Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

कांचीपुरम साड़ियों की उत्कृष्टता

कांचीपुरम साड़ियों की उत्कृष्टता

लेखक: के.एम..कधर और डॉ. जी. हरिराज, केंद्रीय रेशम प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, सीएसबी, बैंगलोर

  कांचीपुरम शहर को रेशम शहर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय रेशम साड़ियों की बुनाई करना है। कांची के रेशम बुनकर यहां 400 वर्ष से पहले बसे थे और उन्होंने इस स्थल को देश में सर्वश्रेष्ठ रेशम साड़ियों के निर्माता के रूप में एक उल्लेखनीय प्रतिष्ठा दी। इसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पर्यटन और हथकरघा उद्योग पर निर्भर है।

 खासियत:

एक विशिष्ट कांचीपुरम रेशम साड़ी को इसके भारी वजन के साथ शानदार रंगों और बेहतरीन ज़री के बॉर्डर और पल्लू जैसी उत्कृष्ट विशेषताओं के लिए जाना जाता है। सिल्क साड़ियों के निर्माण में दो प्रकार के तानों अर्थात 2 लड़ी वाले दोहरे जरी धागे और दो लड़ी वाले जोधपुरी ताने के धागे का उपयोग किया जाता है। जरी के धागे में रंगीन रेशम के धागे होते हैं, जो सोने की परत के साथ चपटे चांदी के तार से लिपटे होते हैं। ये रेशमी साड़ियां अपने आंतरिक रूप से किये गये महीन काम और आकर्षक चमक के लिए जानी जाती है, जिसमें बुनकर और रंगरेज की निपुणता शामिल है।

 करघा:

कांचीपुरम रेशम साड़ी के उत्पादन के लिए दो प्रकार के करघों अर्थात फ़्रेम लूम और पिट लूम का उपयोग किया जाता है। इन दो प्रकार के करघों पर साड़ी के उत्पादन के लिए थ्रो शटल का उपयोग किया जाता है। करघे के मुख्य भाग स्ले,  ट्रेडमिल, रीड, हील्ड्स, ताना बीम, कपड़ा बीम, शटल और पट्टे की छड़ें होते हैं।

 बुनाई की प्रक्रिया में तीन बुनियादी कार्य शेडिंग, पिकिंग और बीट-अप शामिल हैं। साधारण हैंडलूम में या तो पिट लूम या फ्रेम लूम में एक निरंतर घूमती हुई अवस्था में फैब्रिक का उत्पादन किया जा जाता है। पिकिंग और बीट-अप कार्य निष्पादन पहले से तय होता है और किस प्रकार के कपड़े का उत्पादन किया जा रहा है, किन्तु शेडिंग मोशन में बदलाव किये जाते हैं और यह बुनकर के फैसले पर निर्भर है कि उसे इस बुनाई में क्या परिवर्तन करना है।

 कच्चा माल:

कांचीपुरम रेशम साड़ी के उत्पादन के लिए पूर्ण रूप से देशी कच्चे रेशम का उपयोग किया जाता है। रेशम की साड़ी के उत्पादन में क्रॉस ब्रीड सिल्क (बिवोल्लटाइन एक्स मल्टीवोल्टाइन) किस्म का उपयोग किया जाता है। 16/18 डेनियर के फिल्चर/मल्टी एंड फाइन क्वालिटी के कच्चे रेशम का उपयोग ताना बनाने में किया जाता है और 22/24 डेनियर के फिल्चर/चरका मोटे क्वालिटी के रेशम का उपयोग कपड़ा तैयार करने में किया जाता है। कच्चे रेशम को क्रमशः ताना और कपड़े की तैयारी के लिए ट्राम यार्न के रूप में घुमाया जाता है। ताना और कपड़े दोनों को लड़ी चरण की स्थिति में ही या तो एसिड अथवा मैटल  कॉम्पलैक्स में रंगा जाता है। इस प्रकार, उत्पादित रेशम साड़ी करघे पर तैयार किया गया एक वस्त्र है।

 जरी:

रेशम की साड़ी के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में जरी के धागे का भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। सिल्क साड़ियों पर सूक्ष्म डिजाइन का निर्माण करने के लिए इसका अतिरिक्त लड़ियों और धागे के रूप में भी उपयोग किया जाता है। ज़री के मुख्य घटक नीचे दिये गये हैं।

रेशम (रंगा हुआ) 20-22%

चांदी 50-55%

c) सोना 0.5-0.6%

d) अन्य 22-29%


डिजाइन:

कांचीपुरम रेशम की साड़ियां अपनी तकनीकी उत्कृष्टता और डिजाइनों की नवीनता के लिए लोकप्रिय हैं। भले ही इनमें बुनकरों द्वारा बुनाई के पारंपरिक तरीकों को अपनाया जाता है पर वे इन साड़ियों में बदलती हुई प्राथमिकताओं और इच्छाओं के साथ तालमेल रखने की कोशिश करते हैं। इससे उन्हें युवा और बुजुर्ग, समृद्ध और मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं की इच्छाओं के अनुसार उनकी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती हैं। बुनकर उत्पादन की लागत को कम करने के लिए साड़ियों में हल्के डिजाइन के साथ उनके बॉर्डर पर एक तरफ ही ज़री का काम करते है। इनके लोकप्रिय डिजाइनों में ईंट, पक्षी, पशु, पत्ती, आम, नया पैसा आदि शामिल हैं। साड़ी के रंग मनभावन होने चाहिए और उपभोक्ताओं की मांग के अनुरूप होने चाहिए। इनमें उपयोग किए जाने वाले सबसे लोकप्रिय रंग नीला, काला, हरा और बसन्ती हैं। हालांकि, हल्के रंगों के डिजाइन भी काफी लोकप्रिय हैं।

 साड़ी में बनाये गये कुछ लोकप्रिय डिजाइन इस प्रकार हैं:

थंडावलामोर समान रेखाएं: इसमें साड़ी की लंबाई के साथ धारियां चलती हैं।

कोट्टैडियर चेक पैटर्न: साडी में लंबाई और चौड़ाई दोनों पर पट्टियों के साथ विभिन्न प्रकार के वर्ग अथवा आयत होते हैं।

पट्टा: साड़ी पर चित्रों और फूलों के काम को सयुक्त रूप से किया जाता है।

टिशू साड़ी: पूरे वस्त्र को सुनहरे धागे से बुना जाता है।

 विशिष्टता- एक अवलोकन

कांचीपुरम की रेशम साड़ियां कई मायनों में अद्वितीय हैं। उनकी मुख्य विशेषताएं कोरवई और पेटनी हैं। कोरवई पूरी साड़ी (एक तरफ/दो तरफा बॉर्डर) को इसके बॉर्डर से मिलाने की तकनीक है। इस तकनीक के लिए अतिरिक्त श्रमशक्ति की आवश्यकता होती है, जिसे आम तौर पर घरेलू कारीगरों की मदद से पूरा किया जाता है। अधिक स्पष्ट रूप से, साड़ी के पल्लू के दोनों ओर समानांतर घने डिजाइन के साथ इसके बॉर्डर परस्पर जुड़े होते हैं जिसके कारण सिलाई करने में मेहनती लगती है। इस डिजाइन को तैयार करने के लिए तीन शटरों का उपयोग किया जाता है, इनमें से दो को संबंधित बुनकरों द्वारा चलाया जाता है और तीसरे को घरेलू कारीगर द्वारा चलाया जाता है। चूंकि इस प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त अनुभवी बुनकर की आवश्यकता होती है, जिसे इसके डिजाइन निर्माण में शामिल करना पड़ता है, इस कारण इसकी बुनाई में काफी विलंब होता है।

 दूसरी पेटनी प्रक्रिया में प्रत्येक साड़ी के मौजूदा हिस्से के तानों के साथ पल्लू के हिस्से को जोड़ा जाता है। इसमें पूरी साड़ी के सभी ताने वाले धागों को जोड़ना शामिल है, जो कई हजार तक होते हैं। इसके अलावा, मेंडिंग के बाद, छोरों को सावधानीपूर्वक नाजुक तरीके से चोलम के टेन्डर स्टॉक तक खींचना होता हैं। इसके अलावा, नए मेंडिड धागों/सिरों को खींचने के बाद, कुछ हद तक पूरी तरह से बुनाई की देखभाल करनी होती है, जिसके लिए अधिक कौशल की आवश्यकता होती है। इसके परिणामस्वरूप अलग-अलग रंग के तानों को साड़ी की पूरी लंबाई पर विशेष खूबसूरती देने के बुना जाता है।

 रेशम साड़ी के अधिकांश उत्पादन में, पल्लू/मुंडी भाग के उत्पादन के लिए अलग-अलग रंगों के रुप में इस्तेमाल की जाने वाली पेटनी प्रक्रिया को टाई-डाई प्रक्रिया द्वारा बदल दिया गया है। इस प्रक्रिया में, एक एकल ताने को दो या अधिक रंगीन रंगों के साथ रंगा जाता है ताकि साड़ी और इसका पल्लू अलग-अलग दिखे। यह आम तौर पर साड़ी के रंग के साथ एक साड़ी के ताने की लंबाई [साड़ी और पल्लू दोनों भाग] को रंगकर बनायी जाती है, पहले ब्लीचिंग के माध्यम से पल्लू कलर को अलग किया जाता है, और बाद में पल्लू के हिस्से को अलग-अलग रंग से रंगा जाता है।

 कांचीपुरम रेशम साड़ी की विशेष रूप से कोरवई और पेटनी जैसी विशिष्टताओं को बनाए रखना चाहिए। कांचीपुरम सिल्क साड़ियों के निर्माण में किसी भी प्रक्रिया की खोज, करघा सुधार और उत्पाद विकास के मामले में यह मुख्य आकांक्षा होनी चाहिए, जिसे निरंतर विशेषज्ञ बुनकरों द्वारा आज़माया जा रहा है।

 दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ