पटना के हनुमान मंदिर में क्यों होती है दो विग्रह की पूजा?
डॉ राकेश रंजन
छठी शताब्दी में भारत सोने की चिडि़या कहलाता था।

भारत के वैभव के बारे
में सुनकर यहां बाहर से आक्रमणकारी आते रहते थे। इन्हीं में से एक था- तुर्की का शासक
इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी। उस समय हिंदुस्तान पर खिलजी का ही राज
था। उसने अपनी सेना के साथ मेरठ से निकलकर पाटलिपुत्र को जितने के उद्देश्य से
बढ़ता गया और मेरठ से लेकर पाटलिपुत्र के नालंदा तक के सभी मंदिरों और गुरुकुल को
नष्ट करता आगे बढा| बिहार के कुछ मह्त्वपूर्ण स्थान एक सूर्यमंदिर (वर्तमान में
मनेर शरीफ) को ध्वस्त कर आगे की ओर बढा| आगे जाने के क्रम में उसे मुशाफिर खाना के
सटे एक मंदिर पर नजर पड़ी तब उसने उस मंदिर को ध्वस्त कर उसमे में स्थित प्रतिमा को
उठा कर बगल के नाले में फेक दिया | मंदिर को ध्वस्त देख उस स्थान के हिंदू काफी
दुखी हुए और एक वैसीही प्रतिमा अपने व्यामशाला में स्थापित कर नित्य प्रतिदिन पूजा
करने लगें| इस घटना के कई वर्षों के बाद 1875 ईस्वी में अंग्रेजो
के शासन काल में पटना में रेलवेस्टेशन बनने का काम प्रारम्भ हुआ तब फिर एक बार उस
मंदिर पर संकट के बादल छाने लगे | हिन्दुओ ने उस वक्त के रेल अधिकारीयों से विनती की और कहाकि एक बार तो हमारा मंदिर
मुसलमानों ने तोड़ दिया था और अब आप तोड़ने आये है इस पर अंग्रेज अधिकारी द्रवित होकर
मंदिर के स्थान को हिन्दुओ को सौंप दिया और रेलवे प्लेटफार्म को थोड़ी दुरी पर
बनाना प्रारम्भ किया| रेलवे के कार्य के दौरान नाले से एक मूर्ति अंग्रेज अफसरों
को प्राप्त हुई और अंग्रेज अधिकारी ने 1880 में उस मूर्ति को व्ययामशाला में स्थापित
मूर्ति के साथ रख दिया| अंग्रेजो को जानकारी नहीं थी की किसी भी मन्दिर में दो
विग्रह की पूजा नहीं होती परन्तु जब उसने स्थापित करदिया तब उस वक्त के बुजुर्गो
ने कहा कि दोनों मूर्तियों का प्राण प्रतिस्ठा किया गया था इस लिए अब यहाँ पर
दोनों को साथ रख पूजन करना चाहिए |दोनों प्रतिमाओं का पूजन एक साथ 1880 इस्वी के हनुमान जयंती के दिन से विधिवत
दोनों विग्रह को स्थापित कर पूजा अर्चना प्रारम्भ की इस
प्रकार से भारत में एक मात्र पटना का हनुमान मंदिर है जहाँ दो विग्रह की पूजा होती
है | वक्तियार खिलजी द्वारा ध्वस्त मंदिर पर साल 1900
तक रामानंद संप्रदाय के लोगों का अधिकार था। उसके बाद इसपर 1948 तक
गोसाईं संन्यासियों का कब्जा रहा। साल 1948 में पटना
हाइकोर्ट ने इसे सार्वजनिक मंदिर घोषित कर दिया। आचार्य किशोर कुणाल के प्रयास से
साल 1983 से 1985 के बीच वर्तमान मंदिर
का निर्माण शुरु हुआ और आज इस भव्य मंदिर के द्वार सबके लिए खुले हैं। पटना हनुमान
मंदिर का भाग्य तो आचार्य किशोर कुणाल जी के कारण चमक गया परन्तु वक्तियार खिलजी
द्वारा ध्वस्त किये गए और स्थानों का कब उद्धार होता है देखना है |
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