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बाह्य दीप से आंतरिक ब्रह्मज्योति की यात्रा है दीपावली

बाह्य दीप से आंतरिक ब्रह्मज्योति की यात्रा है दीपावली

लेखक: अवधेश झा

दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को आती है, जब सूर्य तुला राशि (शुक्र की राशि) में और चंद्रमा वृश्चिक राशि में होता है। इस दिन सूर्य और चंद्र दोनों नीचस्थ स्थिति में माने जाते हैं, जो सामान्यतः ऊर्जा और प्रकाश के अभाव का संकेत है। किन्तु इसी अंधकार की चरम स्थिति में प्रकाश का आह्वान किया जाता है — यही दीपावली का ज्योतिषीय रहस्य है।

ज्योतिष कहता है — जब सूर्य और चंद्र दुर्बल हों, तब दीपक जलाना आत्म ज्योति के जागरण का प्रतीक है।

“तमसो मा ज्योतिर्गमय” — उपनिषद् का यही संदेश इस पर्व में मूर्त होता है।

ग्रह स्थिति और आध्यात्मिक संयोग: दीपावली के समय शुक्र ग्रह (लक्ष्मी का कारक) और बृहस्पति (धर्म और ज्ञान के कारक) विशेष प्रभाव में रहते हैं। यदि इस अवधि में व्यक्ति शुद्ध मन, सत्य आचरण और दान-पुण्य करता है, तो शुक्र-बृहस्पति के शुभ फल अनेक गुना बढ़ जाते हैं। इसी कारण दीपावली को धन और धर्म दोनों की संगम तिथि कहा गया है।

पंचदिवसीय ग्रह-आधारित पर्व क्रम:
धनतेरस (त्रयोदशी) – धन और स्वास्थ्य के अधिष्ठाता धन्वंतरि की आराधना, जो शुक्र ग्रह को संतुलित करती है।
नरक चतुर्दशी – तमोगुण की निवृत्ति और मंगल ग्रह का शुद्धिकरण।


दीपावली (अमावस्या) – सूर्य और चंद्र के संतुलन की तिथि।


गोवर्धन पूजा (प्रतिपदा) – पृथ्वी तत्व और शनि ग्रह की प्रसन्नता।


भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) – चंद्र और बुध के भावनात्मक संतुलन का प्रतीक।


इस प्रकार दीपावली का प्रत्येक दिवस किसी न किसी ग्रह से सम्बद्ध है, जो मानव जीवन के पंचतत्वों को सामंजस्य में लाता है।


आत्मा की ज्योति का उत्सव:
दीपक केवल बाहरी प्रकाश नहीं है — यह प्रतीक है अंतर्ज्योति का, जो अविद्या रूपी अंधकार को मिटाती है।
आत्मा स्वयं “दीप” है —
“दीपो न नामरूपेभ्यः परः” (छांदोग्य उपनिषद्)
जब बाहर दीप जलते हैं, तो भीतर का दीप — “ज्ञानदीप” — प्रज्वलित करने की प्रेरणा मिलती है।


लक्ष्मी की प्राप्ति का रहस्य:
लक्ष्मी केवल भौतिक धन का प्रतीक नहीं, बल्कि सात प्रकार की लक्ष्मी का स्वरूप हैं — धन, धान्य, संतान, विजय, विद्या, धैर्य और आत्मसंतोष।
परंतु वह वहीं निवास करती हैं जहाँ स्वच्छता, सदाचार और सत्य हो।
अतः दीपावली की सफाई और सजावट का वास्तविक उद्देश्य है —
मन, बुद्धि और हृदय का शुद्धिकरण।


रावण के अहंकार से राम का प्रकाश:
दीपावली का ऐतिहासिक पक्ष यह बताता है कि यह श्रीराम के अयोध्या लौटने का दिवस है। यह केवल एक विजय नहीं, बल्कि अहंकार पर आत्मा की विजय है।
राम — “आत्मा” का प्रतीक हैं,
रावण — “अहंकार” का।
जब राम का प्रकाश भीतर जागता है, तब अयोध्या (अर्थात् हृदय) आलोकित होती है। जय श्रीराम !


ध्यान और मौन का काल:
कार्तिक अमावस्या ध्यान के लिए अत्यंत अनुकूल है। इस दिन चंद्रमा नहीं होता, इसलिए मन (जो चंद्र से संचालित है) स्वाभाविक रूप से स्थिर रहता है। यदि व्यक्ति मौन, ध्यान या मंत्रजप करे, तो उसकी आध्यात्मिक उन्नति तीव्र होती है। अतः दीपावली केवल उत्सव नहीं, यह अंतर्मुखता का अवसर है।


दीपावली का ज्योतिषीय पक्ष बताता है कि जब बाहरी ग्रह अंधकार में हों, तब भीतर का दीप जलाना चाहिए; और आध्यात्मिक पक्ष सिखाता है कि यह दीप आत्मा का है, जो कभी बुझता नहीं।


“दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तुते॥”


दीपावली वस्तुतः बाह्य दीप से आंतरिक ब्रह्मज्योति की यात्रा का पर्व है —
जहाँ प्रकाश केवल घरों में नहीं, आत्मा में भी जगता है।


(लेखक: अवधेश झा, श्रीहरि ज्योतिष के संस्थापक हैं तथा ज्योतिष, योग और वेदांत दर्शन के विद्वान हैं।)
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