बोलो और तुम्हें क्या दूँ
दे दी अपनी सारी खुशियाँ,
खुद को मैं लुटाकर तुम्हें,
बोलो और तुम्हें क्या दूँ ,
सब कुछ गवाँकर तुम्हें।
फिर भी रहती शिकायत तुम्हें,
मैं तुम्हें प्यार करता नहीं,
दे दी अपनी संतान तुमको,
अपनी शक्ति खोकर तुम्हें।
तेरे लिये जोरू का गुलाम कहलाया,
अपने मन से कभी जी नहीं पाया,
दे दी अपनी सारी धन दौलत,
अपनी चाहतों का गला घोंटकर तुम्हें।
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अरविन्द अकेला
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