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पापी पेट का सवाल है

पापी पेट का सवाल है

          ~ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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हमारी बिल्ली हमहीं को
 म्याउ! 
देखती जिधर 
दूध का  कटोरा
मुँह से गिरने लगता पानी
घात लगा कर बैठी रहती
मिले मौका तुरंत सटोरा। 
बिल्ली भी अब समझती है
आ गया नया परिवेश
बन रहा है भवन विशेष
सुरक्षा कवच के घेरे में
नहीं रहना इस फेरे में
अब यहाँ दाल गलना 
हो गया है मुश्किल 
भला बिल्ली 
क्या भूख से मरती? 
रहा चूहा मिलने से
कहाँ है अब घर मिट्टी का
कहाँ है जगह
पुआल और कुट्टी का
छप्पन चूहा खाकर 
अब चली हज को, 
घात लगाकर रहने वाली
बिल्ली
देखने लगी है
दिल्ली
शायद ज्ञात नहीं
दिल्ली
देश की राजधानी है
जहाँ के पार्क हो
या हो लालकिला
चूहों की बहुतायत है
पर पहले से डटे हैं 
बड़े बड़े बिल्ला
महत्वाकांक्षा 
कुछ नया कर गुजरने की
अथवा
बिल्लों की जूठन पर पेट पालने की
जलन से मरता 
का न करता
बिल्ली भी हो गई है बुढी 
भुखे पेट धस गई है ठुढी
अंतरात्मा में बबाल है
जो भी हो 
पापी पेट का सवाल है।
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