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पटना की मेयर सीता साहू के खिलाफ एक साल बाद फिर अविश्वास प्रस्ताव, 75 में 41 पार्षदों के हस्ताक्षर

मेयर सीता साहू के खिलाफ एक साल बाद फिर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। इसपर 41 पार्षदाें के हस्ताक्षर हैं। इसमें उनपर 10 गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अब नगर निगम प्रशासन काे 15 दिन के भीतर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराने के लिए बैठक बुलानी होगी। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण और 31 जुलाई तक लॉकडाउन की वजह से निगम प्रशासन के लिए बैठक बुलाना मुश्किल भरा काम हाेगा।
मेयर सीता साहू के खिलाफ पहली बार 29 जून 2019 को अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।

इस पर 3 जुलाई 2019 को वोटिंग हुई जिसमें मेयर ने अपनी कुर्सी बचा ली थी। पिछली बार अविश्वास प्रस्ताव के आवेदन पर महज 26 पार्षदों के हस्ताक्षर थे। मेयर विरोधी गुट 40 पार्षदों के समर्थन का दावा कर रहा था। बैठक हुई तो महज 44 पार्षद पहुंचे और इनमें से 12 ने ही वोटिंग में भाग लिया था। इसमें से दो ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष और 10 पार्षदों ने विरोध में वोट डाले थे।
समर्थकाें का दावा-अभी विराेध करने वाले वाेटिंग के समय देंगे साथ: इसबार मेयर विरोधी गुट ने अपनी ताकत का प्रदर्शन अविश्वास प्रस्ताव में ही कर दिया है। इसके बाद भी मेयर समर्थक गुट का कहना है कि भले ही कुछ पार्षद अभी विरोधी सुर निकाल रहे हैं, लेकिन वोटिंग के दौरान वे किसी भी स्थिति में उनका विरोध नहीं करेंगे। पूर्व डिप्टी मेयर विनय कुमार पप्पू ने कहा कि बिहार नगरपालिका अधिनियम की धारा 25(4) के साथ बिहार नगरपालिका अविश्वास प्रस्ताव प्रक्रिया नियमावली के नियम 2(1) के तहत मेयर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की अधियाचना दी गई है।

मेयर कार्यालय में अधियाचना देने के साथ-साथ नगर आयुक्त को भी इसकी प्रति दी गई है। कार्यालय की ओर से अधियाचना को मेयर के समक्ष भेज दिया गया है। उनकी तरफ से अनुमोदन के बाद नगर आयुक्त को फाइल जाएगी। वहां से अविश्वास प्रस्ताव पर बैठक की तिथि की घोषणा की जाएगी।

अविश्वास प्रस्ताव में मेयर पर आरोप

  • आउटसोर्स के माध्यम से कोष की लूट: आउटसोर्स कंपनियों के माध्यम से निगम कोष को लूटा जा रहा है। आउटसोर्स कंपनियों का शिकंजा निगम पर कसता जा रहा है। वहीं, निगम के मूल कर्मचारी बेचारा बनकर रह गए हैं।
  • भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी: विरोधी गुट ने निगम में भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी का आरोप लगाया है। साथ ही मेयर पुत्र को भी पूरे मामले में घसीटा गया है। कंकड़बाग के ठेकेदारों ने जिस प्रकार से दो फीसदी कमीशन की बात खुलेआम कही है, उसका सीधा असर मेयर की प्रतिष्ठा पर पड़ा है।
  • पद की शोभा कम की: विपक्षी गुट ने मेयर पर पद की शोभा कम करने का आरोप लगाया है। बैठक की अध्यक्षता व संचालन करने में अक्षम करार दिया है। बैठकों में किसी भी सवाल का सीधा जवाब न देने से एक गलत मैसेज जा रहा है। इससे सभी पार्षद असहज महसूस करते हैं। तीन साल के कार्यकाल में भी इस दिशा में कोई सुधार नहीं हुआ है।
  • पार्षदों का सम्मान कम हुआ: आरोप लगाया गया है कि मेयर के कार्यकाल में पार्षदों का मान-सम्मान कम हुआ है। जनहित का कार्य कराने के लिए दर-दर व टेबल-टेबल भटकना पड़ता है। मेयर कक्ष में एक इंजीनियर द्वारा सशक्त स्थायी समिति सदस्य से अभद्र व्यवहार और कंकड़बाग अंचल में पदाधिकारी के खिलाफ पार्षदों के धरना दिए जाने का भी इसमें जिक्र किया गया है।
  • पार्षदों को किया गया नजरअंदाज : मेयर पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने निगम पार्षदों से किसी भी मुद्दे पर कभी कोई राय या सलाह लेना उचित नहीं समझा। पटना नगर निगम मजबूत कैसे हो? वार्ड में बेहतर काम कैसे हो? इन मुद्दों पर पार्षदों की राय कभी नहीं ली गई। मेयर पर केवल चहेतों के बीच घिरे रहने का आरोप लगाया गया है।
  • विकास योजना में भेदभाव : मेयर पर हमेशा भेदभाव की नीति के तहत काम करने का आरोप लगाया गया है। विरोधी गुट ने कहा कि जलजमाव व आवश्यकता अधिक रहने के बाद भी वार्ड 38, 42, 47, 48, 56, 67 और मेयर के वार्ड 58 में अनुपयोगी योजनाओं का आवंटन कर जलनिकासी योजना के लिए जारी राशि की बंदरबांट की गई।
  • महामारी में निष्क्रियता : कोरोना महामारी में मेयर पर पार्षदों व राजधानीवासियों के लिए कुछ नहीं करने का आरोप लगाया गया है। विरोधी गुट ने कहा है कि इस विपदा की घड़ी में हमें अकेले छोड़ दिया गया है। पार्षदों से राय तक नहीं ली गई कि इस संकट के काल में क्या किया जाना चाहिए। पार्षदों ने निजी संस्थाओं के साथ मिलकर या अपनी तरफ से ही गरीब व जरूरतमंदों के बीच अभियान चलाया।
  • लेखा समिति का गठन : निगम की सबसे महत्वपूर्ण नगरपालिक लेखा समिति का गठन न किए जाने का भी मामला जोरदार तरीके से उठाया गया है। इसका गठन न कर प्राइवेट सीए के जरिए काम कराने को भी किसी काला कारनामे को बाहर न आने देने के रूप में रखा गया है। विपक्षी गुट ने इसे पार्षदों के अधिकारों का हनन करार दिया।
  • वार्ड समिति का गठन : बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 की धारा 31 के तहत हर वार्ड में एक वार्ड समिति का गठन किया जाना था। मेयर पर आरोप लगाया गया है कि इसका गठन जान-बूझकर नहीं किया गया। इससे आउटसोर्सिंग का खेल नहीं हो पाता। सभी कार्य वार्ड समिति के जरिए होते। स्थानीय वार्ड पार्षद निगरानी रखते तो गड़बड़ी करना मुश्किल हो जाता।


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मेयर सीता साहू के खिलाफ पहली बार 29 जून 2019 को अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/bihar-patna-no-confidence-motion-against-mayor-sita-sahu-for-second-time-127522333.html

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