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मेरे मन की बात मत बांटो इंसान को

मेरे मन की बात मत बांटो इंसान को

लेखक डॉ अजित पाठक 

१६ जुलाई का अख़बार मेरे सामने ही पड़ा है | एक समाचार ने हमें उदवेलित किया है समाचार का शीर्षक है “बिहार में मुस्लिमों को उद्योग के लिए किराये पर मिलेगी जमीन: आगे लिखा है कोरोना काल में राज्य सरकार ने उद्य्योग लगाने के इच्छुक मुस्लिमों को उद्योग लगाने के लिए राज्य के औद्योगिक क्षेत्रों में बियाडा के माध्यम से जमीन किराये पर देगी और इसका किराया १०८ किश्तों में वसूलेगी इसके साथ सारी किस्तें जमा करने के बाद उन्हें उस जमीन का मालिकाना हक भी दे देगी | सरकार का उद्यमियों के लिए यह दरियादिली तो काबिले तारीफ है ,पर सिर्फ मुस्लिमों को यह सुविधा देना समाज में सामजिक बैमनस्यता फैलाने वाला लग रहा है | अगर यह सुविधा कोरोना संकट के समय देश के बिभिन्न भागों से अपने घर आने वाले उन मजदूरों के लिए होता चाहे वो किसी जाति या धर्म से होते तो सरकार का यह कदम प्रशंसनीय होता | बिहार ऐसे राज्य में हर जाति ,धर्म के लोग रहतें है, और ये सभी उद्योग धंधों में लगे हुए हैं,मैं जानता हूँ की भूख की कोई जाति नहीं होती | हर व्यक्ति की मूल आवश्यकता एक जैसी होती है | अगर हम उसको भी जाति या धर्म में बांटने लगेंगें तो समाज में बिद्रूपता आने लगेगी मै किसी जाति या धर्म के पक्ष या विपक्ष में नहीं कह रहा हूँ | मेरी मंशा सरकारी सुविधाओ को जाति या धर्म में नहीं बाँट कर यह समाज के उन वर्गों के लिए होना चाहिए जिसको इसकी वास्तविक आवश्यकता हो | क्या ये सुविधा हिन्दुओं, सिखों, इशाईयों को नहीं मिलनी चाहिए? क्या ये सभी देश के नागरिक नहीं हैं ? संविधान भी इस तरह के कामों को करने की इजाजत नहीं देता | फिर सरकार इस तरह की असंवैधानिक घोषणा क्यों करती है ? क्या यह सरकार की चुनावी घोषणा है या फिर मुस्लिमों को रिझाने का षड़यंत्र? चाहे कुछ हो सरकार को ऐसी घोषणा नहीं करनी चाहिए जिससे लोगों के बीच घृणा फैले | अगर ये सुविधा देने की घोषणा सरकार गरीबों को, बेरोजगारों को, शहीदों की विधवाओं को ,विकलांगों को ,स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को, प्राकृतिक विपदाओं से मरने वालों के आश्रितों को या समाज के दवे कुचले लोगों के लिए करती तो यह एक प्रशंसनीय कदम होता | वर्तमान सरकार ने एक मौके को छोड़ दिया इस कोरोना काल में लाखों मजदूर यहाँ आये पर उनके लिए उनके गांवों में कोई रोजगार नहीं था, इससे वो फिर वापस पुरानी जगह लौट गए | अगर इस सरकार की कोई योजना इन मजदूरों के लिए होता तो राज्य का ज़ी.डी.पी काफी बढ़ जाता | खैर, उपर में उधृत वो खवर अगर सिर्फ चुनावी घोषणा ही हो तो ठीक है पर अगर यह थोडा भी वास्तविक हो तो समाज में साम्प्रदायिकता को बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता |दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

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