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कल फिर होगी भोर

कल फिर होगी भोर

कहर बढ़ रहा है इधर,उधर चुनावी रंग। 
मौन हुई संवेदना ,देख आपके ढंग।।
     
मरे-जिए कोई भले,शिकन न उसके माथ।
सिर्फ हांकता ही रहा,हिला-हिला कर हाथ।।

दर्द देखकर गैर का,दर्द न जिसको होय।
पाकर अवसर आपदा,हाथ रहा है धोय।
        
कितना है ए बेहया,लिए जान पर जान।
श्रद्धांजलि दे-दे थका,दूं क्या और प्रमाण।।

जीवन के सब हौसले,हुए आज-कल पस्त।
मृत्यु रोज़ ताण्डव करे,किन्तु आप हैं मस्त।।

शर्म-शर्म से झुक गयी,देख आपके कर्म। 
शर्म नहीं आई तुझे,कितना है बेशर्म।।

रहे पूजते रात-दिन,पत्थर के भगवान।
विनती भी सुनता नहीं,खोले सिर्फ़ दुकान।।
          
काम न आई प्रार्थना,आस्थाएं बेचैन।।
हृदय विदारक दृश्य लखि,बरस रहे हैं नैन।।

मत रखिए इनसे कभी,कोई भी उम्मीद। 
मद में सत्ता आज-कल,सोई गहरी नींद ।।
         
त्राहि-त्राहि हर ओर है,जिसका ओर न छोर।
रात अंधेरी आज है,कल फिर होगी भोर।।
                          **
 ~जयराम जय 
'पर्णिका',बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर,कानपुर -208017(उप्र)
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