बताओ तो सही?
~ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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अहंकारी सुख की जिंदगी जी नहीं पाता,
अपने आप से छलावा क्यों कर रहे हो?
बद से बदतर अब हो चली है जिंदगियाँ,
सभी रो रहे हैं और तुम मुस्कुरा रहे हो?
देकर जख्म निरीहों को तुम यह बताओ ,
क्या चैन की जिंदगी तुम जी रहे हो?
उजाड़ कर चमन के फूलों को सारे,
कंटीले रेगनी का फसल लगा रहे हो?
तुम्हारे बाद भी कोई आयेगा खानदान में ,
क्या मिलेंगे जो ऐसा कर्म किए जा रहे हो?
अपनी जिंदगी के लिए सोंचो या ना सोंचो ,
अगली पीढी को क्यों बर्वाद कर रहे हो?
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