खेल : शारीरिक क्षमता का विकास
सत्येन्द्र कुमार पाठक
जहानाबाद । मानवीय जीवन की क्षमताओं का विकास खेल है । विश्व के देशों में खेल परंपराओं का सम्मान करने के लिए कबड्डी, मैराथन, बास्केटबॉल, हॉकी आदिपर राष्ट्रीय खेल दिवस हैं। सच्चिदानंद शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान की ओर से आयोजित राष्ट्रीय खेल दिवस पर खेल संगोष्टी के में जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि खेल इंसानियत का समन्वय आवर शारीरिक क्षमता का विकास का विकास के लिये द्योतक है । भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त को हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती पर मनाया जाता है। 1928, 1932 और 1936 में भारत के लिए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद सिंह के जन्मदिन का प्रतीक है। मेजर ध्यान चंद ने 400 से अधिक गोल किये थे । मेजर ध्यानचंद जन्मदिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस समारोह में राष्ट्रपति राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार नामित लोगों को प्रदान करते हैं । देश में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस पर राष्ट्रीय खेल पुरस्कार भी दिए जाते हैं । मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में एक राजपूत परिवार में हुआ था । मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1928, 1932 और 1936 में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते थे । भारत सरकार ने ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था ।1928 में पहली बर ओलंपिक ,1928 में नीदरलैंड्स में खेले गए ओलंपिक में ध्यानचंद ने 5 मैच में सबसे ज्यादा 14 गोल किए और भारत को गोल्ड मेडल जिताया था । 1928 के करिश्मे को दोहराने में ध्यानचंद को परेशानी नहीं हुई । 1932 में लोस एंजलिस में खेले गए ओलंपिक में जापान के खिलाफ अपने पहले ही मुकाबले को भारत ने 11-1 से जीत लिया. इतना ही नहीं इस टूर्नामेंट के फाइनल में भारत ने यूएसए को 24-1 से हराकर एक ऐसा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जो बाद में साल 2003 में जाकर टूटा. इस ओलंपिक में एक बार फिर भारत गोल्ड मेडलिस्ट बना ।साल 1936: में अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े ध्यानचंद के लिए ये ओलम्पिक सबसे ज्यादा यादगार रहने वाला था. ध्यानचंद की कप्तानी में बर्लिन पहुंची भारतीय टीम से एक बार फिर गोल्ड की उम्मीद थी । भारतीय टीम इस टूर्नामेंट में भी उम्मीदों पर खरी उतरी और विरोधी टीमों को पस्त करते हुए फाइनल तक पहुंची. फाइनल में भारत की भिड़ंत जर्मन चांसर एडोल्फ हिटलर की टीम जर्मनी से होनी थी ।इस मैच को देखने के लिए खुद हिटलर भी पहुंचे थे. लेकिन हिटलर की मौजूदगी या गैर-मौजूदगी से भारतीय टीम या ध्यानचंद के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला था. हालांकि इस मैच से पहले भारतीय टीम तनाव में थी क्योंकि इससे पहले वाले मुकाबले में भारतीय टीम को जर्मनी से हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन मैदान पर उतरने के बाद वो तनाव खुद बा खुद दूर हो गया ।मैच के पहले हाफ में जर्मनी ने भारत को एक भी गोल नहीं करने दिया. इसके बाद दूसरे हाफ में भारतीय टीम ने एक के बाद एक गोल दागने शुरु किए और जर्मनी को चारो खाने चित कर दिया. हालांकि दूसरे हाफ में जर्मनी भी एक गोल दागने में सफल रही जो कि इस ओलंपिक में भारत के खिलाफ लगा एकमात्र गोल था । हिटलर ने मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक चैक करने के लिए मंगवाई ।बर्लिन में 1936 में हुए ओलंपिक खेलों के बाद उनके प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया था. हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ से हॉकी खेलने का प्रस्ताव दिया था परन्तु मेजर ध्यानचंद ने इसे ठुकरा दिया और कहा कि उनका देश भारत है और वे इसके लिए ही खेलेंगे ।मेजर ध्यानचंद ने साल 1948 में अपना आखिरी मैच खेला और अपने पूरे कार्यकाल में कुल 400 से अधिक गोल किए एक रिकॉर्ड है ।मेजर ध्यानचंद को भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान और 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया । मेजर ध्यान चंद के जन्म दिवस 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस खिलाड़ियों के लिये स्वर्णिम है ।
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