मछली-चींटी : चीन-जापान
संकलन अश्विनीकुमार तिवारी

खमेरों की कहावत से बड़ी अनूठी कथा #चीन और #जापान के सम्बंध में निकलती हैं। 1920 से 30 के दशक में जब चीन में यूरोपीय प्रभाव बढ़ रहा था तब वहां पश्चिन से प्रभावित होकर दो विचारधाराएं पनपने लगी। यह दोनों ही विचारधाराएं चीन की परंपरागत राजसत्ता जो वहां पर 2000 वर्ष से स्थापित थी उसके विरुद्ध थी।
जनसामान्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं होने के कारण इन विचारधाराओं ने चीन में जन्म लेना शुरू कर दिया जिसको हवा उपनिवेशवादियों ने भी दी। #फ्रांस और #रूस में क्रांति हो चुकी थी, वहां राजा को मारकर राजसत्ता खत्म कर दी गयी थी। चीन के पड़ोस में रूसी में लेनिन 1917 में शहरी मजदूरों की बगावत जिसे #बोल्शेविकक्रांति कहते हैं उसकी वजह से रूस की सत्ता पर एकाधिकार कर चुके थे। ऐसे में 1920 के आरंभ में रूस के समर्थन रूसी #कम्युनिस्टपार्टी के समर्थन से चीन में भी कम्युनिस्ट पार्टी बनाई गई, वही दूसरी तरफ चीन में एक और विचारधारा कुओमींटिंग (राष्ट्रवादी) विचारधारा का भी प्रादुर्भाव हुआ जिसका जिसका नेतृत्व पहले चीनी राष्ट्रपिता सुन यात सेन और फिर 1925 में उनकी मृत्यु के बाद चियांग काई शेक जैसी शख्सियत ने किया।
चीन में यह सब हो ही रहा था तब तक 1931 में जापान ने चीन पर आक्रमण करके उसका एक बड़ा भूभाग जिसे मंचूरिया कहते हैं, वह जीत लिया। मंचूरिया वर्तमान चीन का वह हिस्सा है जो जापान के बेहद करीब है। यहाँ हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मंचुरिया परंपरागत रूप से कभी भी चीन का हिस्सा नहीं था। मंचू लोगों ने चीन पर लंबे समय तक शासन किया था। परंतु जापान के इस पर कब्जा करते समय, वह चीन के कब्जे में था। अब जापान जैसे चींटी के आकार वाले देश ने चीन जैसी बड़ी मछली का एक हिस्सा अपने आधिपत्य में रख लिया तो चीनी राष्ट्रप्रेम उमड़ पड़ा।
जापानियों का यह कब्जा करीबन एक दशक तक रहा जापानी जितना जुल्म चीनियों पर करते रहें उतना ही राजा को हटा करके आयी नेशनलिस्ट कुआमींटिंग (राष्ट्रवादियों)सरकार सरकार जनता में अलोकप्रिय अन-पॉपुलर हो गई, जापान दमन करता रहा और कम्युनिस्ट पार्टी और माओ फलता फूलता रहा ।
1949 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखिया रहे माओ ने चीन को आजाद मुल्क घोषित कर दिया और इस प्रकार पूरे 60 करोड लोगों पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी छा गई।
कुओमींटिंग (राष्ट्रवादी) सरकार जिसका नेतृत्व चियांग काई शेक कर रहा था उसको भाग कर अमेरिकी अंग्रेजो के द्वारा कब्जाए गए जापानी- चीनी टापू जिसे ताइवान कहा जाता है उस पर जाना पड़ा। उनकी राष्ट्रवादी सरकार आज भी ताइवान पर उसी प्रकार से शासन कर रही हैं जबकि मेन लैंड चाइना जो चीन का सबसे बड़ा हिस्सा है वहां पर कम्युनिस्ट शासन हो गया।
जापानी आक्रमण से पहले कम्युनिस्ट उस वक्त बहुत बड़ी ताकत नहीं थे जबकि राष्ट्रवादी चीन में राजतंत्र खत्म होने के बाद सत्ता पर काबिज हो गए थे। यह केवल और केवल जापान द्वारा चीनी राष्ट्रवादीयों कुआमींटिंग से युद्ध करके उनको बार-बार कमजोर करके कम्युनिस्टों की तरफ धकेलने का अपराध था जिसके कारण आज चीन में कम्युनिस्ट शासन हैं।
माओ ने क्रूरतापूर्ण तरीके से कम्युनिस्ट शासन लागू करके जमीन पर किसानों का हक बेखखल कर जमीन और उपज दोनो पर ही राज्य की सत्ता (या यूं कहें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी) की मजबूत बना दी। बात यहीं तक रहती तो ठीक थी पर माओ रुका नही, उसके माओवाद ने कृषकों का जीवन तबाह कर दिया चीन में एक के बाद एक अकाल पड़ने लगे। अकाल से ध्यान मोड़ने के लिए माओ ने राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रबल करने के लिए उइगर सिकियांग और तिब्बत पर कब्जा कर लिया, उसके बाद भारत से युद्ध। इसके बाद तो माओ ने हद ही कर दी उसने सांस्कृतिक विप्लव - कल्चरल रिवॉल्यूशन की शुरुआत कर दी।
जो भी पुराने चीन की आस्थाएं- विचारधाराएं थी उसको समाप्त करके उसकी जगह नए कम्युनिस्ट विचारो को लागू कर दिया गया जैसे अगर कोई मुल्लाजी दाढ़ी रखना चाहे तो नहीं रख सकता, अगर बिल्डिंग ऊपर कोई इसे क्रॉस लगाना चाहे तो क्रॉस प्रदर्शित नहीं कर सकते या बुद्ध धर्म की उस प्रकार पूजा ही नहीं हो सकती थी जो सदियों से हो रही थी। बौद्ध मंदिर नष्ट कर दिए गए, हजारों की संख्या में चर्च भी बंद कर दिया गया इस प्रकार से धार्मिक और अनुष्ठान प्रक्रियाओं पर रोक करके उन्हें अंधविश्वास कुरीतियां बताकर कम्युनिस्टों ने नए तरीके के समाज का निर्माण करने की कोशिश कर दी।
सांस्कृतिक रूप से चीन भारत के बहुत करीब था लेकिन जब सभ्यागत व धार्मिक बातों को चीनी लोकजीवन से धीरे-धीरे कम्युनिस्टों ने हटा दिया तो यह जो भारत चीन में प्रगाढ़ता थी वह समाप्त हो गई।1962 युध्द के बाद तो भारत चीन के जो रिश्ते थे वह पूरी तरह से खराब हो गए। भारत और चीन जिस प्रकार सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए थे और कम्युनिस्टों ने उसी संबंध को समाप्त कर दिया ठीक उसी प्रकार बुद्धिस्ट राष्ट्र जापान और चीन के बीच भी जो संबंध थे वे नष्ट कर दिए गए। जापान तो आक्रमणकारी रहा पर भारत , उसको तिब्बत के शक में माओं ने चीनी जनता का शत्रु बना दिया।
आज यह स्थिति है की चींटी रूपी जापान को मछली रूपी चीन निगल रहा है, जापान चीन से बेहद सावधान रहता है। जापान के सेनकाकू द्वीप समूह पर चीन अपना दावा जता चुका है उसके कुछ द्वीपों पर चीन का कब्जा भी हो गया है। चीन जापान के बेहद करीब नेवल एक्सरसाइज करके जापान में भय को बढ़ाता रहता है,पिछले तीन-चार सालों में जापान जिसने सेना खत्म कर दी थी उसने अपनी सेना बनाने का विचार शुरू कर दिया है। चीन के बढ़ते हुए खतरे को देखते हुए जापान ऑस्ट्रेलिया भारत अमेरिका और साउथ कोरिया ने मिलकर एक गठजोड़ बनाने का प्रयास किया है जिसके तहत साउथ चाइना समुद्र, जापान के निकट प्रशांतमहासगर, और भारतीय महासागर क्षेत्रों में चीन के बढ़ते दखल को रोका जा सके।
अब यह चीनी मछली केवल चींटी जापान को ही नहीं निगल रही बल्कि उसकी महत्वाकांक्षा बढ़कर व्हेल समान हो गई है जो अन्य मछलियों के साथ-साथ बड़े बड़े अन्य जीवो को भी निगलने की चाह में है।
लेखक : प्रवीण शुक्ला
साभार : सैंटर फार सिविलाइज़नेशनल स्टडीज़
साभार भारतीय धरोहर
एक बहुत ही पुराना किस्सा है । नहीं हिन्दुओं के धर्म ग्रंथों से नहीं लिया है, इस बार ईसाईयों और यहूदियों के धर्म ग्रंथों का किस्सा है । दरअसल यहूदियों के शुरुआती राजाओं में किंग डेविड का नाम लिया जाता है । इसराइल के इलाके को यहूदियों का राज्य मानने के पीछे भी काफी हद तक इन्ही किंग डेविड का किस्सा है । वहां एक बहुत पुराना सा मंदिर है जिसके बारे में शिलालेख इत्यादि से पता चलता है कि वो किसी किंग डेविड का ही बनवाया हुआ है ।
तो जनाब बाकी सारे महान लोगों की तरह किंग डेविड नाम के इस सपूत के पाँव भी पालने में ही दिखने लगे थे । हुआ यूँ कि इलाके में गोलियथ नाम के एक दानव का बड़ा प्रकोप था । गोलियथ बहुत लम्बा तगड़ा सा था । फिलीस्तीनियों का ये दैत्याकार योद्धा चालीस दिन तक हर रोज़ यहूदियों के इलाके में आता और उन्हें रोज़ सुबह-शाम लड़ने के लिए चुनौती देता । मगर उसके दैत्याकार शरीर को देखकर कोई यहूदी उस से लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाता, सब डरकर दुबक जाते थे । माना जाता था कि गोलियथ ने देवताओं की फ़ौज़ को भी हराया है, इसलिए उस से लड़ने का दम कोई नहीं दिखाता था । ऐसी जगह पर अपने बड़े भाइयों को खाना पहुँचाने डेविड भी जाते थे ।
दुबले पतले शरीर के इस बच्चे ने जब गोलियथ कि रोज की चुनौती का सुना तो उसने चुनौती स्वीकार करने की ठानी । बाकि के गरीब, निरीह चरवाहों जैसे ही, डेविड के पास भी सिर्फ एक डंडा और गुलेल था । ये देखकर सबने उसे रोका, आखिर जब वो ना माना तो राजा साउल ने उसे अपना कवच देना चाहा । बेचारे डेविड को युद्ध की आदत नहीं थी । कवच-तलवार की भी आदत नहीं थी, मजबूरन बेचारे ने कवच लेने से भी इंकार कर दिया, उतने बोझ को वो संभाल ही नहीं पा रहा था । आखिर जब डेविड लड़ने चला तो उसके पास एक डंडा था, अपनी गुलेल थी, और पास ही के एक छोटी सी नदी से जमा किये पांच पत्थर । सब समझ रहे थे कि ये बच्चा आज मारा गया ।
डेविड का मुकाबला करने पहाड़ जैसा गोलियथ, अपने कवच तलवार से लैस, भाला लिए आया । लेकिन ये क्या ? पहले ही पत्थर का निशाना डेविड ने सीधा गोलियथ के सर पर लगाया ! जैसे ही गोलियथ गिरा तो उसी की तलवार से डेविड ने गोलियथ का सर काट लिया । लड़ाई ख़त्म हो गई । जब डेविड से पुछा गया इतने बड़े गोलियथ का सामना गुलेल से करने में डर नहीं लगा ? तो उसका जवाब था कि गोलियथ इतना बड़ा सा था, निशाना चूकने की संभावना ही नहीं थी ! पत्थर कहीं ना कहीं तो लगता ही ! रहा विशालकाय शत्रु का डर, तो वो तो रहेगा ही ।
बरसों पहले कुछ गधे, महा मूढ़ प्राणी ये मानते थे कि भगवान उनकी रक्षा के लिए तीसरा नेत्र खोलेंगे और शत्रु भस्म हो जायेंगे । जब "बुतशिकन ग़ाज़ी" सोमनाथ गिरा गए और शिव का तीसरा नेत्र नहीं खुला तो उन्हीं महामूर्खों ने शत्रुओं को ईश्वर का प्रकोप और पापों का दंड मान लिया । ये सारे धूर्त उस दिन भी भाग कर बनारस, नालंदा जैसे शिक्षा के केन्द्रों में आ छुपे थे । ऊपर से इनकी मक्कारी का आलम ये कि ये हमले को हमला मानने के लिए भी तैयार नहीं थे ! दैवी प्रकोप बता रहे थे ! भीड़ के दो तीन कारनामे देख ही चुके हैं । यहाँ इतिहास के सिखाये तरीकों को फिर से ध्यान में रखिये । कई मक्कार अभी इसे हमला नहीं मानते, पुराने ज़माने में जैसे दैवी प्रकोप कहा जा रहा था, जिसका कुछ नहीं किया जा सकता वैसा ही इस बार भी किया जायेगा । धूर्त कपटी भाग कर शिक्षा के गढ़ों में जा छुपे थे, मक्कार इस बार कहाँ से आवाज लगा रहे हैं फिर से देख लीजिये । पिछली बार बचाने का दायित्व जिन ईश्वर पर था उनके मंदिर और मूर्तियां तोड़ी गई थी । इस बार जिन थानों, जिन सैन्य संस्थानों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी थी उनपर हमला हो रहा है ।
बाकि भीड़ पर पेट्रोल बम का बिलकुल वैसा ही असर होगा जैसा कि गोलियथ पर पत्थर का हुआ था, निशाना चूकने की संभावना नहीं होगी, ये तो आप जानते ही हैं ?
✍🏻आनन्द कुमार
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