माँ में बसता है भगवान
हर व्यक्ति को अपने जीवन के रंगमंच पर कई किरदारों को निभाना पड़ता है। रिश्तों की उधेड़बुन के इस नाटक में कुछ का अभिनय इतना अच्छा होता है कि वो हर किरदार में फिट बैठ जाते हैं और कुछ किरदार स्वत: ही ऐसे दमदार होते हैं, जिसमें हर कोई फिट बैठ जाता है।
माँ, औरत का एक ऐसा किरदार है, जिसमें संपूर्णता, पवित्रता, त्याग, ममता, प्यार सब कुछ निहित होता है। शायद ही दुनिया का कोई अन्य रिश्ता ऐसा हो, जिसमें इतनी सारी खूबियाँ एकसाथ होती हों।
एक औरत के रूप में संतान को जन्म देकर माँ अपने कुल का मान बढ़ाती है तो वहीं उसे संस्कारों का पाठ पढ़ाकर मर्यादा की आचार-संहिता में जीना सिखाती है। माँ शब्द जितना मीठा है, उतनी ही मीठी माँ की ममता भी।
माँ, औरत का एक ऐसा किरदार है, जिसमें संपूर्णता, पवित्रता, त्याग, ममता, प्यार सब कुछ निहित होता है। शायद ही दुनिया का कोई अन्य रिश्ता ऐसा हो, जिसमें इतनी सारी खूबियाँ एकसाथ होती हों।
अपनी संतानों के लिए हमेशा बेहतर और भला सोचने वाली माँ हर वक्त इसी चिंता में डूबी रहती है कि मेरा बच्चा कहाँ और कैसा होगा।
माँ की अँगुली पकड़कर स्कूल जाने से लेकर शादी-ब्याह रचाकर संतान होने के बाद तक भी हम भले ही उम्र में बहुत बड़े, समझदार व गंभीर हो जाते हैं परंतु माँ की चिंता हमारे लिए तब भी वैसी ही रहती है, जैसी कि बचपन में होती थी।
अपनी हर साँस के साथ माँ अपनी संतान की सलामती व तरक्की की दुआएँ माँगती है। उसकी पूजा-पाठ, आराधना, व्रत-उपवास, आशीर्वाद हर चीज में बस दुआएँ शामिल होती हैं अपने परिवार की सलामती की।
मैं तो यही कहूँगी कि यदि ईश्वर ने धरती पर जन्म लिया है तो बस माँ के रूप में। यदि आपके पास भी माँ है तो दुनिया के सबसे सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक है। अपने पास इस माँ रूपी ईश्वर को हमेशा साथ रखें।
पूरे विश्व में औरत को शक्ति का रूप माना गया है। धर्मशास्त्रों में भी स्त्री को जो सर्वोच्च सम्मान दिया गया है, वह माँ का है। इसीलिए जिसने भी पुरुषों को जन्म देने वाली माँ को गलत निगाह से देखा है, वह हमेशा पतन की तरफ गया है। यही कारण है कि माँ बनना औरत का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है और मातृत्व से महिलाओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। परन्तु भारतीय समाज में एक महिला को तब तक अधूरा समझा जाता है, जब तक की वह मातृत्व का सुख प्राप्त नहीं कर लेती। इसीलिए हर परिवार चाहता है कि विवाह के बाद जल्दी से जल्दी बहू माँ बन जाए। क्योंकि प्रकृति कहती है कि हर माँ अपने परिवार को वारिस सौंपे, ताकि आने वाले समय में उनकी पीढ़ियाँ बढ़ती जायें।
हिन्दू धर्म में भी मातृ-वंदना का गुणगान किया गया है तथा हर नारी को आदर और सम्मान से माँ पुकारना इस संस्कृति की पहचान बन गया है। सिर्फ एक माँ ही होती है, जो अपने बच्चों की गलतियों को माफ करती है और उसे गलत रास्ते पर जाने से रोकती है। लेकिन माँ को यह क्षमाशीलता का गुण प्रकृति ने दिया है। इसलिए हम कह सकते हैं कि माँ त्याग, क्षमा और निःस्वार्थ सेवा की देवी होती है फिर माँ और बच्चे का रिश्ता एक अटूट बंधन में बंध जाता है, जो दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जाता है।
‘मातृदेवो भव’ इस धरती पर सबसे बड़ी देवी है। गर्भ के धारण करने के बाद से लेकर सामर्थ होने तक माँ बच्चे के लिए जो कुछ करती है, उसको शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। बचपन में मेरी माँ मुझसे पृछती थी–
किंस्पिद गुरूतरां भसेः
यानी धरती से भारी वस्तु क्या है ?
तब मेरा उत्तर होता था : –
माता गुरूतरा भमेः
यानी माँ की गरिमा पृथ्वी से भी भारी है। क्योंकि पृथ्वी सब सहती है। उसे खोदिये-कोड़िये, उस पर थूकिये, कुछ भी कीजिए, सब कुछ चुपचाप सहती रहती है। लेकिन वह जड़ तत्व है। परन्तु माँ तो चेतन है, फिर भी वह सब कुछ सहती है। इसलिए माँ के ऋण से मुक्त होना किसी भी व्यक्ति के लिए असंभव है।
माँ सुख में, दुःख में, हर हाल में अपने बच्चे के साथ सीना तान तक खड़ी होती है। माँ अमीर की हो या गरीब की, माँ तो माँ होती है। लेकिन अब समय बदल चुका है, हालात बदल चुके हैं और इसके साथ ही आज की नारी भी बदल चुकी है। जो कभी कुशल गृहणी थी, आज वह ‘करियर वुमैन’ बन गई है। जबकि कुछ तो ‘सुपर वुमैन’ भी बन गयी हैं। इतना सब होने के बाद भी माँ का प्यार हर युग में बराबर रहा है। परन्तु वह अब युवा दिखने की चाहत में, आत्मनिर्भर होकर बिना किसी रोक-टोक के जिन्दगी जीना चाहती है। अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना चाहती है। परन्तु जब सारे रिश्ते-नाते टूट जाते हैं, तब वह अपने बच्चों को अपने आँचल में छिपा कर रोती है। उनका पालन-पोषण करती है। लेकिन ‘आधुनिक होने के बाद भी वह अपनी ममता से मुँह नहीं मोड़ पायी।
कहते हैं कि भगवान हर समय बच्चों के पास नहीं रह सकते और उन्होंने इसी कमी को पूरा करने के लिए माँ का सृजन किया है। यही वजह है कि आपको दुनिया में प्रेमिका मिल जायेंगी, दोस्त मिल जाएंगे ! लेकिन माँ जैसा प्यार कहीं नहीं मिल सकता।
तभी तो किसी शायर ने कहा है–
काशी देखी, मथुरा देखा और देखा हरिद्वार।
नासिक घूमा, गया घूमा और घूमा सारा संसार।।
चंडी पूजी, मन्सा पूजी और पूजा माता का दरबार।
लेकिन कोई तीर्थ नहीं है ऐसा, जैसा माँ का प्यार।।
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