नून के तड़का।(मगही कहानी)
आज शनीचर हे।सोचली खिचड़ी बनावल जाये।चाउर,दाल,हरदी,नून सब मिलाके तसली में चढ़ा देली चुलहा पर।आँच बढ़िया हल खिचड़ी डभके लगल।कलछुल से धीरे धीरे घुमावैत हली कि उधियाये न एतने में दुआरी के कुंडी खटखटाये के आवाज मिलल।ले बलैया अब का करुँ एने छोड़ ही त उधियाये के डर ओने छोड़ ही त अतिथि के जाय के डर।दुनो दने छोड़ल मुश्किले लगल।तसली उतार के धर देली चुलहा से नीचे।दौड़ल गेली दुआरी पर देखली हमर बगलगीर बनेसर खड़ा हथ।बोलैली भीतरे कहली एही जगह बैठ पीढ़ा पर तोरा से बतियायम भी आउ खिचड़ियो बनायेम।बैठ गेली दुनो कोई।गप सप होये लगल।एतने में खिचड़ियो सीझ गेल।अब हम सोचली कि तनि नेहा ले ही त बनेसर आउ हम दुनो बाँट के ई खिचड़ी खा लेम।ई सोंच के बनेसर के कहली कि ये इयार तनी हम आव हियो दुरवा पर कुइवाँ से नेहैले।तब तक तनि तूँ खिचड़िया छौंक द।ऊ देख ओने निमकवा के सिसिया के बगल में तेल ,जीरा,हींग,लालमिचाई सब रखल हो ।हम आबैत ही नेहा के।ई कहके हम दूरा पर बालटी लोटा रस्सी लेके नेहाय चल देली।दू बालटी पानी कुइयां से खींच के निकालली आउ नेहा लेली।मिजाज ढंढा गेल।जलदी से गमछा लपेटले घरे ऐली।बनेसर के देखली कि बैठल चुपचाप चुलहा में हाँथ सेकैत हथ।हमहुँ जलदी से धोती गंजी पेन्ह के बैठ गेली हाँथ सेंके ला।नेहैली से ठंढा नियन बुझाइ हल।सेंकला से मन मिजाज तनि गरमायल त भुखो लग गेल।बनेसर से पुछली छौंक देल हल बनेसर ,खिचड़िया के।ऊ कहलन हाँ भैया तू जखनी नेहाय गेल हल तखनिये छौंक देलियो।जलदी से पीढ़ा पर उठली आउ दू गो काँसा के थारी निकाल के खिचड़ी परसली।हँड़िया में से दही निकालली, दुगो पापड़ निकाल के सेकली ,दु गो आम के अँचार निकाल के बैठ गेली खिचड़ी खायेला।पहिला कोर लेके मुँह मे डालली ,ई का !ई तो एकदमे जहर।समझ गेली,बनेसर छौंके घड़ी ई खिचड़ी में नून के तड़का लगा देलन।
.......मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ"।
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