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भाजपा से अलग हो राजद संग 2015 में चुनावी मैदान में उतरे थे नीतीश; मोदी और भागवत के बयान से बिगड़ा गणित

(भैरवलाल दास) विधानसभा चुनाव 2015 में जदयू को 115, भाजपा को 96 और राजद को 22 सीटें मिली थीं। इतने विशाल बहुमत के बाद भी राजग की ओर से 2013 में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम घोषित होने के बाद ही भाजपा-जदयू संबंधों में खटास शुरू हुई और जून 2013 में यह गठबंधन टूट गया।
2009 और 2010 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार को यह भरोसा हो गया था कि उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई है। उनकी ऐसी ताकत बन गई है कि वे जिस गठबंधन के साथ रहेंगे, उसी की जीत सुनिश्चित होगी। वह विरोधी गठबंधन को धूल चटाने की भी क्षमता रखते हैं। जब भाजपा ने उन्हें प्रश्रय नहीं दिया तो उनकी ओर से कोशिश हुई कि भाजपा और कांग्रेस रहित तीसरा मोर्चा उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए नामित कर दे।

नीतीश की सबसे बड़ी पूंजी विकास पुरुष की, साफ-सुथरी छवि की और गंभीर नेतृत्व क्षमता की थी। उन्होंने बिहार में इसका सफल प्रयोग कर दुनिया को दिखा दिया था कि राजनीति, प्रशासन और न्याय के साथ विकास की गाड़ी को पटरी पर कैसे सरपट दौड़ाया जा सकता है। राजद के साथ गठबंधन कर नीतीश ने यह संदेश भी देना चाहा कि उनके साथ बिहार की वह समस्त जनता है, जिसे विकास पसंद है। इसमें मुसलमानों की संख्या सबसे अधिक है।

2014 के लोकसभा चुनाव में वस्तुत: यूपीए, एनडीए और जदयू तीन ध्रुव थे। इस चुनाव के बाद नीतीश का राजनीतिक ग्राफ थोड़ा गिरा। एक प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा कि आज की राजनीति में ‘विचारधारा’ एक खराब शब्द बन चुका है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राममनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर द्वारा बताए रास्ते पर चलकर ही गरीबों का कल्याण किया जा सकता है। इस बयान के बाद ही इशारा मिलने लगा था कि नीतीश, राजद के साथ गठबंधन बनाएंगे।

जंगलराज के प्रचार के बाद भी बनी रही लालू की लोकप्रियता
महागठबंधन के राजद की पैठ यादव और मुसलमानों में थी। विपक्षी दलों द्वारा बार-बार ‘जंगलराज’ का प्रचार करने के बाद भी लालू की लोकप्रियता बनी हुई थी। गैर यादवों में पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और महादलित जदयू का परंपरागत मतदाता बन चुके थे। भाजपा 157 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें 90 सीटें उच्च वर्ग के उम्मीदवारों को दी गईं।

लोजपा, रालोसपा और हम का अपना जातीय आधार था। पप्पू यादव ने राजद से अलग होकर जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का गठन किया था। इसका गठबंधन समाजवाद पार्टी और एनसीपी से था। और यह एक अलग गठबंधन के रूप में चुनाव लड़ रहा था।

मोदी और भागवत के बयान से बिगड़ा गणित
भाजपा के केंद्रीय प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह थे। नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए लगातार, बार-बार बिहार आए। लेकिन बात बन नहीं रही थी। आखिर उन्होंने भी यहां आकर जाति का कार्ड खेला। स्वयं को पिछड़ा वर्ग से आने वाला कहा। जब उन्हें जानकारी दी गई कि मोदी की जाति बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग में है तो दोहराने लगे कि वह भी अत्यंत पिछड़ा वर्ग से हैं।

9 अगस्त, 2015 को नरेंद्र मोदी ने गया की सभा में कह दिया कि नीतीश कुमार का डीएनए खराब है। इस वक्तव्य को नीतीश कुमार ने ‘टर्निंग प्वाइंट’ बनाना शुरू कर दिया। पार्टी के नेता एवं कार्यकताओं ने इसे तूल देना शुरू कर दिया। बाल-नाखून कटाकर, कागज में लपेटकर दिल्‍ली भेजा जाने लगा, ताकि डीएनए की जांच हो।

प्रधानमंत्री ने बाद में कहा कि मैं राजनीतिक डीएनए की बात कर रहा था। लेकिन, तब तक बात बिगड़ चुकी थी। रही सही कसर मोहन भागवत ने 26 अक्‍टूबर को बक्‍सर में आरक्षण विरोधी बयान देकर पूरा कर दिया। भागवत ने कहा था कि सरकार बनने पर वे आरक्षण की नीति की समीक्षा करेंगे। 2 नवंबर को फारबिसगंज और दरभंगा के चुनावी सभा में पुन: इसे दोहराया गया। आतंकवाद के ‘दरभंगा मॉड्युल’ के साथ मुसलमानों के साथ जुड़ाव की भी उन्‍होंने चर्चा की।



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2014 के लोकसभा चुनाव में वस्तुत: यूपीए, एनडीए और जदयू तीन ध्रुव थे। इस चुनाव के बाद नीतीश का राजनीतिक ग्राफ थोड़ा गिरा।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/nitish-entered-the-electoral-fray-in-2015-with-rjd-separated-from-bjp-mathematics-disturbed-by-modi-and-bhagwats-statement-127739022.html

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