Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

शायद मेरा

शायद मेरा

सत्यार्क गाँधी 
शायद मेरा!कोई राह देखता होगा
आते-जाते दरबाजे पे खड़ा होगा !

परिंदे! उड़ते-रहें ! नीली-आसमां में
आंखों में ख़्वाब कितना बड़ा होगा !

कबूतरों की तरह फड़फड़ाते हैं चाहत
वक़्त-उम्मीदों के मुँडेरे पे ठहरा होगा !

रुसबाईओ के दर्द से लिपटे हुये दामन
ज़ख्म बिछुड़ने का कितना गहरा होगा !

सुबह का सूरज!शाम-नदी में डूब जाता
फिर चाँदनी अक्स हुस्न का सेहरा होगा !

क्यूं-हसरतें गुम हो जातें खौफ अंधेरों में
नाकामियां!छल से,उसको भी घेरा होगा !

कोई! कैसे छुपाये-यौवन,अपने-बाहों में
हर मुकाम पे ढूढ़तें लोगों के पहरा होगा !

लोग- आपत्ति जताते रहें,बड़ी बेरुखी से
जो हाल मेरा,वही हाल भी तुम्हारा होगा !

परछाइयों के दामन भी- साथ- छोड़ देतें
जिंदगी!रात और दिन जैसा गुजारा होगा !

इंतजारे-बफा में क्या सुकून मिले-'सत्यार्क '
मुहबत से जीत के जिंदगी,कोई हारा होगा !

मौजूद- मैं- भी था!वहां पे- हमसाया बन के
जमी-आसमां मिलने की-क्या नजारा होगा !
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ