कमल
वेद प्रकाश तिवारी
पांडित्य एक कुशलता है
जब कि ज्ञान एक क्रांति
वे लोग जो बोलते हैं
किताबों की भाषा
सीख लिए हैं
शब्दों के सूत्र
उनके लिए शब्द साधन हैं
समाज को भ्रमित करने का
जिन्हें खुद के प्राणों का पता नहीं
वे बन जाते हैं
परम सत्ता के साक्षी
पर ज्ञानी परे है
सुख और दुःख से
उसकी खोज नहीं है
किताबों तक सीमित
वह निकलकर सभी द्वन्द्व
उलझनों, अंधकारों से
अग्रसर है शाश्वत पथ पर
वह संसार में रहते हुए
समेट लेता है अपने को ऐसे
जैसे कीचड़ में कमल ।
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