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अपने नाश की खातिर

अपने नाश की खातिर अपने जुटा रहा समान
कहाँ रुकेगा जाकर नीचे गिरता यह इंसान !

कभी दामिनी कभी प्रियंका कभी निर्भया केश ।
कभी जली उन्नाव की बेटी देखा सारा देश ।।
जब जो चाहा जहाँ दरिंदा ले ली उसकी जान ।
कहाँ रुकेगा जाकर नीचे गिरता यह इंसान !

एक तरफ फैला है जग में कोरोना का रोना ।
नहीं बचा है कहीं प्यार के लिए हृदय का कोना ।।
चलते राह चले जाते अब सन्तों के भी प्राण ।
कहाँ रुकेगा जाकर नीचे गिरता यह इंसान !

गर्भिणी हथिनी को केरल में मारा क्रूर कसाई ।
धिक-धिक पापी नीच नराधम को कुछ लाज न आई ।।
हत्यारा हब्सी हैवान पतित पामर पाषाण ।
कहाँ रुकेगा जाकर नीचे गिरता यह इंशान !

अच्छे लोग अधिक सक्षम मूंदे रहते हैं नैन ।
चंद गलत कुछ लोग नहीं लेने देते चितचैन ।।
वही छीन लेते हैं औरों के मुख की मुस्कान ।
कहाँ रुकेगा जाकर नीचे गिरता यह इंसान !

कवि चितरंजन 'चैनपुरा' , जहानाबाद, बिहार, 804425
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