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जहां मै रहता

जहां मै रहता

सत्यार्क गाँधी 


जहां मै रहता-इलाका शहर से दूर था 
बंज़र जंगलों से गुज़रना-  मज़बूर था !

पेड़-पत्थरों से भरे-थें मटमैले ज़मीन 
मकाने इक दूसरे से बिलकुल दूर था !

खुरदरी पहाड़ों के नीचे बहता दूधिया पानी 
तड़पती प्यासी ज़िन्दगी का- वो खजूर था !

खानाबदोश की तरह खिड़की से झाकता सूरज 
चांदनी रोशनी का मय्यसर,हर तरफ-ज़रूर था !

कभी देबदूत-कभी कामदेब-कभी बँसुरी धुनें 
क्रॉस के किले-प्रेम की दर्द का बड़ा मंदिर था !

स्वर्ग से सुन्दर- फूलों से सज़ा- खूबसूरत घर 
फरिश्तों की तरह रहने का अपना दस्तूर था !

माँ-बाप की साये से मरहूम-मंदिर के चौखट 
रूहानी ताक़तों के परिन्दें उड़ने का सुरूर था !

मेरे ज़िन्दगी के शानदार साथी थें मेरे खिलौनें 
भब्य देबी देबताओं के मूर्तियां-का स्वरुप था !

अपने भीतर साहस पैदा करो अपना विस्बास 
मुहबत ! तो-उम्मीदों की रौशनी से- मशहूर था  !

आजतक-इक बून्द आंसू नही टपका 'सत्यार्क'
इक गोल्डन गर्ल - भूरि आँखों बाली ज़रूर था !

कीमती-स्मिृति-चीन्हें मेज़ पे रखें -किताबें 
फूलों की तरह आँचल में खिले सौ नूर था  !
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