माटी में बीज मिलाने से पहिले
माटी में बीज मिलाने से पहिले,
खुद ही माटी में मिल जाये वो।
मन खिन्न अन्न उगाने की खातिर,
दिल्ली, दिल्ली चिल्लाये वो।
जहर खाने को पैसे पास नहीं,
बौने बीज कहाँ से लाये वो।
बादल आ गये सरपर उसके,
खलिहान को कैसे जाये वो।
गिरवी रख दिये गहने पहने,
इससे ज्यादा क्या कर पाये वो।
हमको जिंदा रखने की खातिर,
मुनियां को भूखे--पेट सुलाये वो।
बरखा की दस्तक के पहिले,
बैल जोत खेत की जानिब जाये वो।
बारिश के पहिले आंसू टप टप बरसें,
झटपट बाबूजी कहकर हंसाये वो।
ये मौसम का हाल है साहिब बारिस का,
गर्मी आने के पहिले ही जल जाये वो।
सर्दी की हालत बयां मैं कैसे करूं,
फटी कथरी में पैबंद ना लगा पाये वो।
माटी में बीज मिलाने से पहिले,
खुद ही माटी में मिल जाये वो।
राजेश लखेरा, जबलपुर।
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