गया ;चिकित्सा की परंपरा और प्रकर्ष
डा रामकृष्ण
चिकित्सा जीवन की आवश्यकता है।शरीर है तो इसे स्वस्थ रखने का दायित्व भी शरीर धारिओं का ही होता है। वैसै स्वस्थ रहने केलिए अनेक प्रकार की पद्धतियाँ परंपरा से ही चली आरही हैं जिनमें योग ,आयुर्वेद ,प्राकृतिक चिकित्सा भारतीय मूल पद्धति के रूप में रही हैं ।बाद में जुड़ी यूनानी और उसके बाद जुड़ी होमियो पैथी एवं एलोपैथी।
आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति सबसे पुरानी पद्धति रही है ।धन्वन्त्री को आयुर्विज्ञान के देवता के रूप में माना गया है। इन्ही से इस पद्धति का आरंभ मना जाता है।महर्षि चरक,सुश्रुत जैसे देव तुल्य ऋषियों ने मानव चिकित्सा के क्षेत्र में अपूर्ब योगदान किया जिससे मानव जीवन की रक्षाान्य हुए हैं। में अत्यधिक सहायता मिली है। इस क्षेत्र में उपचार के औषधीय तथा शल्य दोनों प्रकार सर्व मान्य हैं ।किंतु प्राय': औषधिक उपचार विशेष प्रचलित रहा है। गयि एख ऐसा स्थान है जहाँ प्राचीन और नवीन सभी चिकित्सा पद्धतियाँ विद्यमान हैं।आरंभिक चरण में वैद्यों के घरों में ही निवास और चिकित्सालय दोनों होतें थे।बाद में चिकित्सा केलिए अलग व्यवस्था की गयी होगी।चूकि आयुर्विज्ञान का उन्होने अध्ययन कर इस कार्य मे रूचि ली इसलिए वैद्य कहलाए।आयुर्वेदस्तु पंचमो वेद:के अनुसार भी वैद्य हुए। आयुर्वेदम् विदन्ति इति वैद्य:।गया में बड़े यशस्वी वैद्यों में क ई रहे जिनमे श्रीकृष्णमिश्र पुरानी गोदाम,उनके बिद उनके पुत्र लक्ष्मी प्रसाद मिश्र,फिर उनके पुत्र ईश्वरी प्रसाद मिश्र।
थीरेन्द्र मिश्र उर्फ बुल्लू वैद्य ,पीपर पा़ती,हीरा वैद्य
धामी टोला, हरदेव मिश्र मेखलौट गंज जो संस्कृत महाविद्यालय,खरखुरा, मे आयुर्वेद चिकित्सक और अध्यापक भी रहे तथा प्राचार्य पद पर रहते हुए संसार से मुक्त हुए।
हरिश्चन्द मिक्ष दानूलाल जैन दातव्य औषधालय,रमना।
नंदलाल मिश्र।हरिद्वार मिश्र,
दारोगा प्रसाद मिश्र,पूर्व प्राध्यापक भागलपुर आ म विद्लय।कारू वैद्य ऊपरडीह।
वेदनाथ मिश्र,ब्राह्मणी घाट।लक्ष्मीनाथ मिश्र डबूर,उनके पुत्र डा अवैद्यनाथ मिश्र।गंगाधर मिश्र जहानावाद (ये सभी अब उपलब्ध नहीं)।वर्तमान में डा रामदत्त मिश्र,डा विवेकानंद मिश्र,डा शशांक शेखर मिश्र आदि अथर्ववेदीय औषधियों के द्बारा उपचार मे संलग्न हैं।
आयुर्वेदिक दवाओं केथोक व खुदरा विक्रेताओं में वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन,डाबर डा एस के बर्मन,,साथना औषधालय(दूकान बंद हो ग ई)झंडू फार्मेसी आदि का प्रशंसनीय योगदान रहा।
मेरा संपर्क प्राय:सभी वैद्यों से रहा है।अत:कह सकता हूँ कि ज्ञान की विशिष्टता और यशस्विता में ताल मेल हो ही आवश्यक नहीं। बहुत अच्छे जानकार हो सकते हैं पर रोगी को लाभ नहीं तो उस के लिए तो ऐसे चिकित्सक व्यर्थ हुए। यह बात अन्य प्रणालियों में भी समझा जा सकता है।अंग्रेजी शासन में जब गया साहेबगंज था यहाँ पिंडदान कें लिए आने वाले यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर गोलपत्थर के पास टिकारी राज द्बारा उपलब्ध करायी गया जमीन मे१८८७ईमें एक चिकित्सालय का निर्माण कराया गया।यह निर्माण बंगाल के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर स्टुवर्र्ट केल्विन वेएले की स्मृति में हुआ था।उस समय आरंभिक अवस्था मे इसकी एक प्रबंध समिति थी जिसमें राय बिदेश्वरी प्रसाद राय काशीनाथ जैसेगण्य मान्य लोग थे।आगे चलकर यह प्रबंध नगरपालिका ,जिला परिषद् और फिर प्रांतीय प्रशासन में चला गया।धीरे-धीरे विकास होनें लगा। डाक्टरों की संख्या भी बढ़ी। बाद में लेडी एलमेमोर के नाम पर एक जनानी अस्पताल भी बना। फिर संक्रामक रोग ्एवं कुष्टर रोग अस्पतताल भी चालू हुए ।अब तो इस शहर मे निजी अस्पतालो ं की भरमार है।मेडिकल कालेज के अभाव भी डा विजय कुमाम सिंह ने दूर कर दिया। अनुग्रह नारायण सिंह इनके नाना थे स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रसी नेता,सो उनकी स्मृति मे इस कालोज तथा अस्पताल कका नाम रखा गया अनुग्रह नारायण मेमोरियल मेडिकल कालेज और अस्पताल।जब तक यह डा विजय की देख रेख में रहा प्रशंसनीय रहा।साफ-सफाई,अनुशासन,पढाई रोगियों की सेवा और उनके साथ व्यवहार स्मरणीय रहा।किंतु जैसे ही सरकार का हाथ बढ़ा गुणात्मकता का ह्रास आरंभ होगया जो समाचार माध्यमो के लिए आए दिन विषय बनता गया। चिकित्सकीय संदर्भ बाजारवादी जाल में उलझता चला जा रहा।
गया में होममियो पैथी चिकित्सा प्रणाली भी मजेदार रही है।प्रसिद्ध। डाक्टरो में ईश्वरी प्रसाद, मुरारपुर, राजा बाबू अदर गया,प्रभात कुमार रामसागर, बांके बाबू पीपरपांती,केशव प्रसाद सिन्हा गोलपत्थर के अतिरिक्त अनेक अनाम,गौण भी इस कार्य मे यशस्वी हुए हैं।अनेक ऐसे डाक्टर जिनका न कोई दवाखाना नकोई वोर्ड,न इस्ताहार पेशा दूसररा पर शौक होमियो चिकित्सा। एक घटना उदाहरण के लिए रख रहर हूँ--एक थे सूर्यवंश सहाय पेशे से वकील ,रूचि होमियो पैथी चिकित्सा।एक छ:माह की बच्ची के कान के पास ऐसा घघाव हुआ कि लगता वह दलो शिर वाली है ।गया के सारे डाक्टर हार चुके थे,शल्य चिकित्सा भी कम उम्र के कारण संभव नहीं था।मृत्यु सामने खड़ थी । ऐसी हलते में संयोग वश कचहरी से लौटते हुए उन्होंने बच्ची को देखा उसके माता-पिता को ढाढस बँधाया,और पहली खुराक लेकर तीनदिन तक देखने के लिए कहकर चले गये। तीन दिन बाद स्वयं पहुँचे,फिर दवा दी । चले थेये।इसी तरह पंद्रह दिन बीत गये पिता की चिंता स्वाभाविक थी ।एक दिन कचहरी जा कर मिल आए। उसी शाम वकील साहव आए कई क्षणों तक बच्ची और घाव को निहा ते रहे ।बिना कुछ कहे लेकिन मुसकुराते हुए चले गये। दूसरे ही दिन बच्चों की नाक से खून, मवाद की तरह निकलना शुरू हुआ।घवराहट के साथ रोना -थोना शुरू हुआ।वकील साहव गोसाई बाग गली में ही रहते थे। घवराहट मे जा कर हाल सुनाया गया।वकील साहब जोर से हँसने लगे।उनकी पत्नी ने डाटने के लहजे में कहा,क्या कर रहे हैं आप।ये घवरराए है और आप हंँस रहे है। हाँ, आज बहुत खुश हूं। मैं जीत गया। फिर बोले,कह देना आज शाम तक आधी बिमारी दूर। लौट कर आए तो यहाँ घाव का जो भाग कड़ा लगता था मुलायम होने लगा था।।वकील साहब कचहरी जाते समय देखते गये।तीन दिन में ही घव बेर के बरावर हो गया।एक महीने बादतो लगता भी नहीं कि कभी घाव था।ऐसा चमत्कार !सहायजी चलते फिरते चिकित्सक थे।जेब मे रखने लायक कपडे़ का बनाक ई खानों ववाला पर्स था जिस मे अनेक छोटी पतली शीशियाँ होतीं हमेशा साथ रखते।ऐसे ही मेरे अभिन्न डा सच्चिदानन्द प्रेमी जी हैं।बाजाप्ता डिग्री है।दवाखाना नहीं दवा बता दी तो रामबाण ।अब तो सरकारो का ध्यान भी आयुर्वेद ,यूनानी,होमियो पैथ पर है । डिग्री धारको की नियुक्ति हो रही है। लेकिन इस पेशे में पहले की तरह सेवा भाव का सर्वथा अभभाव है।कुछ है तो व्यावसायिकता।
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