बस यही धर्म है
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
वह जो हमें
करना चाहिए धारण
या फिर
कर रहा है धारण
चाहे वह
वर्तमान हो या फिर
जीवन या मरण
बस यही धर्म है।
प्राणियों का उपकार
अतिथियों का सत्कार
जीव जगत का आभार
सगुण निर्गुण से पार
जो श्रद्धा युक्त कर्म है।
मन,क्रम और वचन
सबके लिए मंगलमय आचरण
कौन, कहां,कब,कैसा है
सामान्य हो अथवा वह
सज्जन या दुर्जन
सबके लिए द्रवित मर्म है।
राग,द्वेष,मद,ममता, मत्सर
बड़ाई, ईर्ष्या,लोभ भयंकर
जिसका मन निंदा से तर
वह कब का होता श्रेयस्कर
कर्म बताता हृदय नर्म है।
यही तो बताता है
गीता,रामायण और पुराण
परोपकार से पुण्य मिलता है
पर पीड़ा नरक प्रस्थान
कण-कण में है भगवान
चराचर जगत स्वत्व समान
सबका आदर और सम्मान
करो बस सबका अपना जान
सकल शास्त्र का यही मर्म है।
पाले हैं जो अहम वहम
उनको सबकुछ मिलता कम
जो जैसा देता पाता है
यही तो है इस सृष्टि का क्रम
धर्म मही को धारण करती
धर्म से तपते तेज दिवाकर
अग्नि धर्म को धारण करती
चलता वायु धर्म सजाकर
वरूण धर्म बस होते सत्वर-
धर्म अटल है बाकि नश्वर
आत्मा धर्म नकि अस्थि-चर्म है।
वलिदाद,अरवल(बिहार)
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