बोलो तो गुर्राता है

बातें बहुत बनाता है
बोलो तो गुर्राता है
अपने राग सुनाता है
ढफली खूब बजाता है
माला माल हो गया वो
हिस्सा सबका खाता है
बेंच रहे सपने सारे
ठेंगा हमें दिखाता है
भोले-भाले लोगों को
पट्टी खूब पढ़ाता है
आग लगाकर नई-नई
बस्ती रोज़ जलाता है
दाग दिखें न चेहरे के
दाढ़ी-मूछ बढ़ाता है
भक्तों ने ये मान लिया
पत्थर भाग्य विधाता है
थप्पड़ खा करके भी'जय'
कभी नहीं चिल्लाता है
*
~जयराम जय
पर्णिका',11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ०प्र०)
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