असली सोना यानी हनुमानजी का बाल भी बांका नहीं हुआ क्यों?
* कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥
उनका सोने का सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतों का राजा सुमेरु हो। हनुमान्जी ने बार-बार सिंहनाद करके कहा- मैं इस खारे समुद्र को खेल में ही लाँघ सकता हूँ॥ श्री हनुमानजी का जो रूप है वो कंचन जैसा है, गोस्वामीजी ने लिखा है "कनक वरण तप तेज बिराजा" सोना जब तपता है तो कंचन बनता है, हनुमानजी के भीतर तप भरा है इसलिये तेज उनका कंचनरूप धारण कियें है, तेज तप से आया है, लंका सोने की थी,

पावक जरत देखि हनुमंता।
भयउ परम लघु रूप तुरन्ता।।
भयउ परम लघु रूप तुरन्ता।।
सज्जनों! भक्ति देवी भक्तों के लिये तो शीतल है एवम् दुष्टों के लिये ज्वाला, तो जीवन में जो तेज है वह तप से ही प्रकट होता है, हनुमानजी जैसा कौन तपस्वी होगा? लंका वैभव का प्रतीक है, लोगों के तो घरों में सोना है, लेकिन लंका के सारे घर ही सोने के थे कितना वैभव होगा?
लेकिन दुर्भाग्य से इस वैभव का स्वामी अभिमानी था, हनुमानजी के स्वामी भगवान् है और सज्जनों! तमाशा देखिये, जो रावण पूरे जगत को जला रहा था आज उसी का महल जल रहा है, जो दूसरों को जलाता है, भले ही उसका सोने का घर क्यों न हो एक न एक दिन वह भी जलकर राख हो जाता है।
अभिमानी के प्रकृती भी विरूद्ध हो जाया करती है, रावण का जब महल जल रहा था रावण ने मेघनाथ से कहा जरा इन्द्र को बुलाओ कहो वर्षा करे, इन्द्र वर्षा के लिए बादल लेकर तो आया लेकिन हमने संतों से सुना है कि बादलों में इन्द्र ने पानी नहीं पैट्रोल भरकर लाया, दोस्तों, दुष्टों के लिये प्रकृती भी विरूद्ध हो जाया करती है।
दूसरी बात? एक तो हनुमानजी लाल वर्ण के है ऊपर से सिन्दूर, भाई-बहनों! आपने वह भी घटना सुनी होगी कि प्रातःकाल जब हनुमानजी प्रभु की सेवा में जा रहे थे तो माँ को प्रणाम करने उनके भवन में आ गये, माँ उस समय श्रृँगार कर रही थीं, अपनी माँग में सिन्दूर भर रही थी।
हनुमानजी तो भोलेनाथ के अवतार है इनको तो कुछ मालूम नहीं तो पूछा माँ यह क्या कर रही हो? माँ ने सोचा अगर कहूँगी कि सुहाग चिन्ह लगा रही हूँ तो पूछेगा यह सुहाग क्या होता है? इनको तो कुछ मालूम नहीं प्रश्न पर प्रश्न खडा करेंगे, माँ ने कहा यह प्रभु को अच्छा लगता है।
तो हनुमानजी ने सोचा यदि प्रभु सिन्दूर की एक रेखा से प्रसन्न हो सकते हैं तो मैं तो पूरे शरीर को ही लाल कर दूँगा और गये बाजार, दुकान से पूरी बोरी निकालकर लाल-लाल पोत लिया और आ बैठे राजदरबार में, जो देखे वह ही हँसे, भगवान् ने देखा तो अपनी हँसी रोक नहीं पाए बोले यह क्या पोत लिया?
बोले प्रभु आपको सिन्दूर अचछा लगता है इसलिए पोत लिया, माँ ने कहा था कि आपको सिन्दूर अच्छा लगता है इसलिये लगा दिया, माँ तो केवल एक रेखा बना रही थी मैंने सोचा यदि आप प्रसन्न होते हैं तो मैंने पूरा शरीर ही लाल पोत डाला, हनुमानजी के भोले भाव को देखकर प्रभु ने उन्हें ह्रदय से लगा लिया, संयोग से उस दिन मंगलवार था।
भगवान् ने कहा हनुमान आज मैं घोषणा करता हूँ कि मंगलवार के दिन जो भी तुम्हारे शरीर पर सिन्दूर का चोला चडाएगा मैं उससे सदैव प्रसन्न रहूँगा, तभी से मंगलवार के दिन हनुमानजी पर सिन्दूर का चोला चढाने की परम्परा चली आ रही है, हनुमानजी के लिए सुवेश शब्द आया है जबकि आज कुवेश हो रहा है।
किसी भी राष्ट्र की संस्कृति को नष्ट करना हो या किसी भी राष्ट्र की धर्म, संस्कृति, समाज को नष्ट करना हो तो कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है, उसकी तीन चीजें बिगाड दीजिये, उसकी भाषा, भोजन और वेश बिगाड दीजिये, दुर्भाग्य से आज तीनों पर ही आक्रमण हैं, भारतीय भोजन हमारे जीवन से जा रहा है, भारतीय भाषा को हम आदर देने को तैयार नहीं है, भारतीय वेश का तो भगवान् ही मालिक है।
कोई-कोई लगता है कि यह अभारतीय है, ऐसा लगता है कि सारे शेखचिल्ली पता नहीं किसी अन्य देश से उठाकर भारत में ला दिये गये हैं, वेश भी कैसा चला है? वेश के पीछे भी कोई अर्थ होता है, आज का वेश देखो मूर्खों जैसा वेश, पहले बस अड्डों पर ऐसे पागल घूमा करते थे फटा हुआ जीन्स पेंट पहनकर, आज फटा हुआ जीन्स पेंट फैशन हो गया है।
आज बडे-बडे पेंट पहनने वालों को भी देखो, या तो पैर से डेढ फीट ऊपर लटक रही या फिर डेढ फीट नीचे घिसट रही है, घरों में किसी को भी अलग पोंछा लगवाने की जरूरत नहीं, आप उनके पैर गीले कर दो और आंगन में घुमाओ, पोंछा स्वयं लग जायेगा, पेंट में छह से आठ जेब भीतर से खाली है फिर जेंबें छह है, अरे भाई यह विदेशों में मजदूरों का वेश है।
उन मजदूरों को टावर पर ऊंची जगह पर काम करना होता है, बार-बार नीचे न उतरना पडे किसी जेब में पेंचकस, किसी जेब में कुछ किसी जेब में कुछ, संकोच लगता है यह भारत है, भारत के लोग हैं यह हिन्दू हैं न जिनको भाषा का गौरव हैं न भोजन का ज्ञान हैं, न वेश का स्वाभिमान है।
वेश ऐसा चाहियें जो मन में गौरव बढायें, भक्ति का गौरव बढायें, देश का गौरव बड़ायें, आनन्द का भाव बढायें।दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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