बालकृष्ण झांकी
नंद के नन्दन, भर आँख में अंजन,
भाल पै चन्दन, विचरत शोभित हैं;
उस देवकीनंदन, कंस निकन्दन पर-
गोकुल की मैया, कित मोहित हैं!
इन कजरारी अखियन पर भारी-
सखियों की अखियाँ लोहित हैं;
बसुदेव लला बालकला देखन-
पाटलिपुत्र के सारे लोभित हैं!
मोर पंख मयूख मुकुट संग-
कान के कुण्डल कित दमकत हैं;
हाथ में मुरली, डगमग पग से-
इत-उत जो झूमत, चमकत हैं!
एक रूप बालकृष्ण के धर -
यशोदा के लला सब विलसत हैं;
मुख में ले बैन, चमकावत नैन-
देखहू सब प्यारे हुलसत हैं!
झांकी में पधारे प्यारे कृष्ण के-
नयनों के सब मतवारे हैं;
नाचत-गावत, सब धूम मचावत-
कृष्ण सों ही सारे न्यारे हैं!
राधा को लख-लख सगरे राधा-
अपने-अपने मन को तारे हैं;
इस झांकी की अपूर्व छटा में-
किसके हिय फूटे नहीं हुलारे हैं!
- योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र)
जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ!
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