Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अरवल ज़िले का सांस्कृतिक विरासत

अरवल ज़िले का सांस्कृतिक विरासत

सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार की संस्कृति एवं सभ्यता में निहित हैं अरवल जिले का सांस्कृतिक विरासत ।पटना से 65 कि. मी. तथा जहानाबाद से 35 कि. मी. पश्चिम सोन नद के पूर्वी तट पर समुद्र तल से 115 मीटर उचाई पर वसा 637 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र फल में फैले अरवल जिले की स्थापना 20 अगस्त 2001 ई. में की गई है ।316 राजस्व गांव में 298 गांव चिरागी , 65 ग्राम पंचायत, 648994 ग्रामीण तथा 51849 शहरी आबादी वाले अरवल जिले 25 '-00' से 25'- 15' उतरी अक्षांश 84' -70' से 85 '-15' पूर्व देशांतर स्थली है । करपी, अरवल, कुर्था, कलेर तथा सोनभद्र-वंशीसूर्यपुर प्रखंड में करपी का जगदम्बा स्थान मंदिर में शाक्त धर्म का क्षेत्र में महाभारत काल की जगदम्बा, चतुर्भुज भगवान, भगवान शिव पार्वती विहार, शिव लिंग, कई मूर्ति करपी का सती स्थान है ।मदसरवा में ऋषि च्यवन द्वारा स्थापित च्यवनेश्वर शिवलिंग, पंतीत का शिव मंदिर , लारी का सती स्थान गुप्त काल का शिव लिंग , किंजर का शिव मंदिर में शिव लिंग ,उस खटांगी का भगवान सूर्य मूर्ति प्राचीन काल की है । बारहवीं शदी का अफगानिस्तान के कन्नूर के भ्रमण कारी सूफी संत शमसूद्दीन अहमद महमूद उर्फ शाह सुफैद बाज सम्मन पिया अरवली का मजार है । अरवल जिले में पुनपून नदी, सोन नद, हिरण्यबाहू नदी कअवशेष प्रवाहित होती है । मगही भाषा हिंदी भाषी लोगों को स्वास्थ्य के लिए 06 प्रथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ,21 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सचाई के लिए सोन नहर, साक्षरता दर 56.85 प्रतिशत मुहैया है । अरवल जिले में अरवल तथा कुर्था विधानसभा में 476451 मतदाता हैं । प्राचीन काल में करूष प्रदेश , सोन प्रदेश के राजा करूष, शर्याती, हैहय आलवी यक्ष, तथा ऋषि च्यवन, सुकन्या, वत्स, मधुश्रवा , मधुच्छन्दा, बाण भट्ट की जन्म भूमि, कर्म भूमि तथा आधुनिक आध्यात्मिक संत राधा बाा की जन्म स्थली है ।

भारतीय और मागधीय संस्कृति एवं सभ्यताएं प्राचीन काल से अरवल जिले के करपी का जगदम्बा मंदिर में स्थापित माता जगदम्बा, शिव लिंग, चतुर्भुज भगवान, भगवान शिव - पार्वती विहार की मूर्तियां महाभारत कालीन है । कारूष प्रदेश के राजा करूष ने कारूषी नगर की स्थापित किया था । वे शाक्त धर्म के अनुयायी थे । हिरण्यबाहू नदी के किनारे कालपी में शाक्त धर्म के अनुयायी ने जादू-टोना तथा माता जगदम्बा, शिव - पार्वती विहार, शिव लिंग, चतुर्भुज, आदि देवताओं की अराधना के लिए केंद्र स्थली बनाया । दिव्य ज्ञान योगनी कुरंगी ने तंत्र - मंत्र - यंत्र , जादू-टोना की उपासाना करती थी । यहां चारो दिशाओं में मठ कायम था, कलान्तर इसके नाम मठिया के नाम से प्रसिद्ध है ।करपी गढ की उत्खनन के दौरान मिले प्राचीन काल में स्थापित अनेक प्रकार की मूर्ति जिसे उत्खनन विभाग ने करपी वासियों को समर्पित कर दिया । प्राचीन काल में प्रकृति आपदा के कारण शाक्त धर्म की मूर्तियां भूगर्भ में समाहित हो गई थी । गढ़ की उत्खनन के दौरान मिले प्राचीन काल का मूर्तिया ।विभिन्न काल के राजाओं ने करपी के लिए 05 कूपों का निर्माण, तलाव का निर्माण कराया था । साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की प्रचीन परम्पराओं में शाक्त धर्म एवं सौर , शैव धर्म, वैष्णव धर्म, ब्राह्मण धर्म, भागवत धर्म का करपी का जगदम्बा स्थान है । करपी जगदम्बा स्थान की चर्चा मगधांचल में महत्व पूर्ण रूप से की गई है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्थापना 1861 ई. में हुई है के बाद पुरातात्विक उत्खनन सर्वेक्षण के दौरान करपी गढ के भूगर्भ में समाहित हो गई मूर्तिया को भूगर्भ से निकाल दिया गया था । करपी का सती स्थान, ब्रह्म स्थली प्राचीन धरोहर है । करपी का नाम कारूषी, कुरंगी, करखी, कुरखी, कालपी था ।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ