ने देश के सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पहचान कर हिन्दी के लिये संघर्ष , सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में उसका व्यवहार सुदृढ और मतरूकात का सिलसिला खत्म करके हिन्दी को उसी मार्ग बढ़ने की प्रेरणा दी जिस पर बंगला, मराठी, तेलुगू आदि पहले से बढ़ रहीं थीं। हिन्दी का विकास हमारे राष्ट्रीय जीवन के लिये आवश्यक और अपरिहार्य था। विशाल हिन्दी प्रदेश का सांस्कृतिक विकास उर्दू के माध्यम से सम्भव न था। तुलसी , सुर , कवीर , रसखान , जायसी , विहारी आदि ने हिंदी के विकास में श्रेय है । सन् १९२८ में ख्वाजा हसन निजामी ने कुरान का हिन्दी अनुवाद कराया था । 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा के निर्णयानुसर हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा गयी । भारत मे क्षेत्रों में हिंदी भाषा बोले जाने से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए थे। वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। गांधी जी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था।स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर 14 सितम्बर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया है । भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की अनुच्छेद 343(1) में संघ की राष्ट्रभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी तथा संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया । हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार राजेन्द्र सिंहा का 14 सितंबर को 50-वां जन्मदिन होने के कारण हिन्दी दिवस के लिए श्रेष्ठ माना गया था। हालांकि जब राष्ट्रभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया । अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद हिन्दी भाषा विश्व में तीसरी बड़ी भाषा है। हिन्दी को 177 देशों का समर्थन मिला है ।भारत की पहचान , जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक हिंदी है। सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल इक्कीस भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है। हिन्दी दिवस के मौके पर राजभाषा विभाग द्वारा सी डैक के सहयोग से तैयार किये गये लर्निंग इंडियन लैंग्वेज विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (लीला) के मोबाइल ऐप का लोकार्पण भी किया गया। इस ऐप से देश भर में विभिन्न भाषाओं के माध्यम से जन सामान्य को हिंदी सीखने में सुविधा और सरलता होगी तथा हिंदी भाषा को समझना, सीखना तथा कार्य करना संभव हो सकेगा। विदेश मंत्रालय द्वारा ‘‘विश्व हिंदी सम्मेलन’’ और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का कार्य किया जा रहा है । विश्वभर में करोड़ों की संख्या में भारतीय समुदाय के लोग एक संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को एक नई पहचान मिली है। यूनेस्को की सात भाषाओं में हिंदी को भी मान्यता मिली है। भारतीय विचार और संस्कृति का वाहक होने का श्रेय हिन्दी को ही जाता है। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है। सितंबर माह में प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ही अभिभाषण दिया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए कार्यरत है। हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है । हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं । सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी का इस्तेमाल बढ़ रहा है । विश्व में 175 विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही है। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। तकनीकी के युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हिंदी में काम को बढ़ावा और देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है । भाषा रूपी नदियाँ प्रवाहित होकर हिंदी रूपी सागर में समाहित है । भाषा निर्पेक्ष और समन्वय की भाषा हिंदी है । जान संस्कृति नवचेतना का स्तम्भ हिंदी है ।
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