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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

संकलन अश्विनीकुमार तिवारी 
कल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा थी | इस रथ यात्रा के बारे में थोड़ा जानते समझते ही आपके कई मिथकों पर से पर्दा हट जाएगा | बिलकुल आँखें चुंधियाने वाली स्थिति भी हो सकती है इसलिए अगर शेखुलर मित्र इस बारे में पढ़ें देखें तो कृपया अपना टिन का चश्मा लगाए रखें |

जैसे एक तो आपको ये पता चल जायेगा कि मंदिर सरकारी कब्ज़े में होते हैं और पुरोहित काफ़ी कम (3500 से 56 रुपये तक) की तनख्वाह पर काम करते हैं | उनकी भर्ती की परीक्षा होती है | जो आप मंदिर में दान देते हैं वो शहर के डीएम या DC टाइप किसी सरकारी अफसर के जरिये सरकारी कोष में जाता है | जैसा की शेखुलर अफवाह है वैसे किसी पंडित के घर नहीं जाता |

जगन्नाथ मंदिर में आम पंडितों से ऊपर एक "दैतापति" लोग होते हैं | मजेदार चीज़ कि दैतापति ब्राह्मण हों ये जरूरी नहीं | तो जो सिर्फ़ ब्राह्मणों के पंडित-पुजारी होने का वहम है वो भी टूट जायेगा | ओह हां ! एक बार रथों के नाम भी देखिएगा | उम्मीद है दमन या दलन जैसे शब्दों का अर्थ आपको पता होगा |

जिस रथ के सारथि का नाम अर्जुन है वो रथ देखिएगा | वो रथ जाहिर है सुभद्राजी का होता है | उस रथ का नाम "देवदलन" है | क्यों है, कैसे है, जिसे सवालों से परेशान हो रहे हों तो खुद ढूंढिए अपने जवाब |

हम बस वो बचपन का रट्टा हुआ सुभाषित "ना ही सुप्तस्य सिंघस्य प्रविश्यन्ति मुखे मृगा..." याद दिला कर आज्ञा लेंगे | धन्यवाद

आज एक नाम पढ़ा । डॉ विजय सोनकर शास्त्री । नहीं, मेरा उनसे कोई परिचय नहीं । 

मुझे बात करनी है सोनकर और शास्त्री की । आप लोगों को पता ही होगा कि सोनकर ब्राह्मण नहीं होते । लेकिन शास्त्री की पदवी उन्होने अपनी बुद्धिमत्ता से अर्जित की है ।
सुना है कि व्यक्ति विनम्र भी हैं । विद्वान हैं ही यह उनकी निर्मित ग्रंथ संपदा से पता चलता है । एमबीए, PhD के साथ साथ शास्त्री भी हैं । किसी ब्राह्मण ने रोका नहीं, शास्त्री होने से । ना ही उनके अधिकार को कोई ब्राह्मण कम मानता है ।

वैसे यह भी पता चला कि घोर ब्राह्मणवादी, मनुवादि इत्यादि सभी विशेषणों से मंडित भाजपा के यह राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं और हिन्दुत्व के विषय पर अधिकारी वक्ता माने जाते हैं । अगर कोई न ही जानता हो तो बता दूँ कि सोनकर खटीक होते हैं याने SC से हैं । वैसे और भी कई शास्त्री बने हैं, हर साल बनते हैं और सम्मान भी पाते हैं ।

और एक मजेदार बात : महाराष्ट्र में संतों ने बहुत साहित्य निर्मिति की है । पिछले कई बरसों से संत साहित्य में जिनका शब्द आखरी माना जाता है वे हैं डॉ यू म पठान । जी, मुसलमान ही हैं । लेकिन उनका शब्द वादातीत है ।

ऐसे ही किसी को विद्या अर्जित कर के शंकराचार्य बना देखना चाहता हूँ । जाती नहीं, विद्वान पूजनीय होता है । होगा कोई SC शंकराचार्य ?

वैसे सवाल यह भी है कि यह सभी लेबल जैसे कि ब्राह्मणवाद, मनुवाद, मनुवादि ब्राह्मण, आदि के गढ़नेवाले कम्युनिस्ट पार्टी के पॉलिटब्यूरो में कितने दलित हैं? दलित की बाजू लेकर हिंदुओं को गालियां देनेवाले मुसलमान भी बताएं कि देवबंद के सभी टॉप पोस्ट्स पर बाहरी नस्ल के अशरफ ही क्यों हैं, कोई भारतीय वंश का पस्मान्दा अजलफ क्यूँ नहीं? क्या ये बाहरी नस्ल के याने हमलावरों के वंशज ऊपर से पट्टा नाजिल कर के आए हैं कि अजलफ या अरजाल मुस्लिम कभी उन पोस्ट्स पर नहीं बैठेंगे?

हिन्दुत्व बहती नदिया है, प्रवाह गंदगी को साफ करते रहता है । पानी जहां थम जाता है वहाँ "जीवन" नहीं रहता, उसमें काई जमाती है और सड़ांध मारती है ।
✍🏻आनन्द कुमार

रोचक  एतिहासिक ज्ञान... 

१८०८ में ईस्ट इंडिया कंपनी पूरी के जगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे में लेती हे और फिर लोगो से कर बसूला जाता हे, तीर्थ यात्रा के नाम पर.. चार ग्रुप बनाए जाते हैं.. और चौथा ग्रुप जो कंगाल हे उनकी एक लिस्ट जारी की जाती हे....

१९३२ में जब डॉ आंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं, तो वे ईस्ट इंडिया के जगनाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज की लिस्ट को अछूत बना कर लिखते हैं....

भगवान् जगन्नाथ  के मंदिर की यात्रा को यात्रा कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला जिससे अरबो रूपये सीधे अंग्रेजो के खजाने में बने और इंग्लैंड पहुंचे.

यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था .

प्रथम श्रेणी = लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री )
द्वितीय श्रेणी = निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री )
तृतीय श्रेणी = भुरंग ( यात्री जो दो रुपया दे सके )
चतुर्थ श्रेणी = पुंज तीर्थ ...(कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो रूपये भी नही , तलासी लेने के बाद )..

चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हे .
१. लोली या कुस्बी ,२ कुलाल या सोनारी ३ मछुवा ४ नामसुंदर या चंडाल 5 घोस्की 6 गजुर ७ बागड़ी 8 जोगी 9 कहार १० राजबंशी ११ पीरैली १२ चमार 13 डॉम 14 पौन १५ टोर १६ बनमाली १७ हड्डी 

प्रथम श्रेणी से १० रूपये , द्वितीय श्रेणी से 6 रूपये , तृतीय श्रेणी से २ रूपये और चतुर्थ श्रेणी से कुछ नही ..

जो कंगाल की लिस्ट है जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नही घुसने दिया जाता था। आप यदि उस समय 10 रूपये भर सकते तो आप सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाओगे।

डॉ आंबेडकर ने अपनी lothian commtee report में यही लिस्ट का जिक्र किया हे...और कहा हे , कंगाल पिछले १०० साल में कंगाल ही रहे......

 In regard to the depressed classes of Bengal there is an important piece of evidence to which I should like to call attention and which goes to show that the list given in the Bengal Census of 1911 is a correct enumeration of caste which have been traditionally treated as untouchable castes in Bengal. I refer to Section 7 of Regulation IV of 1809 (A regulation for rescinding Regulations IV and V of 1806 ; and for substituting rules in lieu of those enacted in the said regulations for levying duties from the pilgrims resorting to Jagannath, and for the superintendence and management of the affairs of the temple; passed by the Governor-General in Council, on the 28th of April 1809) which gives the following list of castes which were debarred from entering the temple of Jagannath at Puri : (1) Loli or Kashi, (2) Kalal or Sunri, (3) Machhua, (4) Namasudra or Chandal, (5) Ghuski, (6) Gazur, (7) Bagdi, (8) Jogi or Nurbaf, (9) Kahar-Bauri and Dulia, (10) Rajbansi, (II) Pirali, (12) Chamar, (13) Dom, (14) Pan, (15) Tiyar, (16) Bhuinnali, and (17) Hari.
The enumeration agrees with the list of 1911 Census and thus lends support to its correctness. Incidentally it shows that a period of 100 years made no change in the social status of the untouchables of Bengal.

वही कंगाल बाद में अछूत बने। ध्यान दीजिये महार शब्द का उल्लेख तक नही है। (सबसे रोचक)

ध्यान दीजिये रोचक हे..

Tribhuwan Singh जी यही आपको चाहिए था.

ईस्ट इंडिया कंपनी की report...

शयद फोटो क्लियर नही हैं। सीधे वेबसाइट पर जा कर पढ़े ।

https://books.google.co.in/books?id=dytDAAAAcAAJ&pg=PA81&lpg=PA81&dq=Section+7+of+Regulation+IV+of+1809+(A+regulation+for+rescinding+Regulations+IV+and+V+of+1806&source=bl&ots=NIRt1-s9GL&sig=0U_Rbyib5G_S_rZiDUqFaK88T7g&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjBsJ3J1erMAhWCEpQKHXloA64Q6AEIHDAA#v=onepage&q&f=false

lothian commetee. report..

http://www.ambedkar.org/ambcd/14E.%20Dr.%20Ambedkar%20with%20the%20Simon%20Commission%20E.htm
✍🏻डॉ सुरेंद्र सिंह सोलंकी

क्या आप जानते हैं कि..... मिस्र के बहुचर्चित पिरामिड ही सिर्फ हमारे हिन्दू मंदिरों की नक़ल नहीं है बल्कि...... हमारे भगवान श्रीकृष्ण को मिस्र में भी पूजा जाता है ..एवं ...जगन्नाथ यात्रा की ही तरह ... मिस्र में भी जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है...!

यह सुनने में थोडा अटपटा जरुर लगता है.... लेकिन, ये पूर्णतः सत्य है....!

दरअसल.... भगवान् श्रीकृष्ण को मिस्र में.... ""अमन देव "" कह कर पुकारा जाता है....!

मिस्र के अमन देव को हमेशा को ही नील नदी के ऊपर चित्रित किया जाता है..... एवं , उन्हें नील त्वचाधारी के रूप में बताया जाता है...!

सिर्फ इतना ही नहीं..... भगवान अमन देव के सर की पगड़ी के ऊपर.... मोर के दो पंख लगे होने अनिवार्य हैं.....!

और.... मिस्र में ऐसी मान्यता है कि.... इन्ही अमन देव ने...... सृष्टि की रचना की है....!

अब... हिन्दू धर्म के बारे में थोड़ी सी भी जानकारी रखने वाला बच्चा भी..... यह बता देगा कि..... उपरोक्त वर्णन भगवान श्रीकृष्ण का है ...... और, हमारे ... पद्म पुराण.. विष्णु पुराण से लेकर श्रीमदभागवत गीता और महाभारत तक में ... उपरोक्त वर्णन देखा जा सकता है...!

सभी पुराणों एवं धार्मिक ग्रन्थ में भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार बताया गया है...... एवं... भगवान श्रीकृष्ण को नील त्वचा धारी .... मोर पंख युक्त ....क्षीर सागर के ऊपर चित्रित किया जाता है....!

सिर्फ इतना ही नहीं..... हमारी जगन्नाथ यात्रा की हूबहू नकल ... हमें अमन देव की यात्रा में मिलता है....!

जिस तरह ..... हमारे जगन्नाथ यात्रा में.... पहले भगवान श्रीकृष्ण , सुभद्रा एवं बलराम की प्रतिमा को नहलाकर कर .... एवं , नए वस्त्रों एवं आभूषणों से सुसज्जित कर .... ढोल-नगाड़े तथा बेहद धूम-धाम से यात्रा निकाली जाती है .....

ठीक उसी प्रकार..... मिस्र में भी.... अमन देव, मूठ एवं खोंसू ...... के त्रैय प्रतिमा को नहलाकर .... नए वस्त्रों एवं आभूषणों से सुसज्जित कर .... बेहद धूम-धाम एवं .. उल्लास के साथ .... ये यात्रा निकाली जाती है....!

और तो और.... भारत में हम हिन्दुओं की ये रथयात्रा .... मानसून से प्रारंभ के कुछ समय बाद ..... पुरी के जगन्नाथ मंदिर और गुंडीका मंदिर को जोडती है... जिसकी दूरी लगभग 2 किलोमीटर है....!

तथा... आश्चर्यजनक रूप से ... मिस्र में भी ये रथयात्रा जुलाई के महीने में ही...... कर्णक मंदिर और लक्सर मंदिर को जोडती है..... जिनके बीच की दूरी लगभग 2 मील है....!

हमारे रथयात्रा के ही समान.. अमन देव की भी रथयात्रा में..... भव्य एवं बेहद सुसज्जित रथों का प्रयोग किया जाता है...... जिन्हें खींचने के लिए .... किसी मशीन अथवा जानवर का प्रयोग नहीं किया जाता है ..... बल्कि, भक्त स्वयं उन्हें अपने हाथों से खींचते हैं....!

इसीलिए... किसी को इस बात पर रत्ती भर भी संदेह नहीं होना चाहिए कि........ मिस्र का अमन देव यात्रा ... कुछ और, नहीं बल्कि.... हमारी जगन्नाथ यात्रा ही है...... परन्तु.... जगह, भाषा एवं सामाजिक तानाबाना के परिवर्तन के कारण..... उसे .... जगन्नाथ यात्रा की जगह अमन देव की यात्रा कहा जाने लगा.....!

दरअसल हुआ ये कि....

आज से लगभग 3000 ईसा पूर्व में हमारे हिंदुस्तान और मिस्र के पहले फिरौन के साथ व्यापक व्यापार संबंध थे..... तथा, भारत से मिस्र में ..... मलमल कपास, मसाले, सोने और हाथी दांत.... वगैरह बहुतायत में निर्यात किए जाते थे....!

इसीलिए.... भारतीय व्यापारियों का व्यापार के सिलसिले में ..... मिस्र में हमेशा आते-जाते रहने से.... वहां से सामाजिक और धार्मिक प्रणालियों पर हमारे हिंदुस्तान का बेहद गहरा प्रभाव पड़ा...... और, मिस्र के लोक कला ..... भाषा... जगह के नाम ... एवं, धार्मिक परम्परा पर हिन्दू सनातन धर्म ने एक अमिट छाप छोड़ा....!


कदाचित .... यह भी संभव है कि...... मिस्र पर पहले हम हिन्दुओं का ही वर्चस्व रहा हो..... और, इन हजारों-लाखों सालों में.... मिटते-मिटते भी............ पिरामिड एवं रथयात्रा जैसे कुछ चीज..... हिन्दू सनातन धर्म के प्राचीन गौरव, महानता एवं व्यापकता की गवाही देने के लिए बचे रह गए हों....!

इसीलिए हिन्दुओ..... खुद पर लज्जित होकर अथवा मनहूस सेकुलरों के बहकावे में आकर ........ धर्मनिरपेक्ष ना बनें....

बल्कि.... अपने गौरवशाली इतिहास एवं उसकी व्यापकता को जानकर उस पर अभिमान करें....
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