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एक मुठ्ठी आसमान

एक मुठ्ठी आसमान 

अशांत हृदय के इस
     पतझड़ में
खुशियों का बसंत मिल
        जाए
प्रकृति के प्रचंड ताप में
शीतलता का कमल
      खिल जाए
     महामारी के इस
        अंधकार में
     संवेदनाओं के इस
         बाजार में
     अमन,चैन की इस
          दरकार में
    एक मुठ्ठी आसमान
          मिल जाए
आकांक्षाओं का अंत
          नहीं
कामनाएं स्वतंत्र नहीं
प्रतिस्पर्धा खामोश नहीं
परमशक्ति का खौफ
         नहीं
      मानवता को मत
        कर कलंकित
     स्तब्ध रह गए
      मन आतंकित
     मत करो स्वयं
     के हाथ रक्त-रंजित
फिज़ा हो जाए
  फिर रोमांचित
रोटी, कपड़ा और
      मकान
जीवन के हैं
  ये आयाम
छोड़ दे बुरे 
काम तमाम
जाना है तुझको
  परम धाम

डॉ राखी गुप्ता
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