Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

1857 की इस महान वीरांगना को कोटि कोटि नमन (पूण्यतिथि १८ जून पर सादर नमन)

1857 की इस महान वीरांगना को कोटि कोटि नमन (पूण्यतिथि १८ जून पर सादर नमन)

1857 की इस क्रांति के इस चरण को झांसी के किले में रानी के साथ ही अपनी आंखों से देखने वाले मराठी लेखक विष्णु भट्ट गोडसे ने अपनी किताब में ये सब लिखा है। लगभग 12 दिन तक चली इस लड़ाई में वो झांसी के किले में रहकर इस रोयें खड़ करने वाली घटना के साक्षी बने।
अपने समय की ये इकलौती किताब है जो किसी भारतीय ने लिखी है।
बाकी सब ब्यौरे अंग्रेज़ों की तरफ से लिखी गई किताबों और पत्रों में ही मिलते हैं।
गौरतलब है कि झांसी की रानी को अंग्रेज़ों ने 1857 की क्रांति में लड़ने वाला ‘इकलौता मर्द’ बताया था। लेकिन बिठूर की यज्ञशाला में बिन मां की लड़कों के साथ खेलती छबीली को नहीं पता था कि एक दिन दोनों हाथों में तलवार लिए दांतों से लगाम पकड़े वो भारतीय जनमानस में महाभारत के अर्जुन से भी बड़ी योद्धा बन जाएंगी।
विष्णु भट्ट ने आंखों देखी इस लड़ाई का जो जिक्र किया है, वो पढ़कर शरीर में रोमांच भर आता है।लक्ष्मीबाई सिर्फ तलवार भांजने वाली योद्धा नहीं थीं, जनता के प्रति उनके मन में असीम स्नेह था।रानी ने जीवन का पहला और आखिरी युद्ध अंग्रेजों के साथ ही लड़ा था।किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि रानी ऐसी जबर्दस्त फाइट रखेंगी।विष्णु भट्ट ने लिखा है कि रानी रोज खूब कसरत करती थीं। उनके घोड़ा कुदाने के अभ्यास को देखने जनता पहुंच जाती थी।अगर जनता की बात करें तो विष्णु ये भी लिखते हैं कि किले में बम-गोलों की वर्षा के दौरान भी जनता दीवारों से चिपककर युद्ध देखने का प्रयास करती थी। इस महान वीरांगना को कोटि कोटि नमन
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ