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चार युग और उनकी विशेषताएं !

चार युग और उनकी विशेषताएं !

नीरज कुमार पाठक

युग शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। जैसे सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग आदि। आज में हम चारों युगों का वर्णन करेंगें। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है

सत्ययुग- यह प्रथम युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है

सत्ययुग का तीर्थ पुष्कर है ।

इस युग में पाप की मात्र – 0 विश्वा अर्थात् (0%) होती है ।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है !

इस युग के अवतार मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह (सभी अमानवीय अवतार हुए) है ! अवतार होने का कारण शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए।

इस युग की मुद्रा रत्नमय है ।

इस युग के पात्र स्वर्ण के है ।

काल - 17,28000 वर्ष

मनुष्य की लंबाई - 32 फ़ीट

आयु - 1 लाख वर्ष

त्रेतायुग यह द्वितीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है

त्रेतायुग का तीर्थ नैमिषारण्य है ।

इस युग में पाप की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।

इस युग के अवतार वामन, परशुराम, राम (राजा दशरथ के घर)

अवतार होने के कारण बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, मदान्ध क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए ।

इस युग की मुद्रा स्वर्ण है ।

इस युग के पात्र चाँदी के है ।

काल - 12,96,000 वर्ष

मनुष्य की लंबाई - 21 फ़ीट

आयु - 10,000 वर्ष

द्वापरयुग यह तृतीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है

द्वापरयुग का तीर्थ कुरुक्षेत्र है ।

इस युग में पाप की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।

इस युग के अवतार कृष्ण, (देवकी के गर्भ से एंव नंद के घर पालन-पोषण)।

अवतार होने के कारण कंसादि दुष्टो का संहार एंव गोपों की भलाई, दैत्यो को मोहित करने के लिए ।

इस युग की मुद्रा चाँदी है ।

इस युग के पात्र ताम्र के हैं ।

काल - 8,64,000 वर्ष

मनुष्य की लंबाई - 11 फ़ीट

आयु - 1,000 वर्ष

कलियुग यह चतुर्थ युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है

कलियुग का तीर्थ गंगा है ।

इस युग में पाप की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।

इस युग में पुण्य की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।

इस युग के अवतार कल्कि (ब्राह्मण विष्णु यश के घर) ।

अवतार होने के कारण मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों का विनाश एंव धर्म कि रक्षा के लिए।

इस युग की मुद्रा लोहा है।

इस युग के पात्र मिट्टी के है।

काल - 4,32,000 वर्ष

मनुष्य की लंबाई - 5.5 फ़ीट

आयु - 60-100 वर्ष.  
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