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श्रीराम V/S ड्रैगन

श्रीराम V/S ड्रैगन

अश्विनी कुमार तिवारी 

आज से कोई ढ़ाई हज़ार साल पहले एशिया की पीठ पर “चीन” नाम का कैक्टस उग आया! कौन जानता था कि सर्वभक्षी होने के तमाम सीमाएं लांघने वाला ये असभ्य समाज, वर्तमान दुनिया की सबसे बड़ी जनसांख्यकी वाला देश बन जाएगा।

किन्तु अप्रत्याशित रूप से वैसा ही हुआ!

ख़ैर! अब इनका इलाज स्वयं “श्रीराम” करेंगे!

-- ऐसा विचार हांगकांग से उठा। एक चित्र वायरल हुआ, जिसमें मेघश्याम भगवान् श्रीराम धनुष पर बाण चढ़ाए “ड्रैगन” पर निशाना ले रहे हैं। चित्र के चर्चा में आते ही, इसे ताइवान न्यूज़ एजेंसी ने हाथोंहाथ लिया और “फ़ोटो ऑफ द डे” घोषित कर दिया।

अब ये चित्र पूर्वी विश्व के तमाम चीन-विरोधी स्वरों की एकमत आवाज़ के रूप में उभर रहा है। इसे कहते हैं, किसी राष्ट्र के “पीवीएस” यानी कि “पॉलिटिकल वॉर सिस्टम” (राजनीतिक युद्ध तंत्र) का सिद्ध हो जाना। प्रजा के सौभाग्य से, वो सिद्ध राष्ट्र हमारा अपना देश “भारत” है।

तो साहिबान, युद्ध से पहले का राजनीतिक युद्ध चीन हार चुका है। मनोवैज्ञानिक युद्ध में उसकी पराजय हो गई है। युद्धक मामलों में संसारभर के माने जाने विशेषज्ञ स्ट्रॉप ह्यूप व पॉसनी ने ठीक इन्हीं सब कार्यों को “पीवीएस” की आत्मा कहा है :

१) शत्रुपक्ष में फूट व आतंक का प्रचार।
२) अल्पसंख्यक समुदाय (नेटिव हांगकांगर्स) का समर्थन और उनके हितार्थ क्रांति को प्रोत्साहन।
३) शत्रुभूमि पर अपनी जासूसी धमक की स्थापना।
४) शत्रुपक्ष की विद्रोही सरकार को आश्रय।
५) विद्रोह, विध्वंस, हस्तक्षेप, नाकाबंदी और बहिष्कार का साम- दाम- दंड- भेद की भांति प्रयोग।

-- ऐसी सूक्ष्म, व्यवस्थित, गुप्त स्वभाव की क्रियाएं, जोकि बिना सैन्यशक्ति के भी सम्पन्न हो जाया करती हैं। इनका तात्कालिक उपचार किसी देश के पास नहीं होता। और आज हमने चीन जैसे कथित शक्तिशाली देश को भी पॉलिटिकल वॉर का आईना दिखा दिया।

भारत के कितने जासूस हांगकांग और ताइवान में कार्यरत हैं? अब तलक ये केवल शंकाएं हुआ करती थीं, जोकि आज स्थापित सत्य हो गईं। भारत की इंटेलिजेंस विंग और साहस-मेधा के संगम जासूसों का कोटि कोटि अभिनंदन किया जाना चाहिए।

सहस्राब्दियों पहले सूर्यवंशियों के ही द्वारा विजित नवद्वीप की भूमि पर पुनः “श्रीराम” का प्रचार-प्रसार कमसकम हम सनातनधर्मियों के लिए तो गर्व की ही बात है!

मेरे शब्दों की दुनिया के दोस्तो, अब वक़्त है कि “श्रीराम” और “ड्रैगन” की आपसी आप्त-शत्रुता की परतें उघाड़ी जाएं, जिन्हें ख़ुद आसमान ने अपने सीने पर स्थान दिया है!

यों भी, “श्रीराम” के हाथों “ड्रैगन” की पराजय ठीक उसी रोज़ निश्चित हो गई थी, जिस रोज़ चीन ने ड्रैगन को अपना चिह्न चुना था!

वस्तुतः “ड्रैगन” एक काल्पनिक जीव है, दुनिया में इसका अस्तित्व तो दूर, इसका कंकाल तक नहीं मिला है। ऐसे में सहज जिज्ञासा होती है कि इसका अस्तित्व कहाँ है! तो साहिबान, इसका अस्तित्व खगोलीय तारामंडलों से बनने वाली आकृतियों में है, सुदूर उत्तरी आकाश में एक रस्सीनुमा तारामंडल है, जिसमें कि चौदह तारे।

कहा जाता है कि दूसरी शताब्दी में हुए प्रसिद्ध ग्रीक खगोलविद् “टॉलेमी” ने इसे खोजा और इसे “ड्रेको” का नाम दिया। ये नाम एक सर्प-दानव का था, जोकि ग्रीक कथाओं में “हरक्यूलिस” द्वारा पराजित हुआ माना जाता है।

दोनों के आपसी युद्ध में हुई इस जय-पराजय के ही कारण, “ड्रेको” तारामंडल की सर्पिल आकृति के ठीक मस्तक पर सवार एक मानव आकृति के तारामंडल को “हरक्यूलिस” नाम दिया गया है।

विज्ञान के लगभग प्रत्येक विषय की ही भाँति, ये भी कोरा पश्चिमी असत्य है। इस ताज़ातरीन यॉरपियन झूठ की मीमांसा हमारे प्राच्य खगोलीय ग्रंथों में प्राप्त होती है, जहां इस सर्पिल आकृति को “कालिय” तारामंडल और मानव आकृति को “कृष्ण” तारामंडल कहा गया है।

आकृति, नाम व आकाशीय अवस्थिति को ध्यान में रखते हुए, ज़रा श्रीकृष्ण द्वारा “कालिया” नाग-मर्दन की घटना का पुण्य-स्मरण तो कीजिए, आपके मस्तिष्क में भूत, भविष्य व वर्तमान परत दर परत खुलता जाएगा।

कथा की समस्त कड़ियों को जोड़ने पर लब्बो-लुआब मिलता है कि तक़रीबन पाँच हज़ार वर्ष पहले ही, ये कथा समय की निहानियों द्वारा आसमान के सीने पर कुरेदी जा चुकी थी कि “कालिया” नाग की पराजय “श्रीकृष्ण” के सम्मुख अवश्यभांवी है।

और फिर चार हज़ार बरस की यात्रा कर ये कथा यूनान, मिस्र, रोमां, ग्रीक व आधुनिक यॉरप पहुँची। वहाँ इस बहती मुक्त निष्कलुष हवा के झोंकों को “टॉलेमी” ने बंधक बना लिया।

न केवल बंधक बनाया, बल्कि उनकी पूरी संरचना में आधारभूत बदलाव कर दिए। अब “श्रीकृष्ण” को ग्रीक-शैली का नया नाम “हरक्यूलिस” मिला और “कालिया” को “ड्रेको”।

कालांतर में, ये कथा चीन के हाथ लगी। और खलनायक होने के नायकत्व में आभा खोजने वाली प्रजाति ने एक पराजित राक्षस “ड्रेको” को अपना “ड्रैगन” बना कर अपना लिया।

इन सर्वभक्षी चीनी कीड़ों को लगता था कि ग्रीक में पराजित हुआ “ड्रेको” एशिया का ख़ौफ़ बन जाएगा। किंतु वे अनभिज्ञ थे कि “ड्रेको” को “हरक्यूलिस” ने नहीं, बल्कि “श्रीकृष्ण” ने पराजित किया था।

और आज इतिहास की धुंधली कथा को पुन: प्रकाशित व पुनर्जीवित करने के लिए शस्त्रधारी “श्रीराम” के आगमन का उद्घोष हुआ है। ताइवान न्यूज़ एजेंसी ने लिखा है : “इंडियाज़ राम टेक्स ऑन चायनीज़ ड्रैगन!”

अब वाक़ई मानना पड़ेगा कि इतिहास एक जीवित व्याप्ति है। ये स्वयं को दुहराती है, दुहराने का अवसर देती है। चाहे जितनी धूल इस जीवित मूरत पर लगा दी जाए, समय के झोंके आते हैं और इतिहास की वास्तविकता को विश्वभर के समक्ष प्रकट कर जाते हैं।

एक दौर था, जब “कालिया” नाग को “श्रीकृष्ण” ने कुचला था! आज चीन विरोधी नवद्वीप-भूमि ने “ड्रैगन” को कुचले जाने का पुण्यकार्य को “श्रीराम” के चरणों में समर्पित किया है। इस सम्मान और गर्व के क्षणों में भारतभूमि से ओर से समग्र नवद्वीप को प्रणाम व हार्दिक अभिनंदन।🙏🏻

इति नमस्कारान्ते।
✍️ Yogi Anurag

#We_conquer_We_Kill

‘राम जी’ का राज्याभिषेक हो चुका था और रामराज्य में प्रजा सुखी जीवन गुज़ार रही थी। प्रजा के सुख के लिए राम जी के द्वारा अपने राज्य में जगह-जगह अन्न क्षेत्र चलाये जा रहे थे, ऐसा ही एक अन्न क्षेत्र सरयू और गंगा के संगम पर भी चलाया जा रहा था। 

एक दिन भ्रमण करते हुए वहां ‘अगस्त्य मुनि’ पहुँच गए और अन्नक्षेत्र देखकर वहां एक पंक्ति में भोजन करने बैठ गए। पहला निवाला अंदर रखने से पहले उन्होंने अन्न क्षेत्र से अधिकारियों से पूछा कि ये अन्नक्षेत्र कौन चलवा रहा है? बताया गया, यह अन्न-क्षेत्र राजा राम की आज्ञा से चलाये जा रहे हैं।

ये सुनते ही मुनिवर अपने स्थान से यह कहते हुए उठ गये कि “जिस राम ने ब्राहमण पुत्र दशानन का वध करने के पश्चात् ब्रह्महत्या के पाप के प्रायश्चित के लिए न तो तीर्थयात्रा की है और न ही कोई यज्ञ किया है, उस राम का अन्न मैं नहीं खाऊंगा।“ अतएव आप सब जाकर राजा राम से यह बात कह दें। 

राम जी तक जब यह बात पहुँची तो उन्होंने तुरंत पुष्पक विमान को आने की आज्ञा दी और अपने परिवार वालों और सुहृदों को लेकर जम्बूद्वीप स्थित समस्त तीर्थों की यात्रा शुरू कर दी और चारों दिशाओं में स्थित तीर्थों की यात्रा पूरी की और लौटकर आये तो यज्ञ भी किया। 

‘राम’ तो ‘श्रीहरि’ के अवतार थे, उन्हें भला किसी की हत्या का पाप कैसे लग सकता था? तो वास्तव में मुनिवर अगस्त्य ‘श्रीराम’ को ऐसा कहके लोक-मर्यादा की स्थापना करवाना चाहते थे ताकि तीर्थाटन के जरिये जुड़ा रहा अखंड भारत उसी परंपरा को राम का अनुगमन करके आगे भी आत्मसात कर ले। 

प्रभु की इन तीर्थ-यात्राओं से ये हुआ कि राम और उनकी कथाओं का व्याप पूरी दुनिया और विशेषकर दक्षिण-पूर्व के देशों में हो गया और राम आज भी वहां के जन-जन में और मन-मन में विराजित हैं भले ही वहां के लोग मतान्तरित हो गए।

एक उदाहरण इण्डोनेशिया है; जो दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में स्थित एक देश है और करीब सत्रह हज़ार द्वीपों का समूह है। इस देश में आज दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है। यह देश तकरीबन साढ़े तीन सौ साल से अधिक समय तक डचों के अधीन थी,  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे डचों से आजादी मिली। 

डचों से आजादी के लिये इण्डोनेशियाई लोगों के संघर्ष के दौरान एक बड़ी रोचक घटना हुई। इंडोनेशिया के कई द्वीपों को आजादी मिल गई थी पर एक द्वीप पर डच अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं थे। डचों का कहना था कि इंडोनेशिया इस बात का कोई प्रमाण नहीं दे पाया है कि यह द्वीप कभी उसका हिस्सा रहा है, इसलिये हम उसे छोड़ नहीं सकते। जब डचों के तरफ से ये बात उठी तो इंडोनेशिया यह मामला लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ चला गया। ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने भी इंडोनेशिया को सबूत पेश करने को कहा तो इंडो लोग अपने यहाँ की प्रचलित रामकथा के दस्तावेज लेकर वहां पहुँच गये और कहा कि जब सीता माता की खोज करने के लिये वानरराज सुग्रीव ने हर दिशा में अपने दूत भेजे थे तो उनके कुछ दूत माता की खोज करते-करते हमारे इस द्वीप तक भी पहुंचे थे; पर चूँकि वानरराज का आदेश था कि माता का खोज न कर सकने वाले वापस लौट कर नहीं आ सकते तो जो दूत यहाँ इस द्वीप पर आये थे वो यहीं बस गए और उनकी ही संताने इन द्वीपों पर आज आबाद है और हम उनके वंशज है। बाद में उन्हीं दस्तावेजों को मान्यता देते हुए ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने वो द्वीप इंडोनेशिया को सौंप दिया।

इसका अर्थ ये है कि हिन्दू संस्कृति के चिन्ह विश्व के हर भूभाग में मिलते हैं और इन चिन्हों में साम्यता ये है कि श्रीराम इसमें हर जगह हैं। भारत के सुदुर पूर्व में बसे जावा, सुमात्रा, मलेशिया, थाईलैंड और इंडोनेशिया हो या दक्षिण में बसा श्रीलंका या फिर चीन, मंगोलिया , #ताईवान या फिर मध्य-पूर्व के देशों के साथ-साथ अरब-प्रायद्वीप के देश, राम नाम और रामकथा का व्याप किसी न किसी रूप में हर जगह है। अमेरिका और योरोप की माया,  इंका या आयर सभ्यताओं में भी राम हैं तो मिश्री लोककथायें भी राम और रामकथा से भरी पड़ी हैं। इटली,  तुर्की, साइप्रस और न जिनके कितने देश हैं जहाँ राम-कथा आज भी किसी न किसी रूप में सुनी और सुनाई जाती है।

भारतीय संस्कृति के विश्व-संचार का सबसे बड़ा कारण राम हैं। राम विष्णु के ऐसे प्रथम अवतार थे जिनके जीवन-वृत को कलम-बद्ध किया गया ताकि दुनिया उनके इस धराधाम को छोड़ने के बाद भी उनके द्वारा स्थापित आदर्शों से विरत न हो और मानव-जीवन, समाज-जीवन और राष्ट्र-जीवन के हरेक पहलू पर दिशा-दर्शन देने वाला ग्रन्थ मानव-जाति के पास उपलब्ध रहे। इसलिये हरेक ने अपने समाज को राम से जोड़े रखा।

आज दुनिया के देशों में भारत को बुद्ध का देश तो कहा जाता है पर राम का देश कहने से लोग बचते हैं। दलील है कि बुद्ध दुनिया के देशों को भारत से जोड़ने का माध्यम हैं पर सच ये है कि दुनिया में बुद्ध से अधिक व्याप राम का और रामकथा का है। भगवान बुद्ध तो बहुत बाद के कालखंड में अवतरित हुए पर उनसे काफी पहले से दुनिया को श्रीराम का नाम और उनकी पावन रामकथा ने परस्पर जोड़े रखा था और चूँकि भारत-भूमि को श्रीराम अवतरण का सौभाग्य प्राप्त था इसलिये भारत उनके लिये पुण्य-भूमि थी। राम भारत भूमि को उत्तर से दक्षिण तक एक करने के कारण राष्ट्र-नायक भी हैं।

"भारत को दुनिया में जितना सम्मान राम और रामकथा ने दिलवाया है, इतिहास में उनके सिवा और कोई दूसरा नहीं है जो इस गौरव का शतांश हासिल करने योग्य भी है।"

संभवत लंबे अरसे बाद ये पहला अवसर आया है जब दुनिया पुनः उसी भारत को पहचान रही है जो राम की है और चाह रही है कि राम का वंशज ये देश पुनः राम की तरह ही दुनिया से तमाम आसुरी शक्तियों का खात्मा करे। आज ही ताईवान के एक अखबार में एक लेख छपा है जिसका शीर्षक है, Photo of the Day: India's Rama takes on China's dragon, इस ख़बर के साथ एक तस्वीर लगी है जिसमें प्रभु राम आक्रामक मुद्रा में तीर-धनुष दिये एक ड्रैगन पर आक्रामक हैं। यानि इस अखबार ने राम जी के रूप में भारत को और ड्रैगन के रूप में असुर “चीन” को दर्शाया है।

और जाहिर है दुनिया आज भारत को राम यानि देवत्व के प्रतीक रूप में देखकर यही उम्मीद कर रही है कि राम के वंशजों के इस देश का वर्तमान नेतृत्व भी उसी राम की तरह “निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह” कहते हुए उठे और विस्तारवादी और मानवता के शत्रु असुर का संहार कर दे।

जब राजा राम का असुरों के साथ युद्ध होता था तो समस्त देवगण, यक्ष, किन्नर सब खड़े देखते थे कि प्रभु के हाथों कब इस नीच अधर्मी का वध होगा और आज भी उसी तरह ताईवान समेत विश्व का हरेक देश मोदी की ओर देख रहा है और कह रहा है कि इस असुर का वध कर यश और कीर्ति के भागी बनिये।

अखबार में लगी राम जी वाले तस्वीर के साथ लिखा है :- 

"We Conquer, We Kill"

जय श्रीराम 
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