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साल में केवल एक दिन खुलने वाला मन्दिर

साल में केवल एक दिन खुलने वाला मन्दिर

आनंद हठिला पादरली (मुंबई)
उत्तराखंड राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता और खूबसूरती के लिए दुनिया में मशहूर है इस राज्य को देवभूमि भी कहा जाता है क्योंकि यहां पहाड़ों में साक्षात भगवान के दर्शन होना आम बात है क्योंकि यहां हर पहाड़ पर कोई ना कोई मंदिर आपको जरूर मिल जाएगा और खास बात यह है की हर एक मंदिर की अपनी एक सुंदर ही गाथा होगी जिसे सुनकर या देखकर आपको इस बात का अंदाजा जरूर हो जाएगा की यहां के लोगों की आस्था अपने देवी देवताओं के लिए प्रसिद्ध क्यों है?

उत्तराखंड के पहाड़ों में बसा हर एक मंदिर अपने आप में एक रहस्य को समेटे हुए हैं यूं तो रोज ही हम अपने घरों में और मंदिरों में भगवान की पूजा पाठ करते हैं. मगर क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड राज्य में एक ऐसा मंदिर भी है जहां साल में सिर्फ एक बार पूजा होती है जहां बसे भगवान की पूजा 364 दिन नहीं बल्कि सिर्फ एक दिन की जाती है।

उत्तराखंड के चमोली जिले के उर्गम घाटी से लगभग 12 किलोमीटर की यात्रा तय करके आप पहुंचेंगे एक ऐसे रहस्यमय मंदिर के पास जो साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है। मंदिर का नाम है वंसीनारायण मंदिर नाम सुनकर आपको यह प्रतीत हो सकता है कि यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित होगा मगर ऐसा नहीं है बल्कि यहां चतुर्भुज के रूप में विराजमान है भगवान विष्णु और उनके साथ भगवान शिव के लाल गणेश की सुंदर प्रतिमा तथा वन की रक्षा करने वाले वन देवियों की मूर्ति इस मंदिर में स्थापित है।

कैसे पड़ा वंसीनारायण नाम
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पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि वन देवियों शिव व विष्णु की संयुक्त रूप से मूर्तियां स्थापित होने के कारण इस मंदिर का नाम वंसीनारायण पड़ा है। लोक कथाओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव पश्चाताप कर रहे थे तो उस दौरान वह इस मंदिर को इतना बड़ा बनना चाहते थे कि जहां से बद्री और केदार की एक साथ पूजा की जा सके मगर किसी कारण इस मंदिर का निर्माण सिर्फ रात को ही संपन्न हो सकता था लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया आप जब मंदिर के पास जाएंगे तो वहां पर आज भी उस युग में भीम द्वारा लाए गए विशाल शिला खंड यहां देखने को मिलेंगे जो अपने आप में इस बात को बयां करते हैं कि इस मंदिर की आस्था पौराणिक काल से है।


साल में किस दिन खुलता है मंदिर?
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भाई बहन के पावन त्यौहार रक्षाबंधन के दिन इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं, इस दिन महिलाओं और कुंवारी लड़कियों का हुजूम वंसीनारायण भगवान के दर्शन के लिए उमड़ पड़ता है हालांकि भगवान की पूजा के लिए कोई लिंग भेद तो नहीं लेकिन ऐसा कहा जाता है की मंदिर के कपाट खुलते ही बड़ी मात्रा में महिलाएं भगवान बंसी नारायण के दर्शन के लिए पहुंचती है और राखी बांधकर उनसे अपने परिवार और अपने घर की सुख शांति की मनोकामना करती है।


रक्षाबंधनके दिन मंदिर खुलने की क्या है वजह?
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लोक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि राजा बलि का अहंकार चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने जब वामन अवतार लिया कब तीन पग की जमीन मांग कर भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक भेज दिया लेकिन इसके बदले राजा बलि ने उन्हें अपने साथ वचन में बांध लिया और दिन-रात अपने साथ रहने का वचन भगवान विष्णु के वामन अवतार से लिया।


भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया और पाताल लोक में जाकर उनके द्वारपाल बन गए. इधर अपने पति से दूर होने की वजह से माता लक्ष्मी परेशान हो गई इस समस्या का हल निकालने के लिए उन्होंने नारद मुनि की सहायता ली जिस पर नारद मुनि ने मां लक्ष्मी को बताया कि अगर आप पाताल लोक जाकर राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध दें तो भगवान विष्णु वापस आ जाएंगे।


दूसरी और माँ लक्ष्मी को पाताल लोक का रास्ता मालूम नहीं था इसलिए उन्होंने नारद मुनि को साथ चलने के लिए कहा इसके बाद पाताल लोग पहुंच कर मां लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा। रक्षा सूत्र बांधने के बाद जब राजा बलि ने माँ लक्ष्मी से वचन मांगने को कहा तो उन्होंने वचन के बदले अपने पति की स्वतंत्रता मांगी इसके बाद राजा बलि ने देवी लक्ष्मी के पति को मुक्त कर दिया और इसी दिन वंसीनारायण की पूजा अर्चना मनुष्य द्वारा की गई यही वजह है कि सिर्फ 365 दिनों में से एक दिन रक्षाबंधन वाले दिन ही बंसी नारायण मंदिर के कपाट खुलते हैं।


एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर की पूजा 364 दिन स्वयं नारद मुनि करते हैं उनकी अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के पुजारी ने एक दिन भगवान विष्णु की पूजा कर ली इसके बाद ऐसा कहा जाता है कि इसलिए वंशी नारायण मंदिर में हमेशा कलगोठ गांव के जाख ही देवता के पुजारी होते हैं।


कैसे पहुंचे इस अद्भुत मंदिर तक?
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वंसीनारायण मंदिर पहुंचने के लिए आपको ऋषिकेश से की जोशीमठ की करीब 255 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी, जोशीमठ से 10 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद हेलंग घाटी से उर्गम घाटी तक के लिए जीप मिलती है और उर्गम घाटी पहुंचकर आप पैदल ट्रैकिंग करके बंसी नारायण मंदिर पहुंच सकते हैं।
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