संवादहीनता
संवादहीनता इस तरह बढ़ने लगी,
ज़िन्दगी खुद, खुद में सिमटने लगी।
मोबाइल और टी वी का चलन हुआ,
दूरियां घर के भीतर भी बढ़ने लगी।
पहले लिखते चिट्ठियां कुछ बात होती,
मोबाइल पर काम की बात होने लगी।
सोशल मीडिया के बहाने लिखने लगे,
Thank you की जगह th होने लगी।
भारतीय संस्कृति का दर्शन रोज होता,
क्या- कहां बात अंग्रेजी में होने लगी।
बैठे हुए हैं सामने ही सब परिवार जन,
बात सबसे वाह्टस एप पर होने लगी।
दौर ऐसा बदला कि सबके बीच तन्हां,
तन्हाइयों को भी अब तन्हाई होने लगी।
अ कीर्ति वर्द्धन
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