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न्यायायिक सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति न्यायायिक भ्रष्टाचार की संपुष्टि है

न्यायायिक सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति न्यायायिक भ्रष्टाचार की संपुष्टि है 

भारतीय जनक्रांति दम डेमोक्रेटिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश कुमार चौबे ने कहा है कि न्यायायिक सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति न्यायायिक भ्रष्टाचार की संपुष्टि है I इन्होने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि भारतीय न्यायपालिका न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है। कार्यकारी हस्तक्षेप से सावधान रहते हुए न्यायाधीश अपने संस्थागत हितों को बचाते हैं। लेकिन क्या भारत की न्यायिक व्यवस्था न्यायिक स्वतंत्रता के उल्लंघन से पीड़ित नहीं है ? 1999 से लेकर अब तक सर्वोच्‍च न्‍यायालय के फैसलों को एक युनीक डेटासेट के रूप में देखने से यह स्पष्ट होता है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के कैरियर-ग्राफ का उपयोग राजनीति में हो रहा है I सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की सरकारी पदों पर की गई नियुक्तियों से यह पुष्टि हो जाता है कि न्यायाधीशों का राजनीतिक मनोवृति सेवानिवृति के बाद भी पद लेने की प्रवृति की और मुड़ा है I यह एक का शक्तिशाली प्रोत्साहन के रूप में परिलक्षित होता है I 

भारतीय जनक्रांति दम डेमोक्रेटिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश कुमार चौबे ने कहा है कि 18 नवंबर 2019 को, भारत के 46 वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), श्री रंजन गोगोई, सर्वोच्‍च न्‍यायालय से सेवानिवृत्‍त हुए। चार महीने बाद उन्‍हें भारत की संसद के ऊपरी सदन, राज्य सभा का सदस्‍य बना दिया जाता है । 16 मार्च 2020 को राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी सरकार की सलाह पर उन्हें उच्च सदन में नामित किया। भारत की विधिक संरचना अर्थात इसका संविधान, विधि और नियम क्यों नहीं ऐसी नियुक्तियों के लिए मना करता है ? इसपर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त एक न्यायाधीश ने लाक्षणिक रूप से कहा था कि ‘क्‍या अंतिम किला ढह गया है’? दिल्ली उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश ने आरोप लगाया ‘यह एक मुआवजा है’। और कई राजनेताओं, वकीलों एवं विद्वानों ने भी इसी तरह की भावनाओं को प्रदर्शित किया है। वे जोर दे कर कहते रहे हैं कि नियुक्ति अनुचित है; यह भारत में न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करती है।

भारतीय जनक्रांति दम डेमोक्रेटिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश कुमार चौबे ने कहा है कि मजबूत संवैधानिक लोकतंत्रों को स्वतंत्र न्यायपालिकाओं की आवश्यकता है I न्यायाधीशों को जनहित और न्यायायिक नैतिकता को देखते हुए मामलों का फैसला करना चाहिए I उन्हें बिना किसी डर या पक्षपात के सरकार को जवाबदेह ठहराना चाहिए।

भारतीय जनक्रांति दम डेमोक्रेटिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश कुमार चौबे ने कहा है कि न्यायिक स्वतंत्रता उस समय आहत होती है जब सरकारें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक या निजी तौर पर दवाब डाल कर, प्रोत्‍साहन दे कर न्यायाधीशों और उनके निर्णयों को कमजोर करती हैं। भारतीय जनक्रांति दम डेमोक्रेटिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश कुमार चौबे ने कहा है कि भारतीय जनक्रांति दम डेमोक्रेटिक की सरकार बनने पर ऐसे सेवानिवृत न्यायाधीशों जो सेवानिवृति के बाद किसी सरकारी पद को अब तक स्वीकार किये है उनके न्यायायिक काल अवधि के दिए गए समस्त निर्णयों का जांच कराया जायेगा कि इसके पीछे इनकी असली मंशा क्या थी I 
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