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बिहार में शराबबंदी दिखावे के हांथी दांत और हकीकत में शेर के जबड़े के रूप में पालित पोषित संरक्षित पोलिटिकल मिशन है|

बिहार में शराबबंदी दिखावे के हांथी दांत और हकीकत में शेर के जबड़े के रूप में पालित पोषित संरक्षित पोलिटिकल मिशन है|
लेखक रमेश कुमार चौबे पत्रिका दिव्य रश्मि के उपसम्पादक है |
बिहार में पूर्ण शराबबंदी के कारण आज भले सार्वजानिक जगहों पर लोग पीने में बंदिश को स्वीकार और अंगीकार कर लिए हैं लेकिन होम डिलीवरी बिना सरकार और सत्ता के रसूख और पुलिस तथा शराब माफियाओं के गठजोड़ के हो ही नहीं सकता है I
बिहार के अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय, संवेदनशील,पीपुल फ्रेंडली और पूर्ण शराबबंदी ही नहीं अपितु पूर्ण नशाबंदी के प्रबल पक्षधर श्री गुप्तेश्वर पाण्डेय बिहार में पूर्ण शराबबंदी को सफल बनाने के लिए न केवल प्रयत्नशील हैं बल्कि काफी संजीदगी से इस मिशन में लगे हुए हैं और इसके लिए चिंतित भी रहते हैं I जब वे बिहार मिलिट्री पुलिस (BMP) के डीजी थे उन्होंने बिहार में पूर्ण शराबबंदी को सफलता पूर्वक प्रभावी तरीके से सफलीभूत कराने के लिए संपूर्ण बिहार में जन जागरूकता के जरिये एक सफल माहौल बनाया I पुरे राज्य में अथक रूप से घूमकर युवाओं में इसके लिए जोश जगाया लेकिन पुलिस विभाग के कुछ जयचंदों ने इनके सार्थक अभियान और जीतोड़ कोशिशों पर ग्रहण लगाने का काम किया I
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागु करने की जब घोषणा की और तेज तर्रार संवेदनशील ईमानदार आईएएस श्री के के पाठक को आबकारी विभाग का प्रधान सचिव बनाया तो बिहार के लोगों में आशा की एक उम्मीद की किरण जगी की यह अभियान सफल होगा I लेकिन जब मुख्यमंत्री ने शराब माफियाओं के कारण चाहे वो जो भी कारण हो आईएएस श्री के के पाठक को आबकारी विभाग में उनके अनुसार कार्य नहीं करने दिया यहाँ तक कि अपने गृह जिला नालंदा में शराब व्यापार के जिम्मेवार चिन्हित और निलंबित अधिकारी के कारण जिस तरह से आईएएस श्री के के पाठक को आबकारी विभाग से हटने के लिए मजबूर किया यह तथ्य मुख्यमंत्री के असली नियत को यह खोलकर रखने के लिए काफी है कि उनका असली मंशा का हकीकत क्या है I मुख्यमंत्री जी दोहरे चरित्र में प्रबल इक्छा शक्ति की पूर्ति बाधित होता है I
सवाल उठता है कि मात्र एक आदमी बिहार के डीजीपी श्री गुप्तेश्वर पाण्डेय के चिंतित और प्रयत्नशीलता होने से हीं यह मिशन सफल नहीं होगा बल्कि पुलिस विभाग के अंदर के वाईरस को भी अचूक दवाई से ख़त्म करना होगा जो शराब माफियाओं से सत्ता संरक्षित नेताओं के दबाव में साथ ही साथ भ्रष्टाचार से कम समय में धन कुबेर बनने की लालसा लिप्सा में होम डिलीवरी नेट्वर्किंग को फलित पालित पोषित करने में मददगार हैं I
समाज को राजनीतिक षड़यंत्र के तहत उसकी शक्ति को न केवल सत्ता ने कमजोर किया है बल्कि उसे लकवा ग्रस्त कर दिया है I असामाजिक तत्वों और माफियाओं की तरफदारी आवा-भगत सत्ता और शासन दोनों करता है और आम जनता तथा प्रबुद्ध जनों को सत्ता और शासन दुत्कारने की प्रवृति रखता है ऐसी स्थिति में असामाजिक तत्वों के खिलाफ लकवा ग्रस्त समाज की गोलबंदी संभव ही नहीं है I
बिहार में पूर्ण शराब बंदी महज आंशिक रूप से बल्कि दिखावटी रूप से यहीं तक सफल है कि दुकाने बंद है सार्वजानिक स्थलों पर विक्री बंद है सरकारी खजाने में राजस्व बंद है I
लेकिन अब बिहार में पूर्ण शराब बंदी के बावजूद भी शराब की होम डिलीवरी सिस्टम विकसित हो गया है इसके लिए जिम्मेवार तत्व कौन कौन है ? बिहार के डीजीपी बिहार में शराब बंदी के ब्रांड अम्बेसडर हैं वे लगातार शराब बंदी मिशन के सफलीभूत कराने के प्रति संजीदा और संवेदनशील तथा निरंतर प्रयत्नशील हैं I बावजूद इस दिशा में पूर्ण सफलता आखिर किन कारणों से नहीं मिल रहा है यह गंभीरता से और सार्वजानिक मंच से बहस का विषय है I मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को आत्म मंथन व आत्म चिंतन करने की जरुरत है और अपनी जिमेवारी और जबाबदेही को समझने की जरुरत है I सावन मास में दिल पर हाँथ रखकर मुख्यमंत्री बतावें कि वे कोई भी किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते हैं I गाँधी जी ने जब तक गुड खाना छोड़ा नहीं तब तक बूढी माँ के साथ जाने वाले बच्चे को गुड खाने से मना नहीं किया I जब बूढी माँ को तीन चार बार बुलाने के बाद बच्चे को गुड नहीं खाने की नसीहत दी तो बूढी माँ ने बोला था कि पहले दिन ही आपने ऐसी बात इस बच्चे से क्यों नहीं बोली I इसपर गाँधी जी ने कहा था कि दूसरों को मना करने के पहले स्वयं वो आदते छोड़ने पर ही बातो का असर होता है I
क्या होम डिलीवरी के लिए समाज जिम्मेवार है ?
सिस्टम के शातिर समाज को किस नजरिये से और किस दृष्टि से जिम्मेवार ठहराकर अपनी जबाबदेही से बचते हैं उन षड्यंत्रकारी सिस्टम के लोगों और सत्ता शासन के संचालकों की नियत को समझा जा सकता है I
जाहिर है बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बावजूद होम डिलीवरी सिस्टम विकसित हुआ है I इसके पीछे सरकार में बैठे राजनीतिक सत्ता के सहंशाह हैं I शराब माफियाओं का पुलिस से आतंरिक गठजोर के बिना होम डिलीवरी सिस्टम बिकसित होना कल्पना से बाहर है I ऐसा दुहशाहस आम और सामान्य कर ही नहीं सकता है I
समाज शराब माफियाओं और कुछ भ्रष्ट संबंधित पुलिस तंत्र के आपसी गठजोर के कारण मुखवीरी से भी इसलिए परहेज करता है कि उसे पुलिस पर भरोसा नहीं है और कार्रवाई होती नहीं है बल्कि सूचना दाताओं की जान चली जाती है उसकी पिटाई धुनाई हो जाती है और उसकी फ़रियाद भी आगे नहीं सुनी जाती है I
बिहार में शराबबंदी के बाद अब जो पहले इससे अरबों का जो राजस्व सरकारी खजाने में आता था अब उसका दिशा मोड दिया गया है I अब सत्ता और शासन प्रशासन के भ्रष्टतंत्र और माफियाओं के बीच वितरित होता है I सार्वजानिक बहस की चुनौती देता हूँ I बिहार के मुख्यमंत्री की संलिप्तता की प्रमाणिक बात तो नहीं कहता लेकिन जनहित में आम जनता की ओर से जरुर कहता हूँ कि जब से शराब बंदी हुआ है अब जो होम डिलीवरी सिस्टम के पीछे के राजस्व वसूली का जो सत्ता शासन का खेल है उसके पीछे पोलिटिकल खेल है I
बिहार में सत्ता में बने रहने के लिए चुनावी खर्च का जुगाड़ कैसे होता है कहाँ से धन उगाही और चंदा मिलता है इसके राज को जानने के बाद सत्ताधारी और शासन तंत्र बेनकाब हो जायेगा I ऐसी बात नहीं है कि प्रबुद्ध जनता यह नहीं समझती है लेकिन बेचारी जनता कर ही क्या सकता है |

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