मरघट या बस्ती
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जिन्हें हम कहते हैं बस्ती
वह उजड़ रही है रोज
हो रही है तब्दील
मरघट में
और जो मरघट है
वहाँ लाशों के ढेर पर
गिर रही हैं लाशें
जैसे लोग आ रहे हों बसने
अब तो हो रहा है मुश्किल
कर पाना अंतर
बस्ती और मरघट में
यही सच है
कोरोना का
आज एक कड़वा सच
पड़ेगा सबको स्वीकारना
आदमी ने उजाड़ा है उनकी बस्तियों को
जिन्होंने किया है मानव से प्यार
जिया है प्रकृति के साथ
कहीं ये उनका
अभिशाप तो नहीं ?
-- वेद प्रकाश तिवारी