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साक्षरा/राक्षसा (कविता)

साक्षरा/राक्षसा (कविता)

        ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र 'अणु'
     सुनता रहा हूं सब जगह,
     यह शब्द,
     सुना होगा आपने भी-
     बात-बात पर,
     घात-घात पर,
     साक्षरा!राक्षसा!!
सुना,बडा दुख देता है,
छिन सुख लेता है।
बेवजह की प्रताड़ना,
नस-नस दुह लेता है।।
खुशहाल जींदगी को-
कर तहसनहस।।
साक्षरा!राक्षसा!!
          आज जो साक्षर है,
          भाई मेरे वह राक्षस है,
          साक्षरा अनुकूल है,
          राक्षसा प्रतिकूल है,
          कसम की  हर बात-
         कसमकस,
        साक्षरा!राक्षसा!!
परिस्थिति के विपरीत,
दिखाते हैं रीत,
भला का बुरा हित-अहित,
उलटता है साक्षरा,
होता है राक्षसा,
साक्षरा!राक्षसा!
    अंदर से कुछ,कुछ बाहर से,
    दिखता नही है सहज नजर से,
    करते है विदिर्ण,व्यर्थ शब्द उत्कीर्ण,
   कोरा कागज लिए दिखाते-
       कहते हम उतीर्ण,
   .   पर स्वभाव के अभाव में,
       दिखता विवस!
       नीशा-दिवस!!
      साश्ररा!राक्षसा!
     साक्षर का उल्टा राक्षसा!!
     कहते तो हैं साक्षरा,साक्षरा,
    कर्म-धर्म से राक्षसा!राक्षसा!!
राक्षस कहता सा क्षर,सा क्षर,
कहता साक्षर अक्षर,अक्षर,
सीधा -साधा साक्षरा,
उल्टा-सी'धा राक्षसा,
साक्षरा!राक्षसा!!
        वलिदाद,अरवल(बिहार)
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