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और तुम घर पर नहीं थे

और तुम घर पर नहीं थे

आज फिर मैं द्वार 
आया था तुम्हारे
और तुम घर पर 
नहीं थे लौट आया 

सोंचता हूँ कौन सा 
जादू किया है
है अदा वह कौन 
जिसने मन छुआ है
'फोन' पर तो 
बातें होती हैं मगर
मिलने की है 
बेकरारी क्या हुआ है

साथ छबि के गीत 
लाया था तुम्हारे
और तुम घर पर 
नहीं थे लौट आया

गीत अनगिन रूप के 
गाया अभी तक
रूबरू फिर भी 
न हो पायाअभी तक
कल्पना का 
प्रेम पंक्षी उड़ रहा है
पा न पाया नेह तरु 
छाया अभी तक

प्यार में कुछ 
गुनगुनाया था तुम्हारे
और तुम घर पर 
नहीं थे लौट आया

कामना की खिल गईं 
रंगीन कलियाँ 
स्वप्न जैसी लग रहीं है 
सुखद घडियां 
चित्र चित्रित हो गये हैं 
मन पटल पर
झालरो सी जगमगाती 
देह गलियां 

रूप ने तन 
गुदगुदाया था तुम्हारे 
और तुम घर पर 
नहीं थे लौट आया 

एक भी पल को नहीं 
तुमसे  विरत हूँ
मैं प्रतीक्षा संग 
अभी संघर्ष रत हूँ
कौन जाने शुभ घडी़ 
किस पल पधारे
इसलिए तव द्वार के 
सम्मुख विनत हूँ

अधर ने मुझको
बुलाया था तुम्हारे
और तुम घर पर 
नहीं थे लौट आया
           *
~जयराम जय
पर्णिका,11/1,कृष्णविहार,आ.वि.
कल्याणपुर,कानपुर208017(उ०प्र०) 
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